पाकिस्तान में मुत्ताहिदा कौमी मूवमेंट के समर्थन वापस लेने के बाद प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी की कुर्सी संकट में आ गई है.अपनी सरकार को बनाए रखने के लिए गिलानी ने आज पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क्यू) से मदद मांगी.
एमक्यूएम के अलावा जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम ने भी संघीय सरकार से समर्थन वापस लिया है. दोनों दलों के सरकार से अलग होने के बाद गिलानी सरकार अल्पमत में आ गई है 342 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में अब गिलानी सरकार के पास लगभग 160 सांसदों का समर्थन है.
पाकिस्तानी संविधान के अनुसार गिलानी अल्पमत में आने के बाद भी तत्काल संसद में विश्वास मत जीतने के लिए बाध्य नहीं हैं, हालांकि कुछ महत्वपूर्ण विधेयकों और आम बजट को पारित कराने में मुश्किलों का सामना कर सकते हैं. ऐसी स्थिति में उनकी सरकार जा सकती है. इसके मद्देनजर आज सुबह गिलानी ने पीएमएल -क्यू के प्रमुख और पूर्व प्रधानमंत्री शुजात हुसैन को टेलीफोन कर समर्थन मांगा. वह हुसैन से मुलाकात भी कर सकते हैं.
पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी का पीएमएल क्यू से समर्थन मांगना पाकिस्तान में एक बड़ा सियासी बदलाव माना जा रहा है. उल्लेखनीय है कि पीएमएल-क्यू ने एक बार पीपीपी के सर्वोच्च नेता आसिफ अली जरदारी को उनकी पत्नी बेनजीर भुट्टो का ‘कातिल’ करार दिया था. उधर, पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वह सरकार को किसी भी सूरत में समर्थन नहीं देगी.
इस संबंध में पार्टी प्रमुख नवाज शरीफ ने एक बैठक भी की. एमक्यूएम ने आरोप लगाया है कि गिलानी सरकार जन समस्याओं से निपटने में पूरी तरह नाकाम रही है.पार्टी का कहना है कि सरकार की नाकामी की वजह से ही उसने समर्थन वापस लिया है. एमक्यूएम के समर्थन वापस लेने के बाद प्रधानमंत्री गिलानी ने कहा कि अगर पीपीपी के सभी सहयोगी दल अलग हो जाएं तो भी उनकी सरकार को कोई खतरा नहीं है.