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श्रीमद्भगवद् गीता की मनाई जाती है जयंती

समस्त विश्व में विख्यात श्रीमद्भगवद् गीता ही ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है. भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में पवित्र गीता का दिव्य संदेश यूं तो अर्जुन को दिया था. किन्तु वास्तव में वह तो माध्यम मात्र था. श्रीकृष्ण उसके माध्यम से संपूर्ण मानव जाति को सचेत करना चाहते थे. गीता सब तरह के संकटों से प्रत्येक मानव को उबारने का सर्वोत्तम साधन है. गीता भयमुक्त समाज की स्थापना का मंत्र देती है. यही मंत्र विश्व में शांति कायम करने में सर्वथा समर्थ है.

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समस्त विश्व में विख्यात श्रीमद्भगवद् गीता ही ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है. भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र में पवित्र गीता का दिव्य संदेश यूं तो अर्जुन को दिया था. किन्तु वास्तव में वह तो माध्यम मात्र था. श्रीकृष्ण उसके माध्यम से संपूर्ण मानव जाति को सचेत करना चाहते थे. गीता सब तरह के संकटों से प्रत्येक मानव को उबारने का सर्वोत्तम साधन है. गीता भयमुक्त समाज की स्थापना का मंत्र देती है. यही मंत्र विश्व में शांति कायम करने में सर्वथा समर्थ है.

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हरियाणा के कुरुक्षेत्र में ज्योतिसर ही वह भूमि है जिसके लिए गीता के पहले ही श्लोक में ‘धर्म क्षेत्रे कुरुक्षेत्रे’ शब्द प्रयोग किए गए. इससे अधिक महत्व और क्या हो सकता है. यह सही है कि कुरुक्षेत्र अस्सी कोस विशाल मैदान का नाम रहा है, जहां महाभारत युद्ध के लिए अट्ठारह अक्षौहिणी सेना उतरी थी. पांच हजार वर्ष से भी पहले महाभारत का युद्ध हुआ था, जो अट्ठारह दिन चला. युद्ध तो बाद की बात थी. दोनों पक्षों की सेनाएं आमने-सामने थीं. श्रीकृष्ण अर्जुन के रथ के सारथी थे. अर्जुन ने उन्हें अपने रथ को दोनों सेनाओं के मध्य में खड़ा करने को कहा. जब रथ पर बैठे अर्जुन ने सामने शस्त्रयुक्त सेनानियों पर निगाह डाली तो अपने पितामह, गुरु और दूसरे स्वजनों को देखते ही उसके प्राण सूखने लगे. उस समय श्रीकृष्ण से अर्जुन ने कहा कि उसे स्वजनों को मारकर राज्य की इच्छा नहीं है. मैं युद्ध नहीं करना चाहता.

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श्रीकृष्ण समझ गए कि अर्जुन मोहग्रस्त हो रहा है. अर्जुन ने श्रीकृष्ण से अनेकानेक प्रश्न किए, जिनके उत्तर देकर श्रीकृष्ण ने उसे निराशा से उबारा और वह फिर से लड़ने को तैयार हो गया. निराशा को आशा में बदलने का नाम ही तो ‘गीता’ है. हजारों वर्षों की लंबी अवधि के दौरान कुरुक्षेत्र को समय-समय पर बाहरी आक्रमणकारियों ने नष्ट-भ्रष्ट किया. गीता का संदेश कहां पर दिया गया था, यह उल्लेख कहीं पर नहीं मिलता, किन्तु यह तो स्थापित सत्य है कि कुरुक्षेत्र में ही यह संदेश दिया गया. हमारे कई तीर्थ प्रतीकात्मक स्थिति में हैं. गीता-स्थल भी ऐसी ही कोटि में आता है. परन्तु पारिस्थितिक साक्ष्य के आधार पर ज्योतिसर गीता का उपदेश स्थल है.

ज्योतिसर गीता में गीता मंदिर है. वह अक्षयवट है, माना जाता है कि इसके नीचे श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया. गीता का यह तीर्थ अब अच्छा आकर्षक बन गया है. साथ में बने सरोवर स्वच्छ जल से भरा रहता है. इससे लगता पास में एक पार्क है. पूरे ज्योतिसर को बिजली के प्रकाश से जगमगा कर दिया जाता है. ज्योतिसर आज श्रद्धालु-भक्तों के लिए परम श्रद्धा का केन्द्र बन गया है. देश-विदेश से यात्री और पर्यटक बड़ी संख्या में आते हैं और इस तीर्थ के दर्शन करने में अपना सौभाग्य मानते हैं. प्रतिदिन महाभारत युद्ध पर आयोजित आधा घंटे का प्रकाश तथा ध्वनि का आकर्षक कार्यक्रम देखने और सुनने योग्य होता है. वैसे, गीता जयंती समारोह ब्राहृसरोवर के तट पर आयोजित होता है. गीता-जयंती पर रात्रि के समय भक्ति-संगीत का मोहक कार्यक्रम प्रशासन की ओर से आयोजित होता है. अब तो ज्योतिसर का यह गीता-तीर्थ विख्यात तीर्थ बन गया है.

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गीता जयंती समारोह पर संगोष्ठी और प्रदर्शनी
कुरुक्षेत्र में हर साल आयोजित होने वाले गीता जयंती समारोह की रूपरेखा जिला प्रशासन और कुरुक्षेत्र विकास बोर्ड तैयार करता है. विशाल ब्रह्म सरोवर के मध्य में स्थित पुरुषोत्तमपुरा बाग में चारों ओर मंच लगाया जाता है. प्रतिदिन भव्य सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए देशभर से कलाकारों को आमंत्रित किया जाता है. इस समारोह के दौरान राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की जाती है जिसमें देश-विदेश के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों से आए विद्वानों अपने विचार रखते हैं. इस दौरान यहां राज्य स्तरीय विकास प्रदर्शनी और शिल्प मेले का भी आयोजन किया जाता है. देश भर से आए लोक कलाकारों के दलों ने पारंपरिक वाद्य यंत्रों को बजाकर माहौल को खुशनुमा बना देते हैं. इस दौरान यहां आकर विभिन्न राज्यों से आए कलाकारों के कला और हुनर के बेहतरीन नमूनों को भी देखा जा सकता है.

राष्ट्रीय उत्सव बना गीता जयंती समारोह
शाम के समय श्लोकोचारण और शख ध्वनि के बीच ब्रह्मसरोवर के पवित्र जल में दीपदान किया जाता है. इस दौरान सरोवर दीपों और उनके प्रतिबिंब की रोशनी में नहाया हुआ सा प्रतीत होता है. उत्सव की बढ़ती लोकप्रियता ने आज गीता जयंती समारोह को केवल प्रदेश का उत्सव नहीं बल्कि राष्ट्रीय स्तर के उत्सव के रुप में अपनी पहचान बना ली है. इस अवसर पर होने वाली बहुरंगी आतिशबाजी से ऐसा आभास होता है मानो आकाश में परियां विचरण कर रही हों. दरअसल यह पर्व अध्यात्म, कला, संस्कृति तथा संगीत का अनूठा उदाहरण है और आज इस उत्सव की पहचान कुरुक्षेत्र के रूप में नहीं अपितु राष्ट्रीय उत्सव के रूप में होती है. समापन समारोह के दिन दोपहर में भव्य नगर शोभायात्रा आयोजित की जाती है जो शहर के प्रमुख रास्तों से गुजरती हुई शाम हो यहीं पर संपन्न हो जाती है.

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