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हर्डल देख घबरा जाती थीं स्वर्णिम परी सुधा: कोच

ड्रैगन से जुड़ी लोककथाओं के देश में हो रहे एशियाई खेलों की स्टीपल चेज स्पर्धा में स्वर्णिम सफलता हासिल करने वाली रायबरेली की सुधा सिंह कभी ट्रैक पर बने हर्डल (बाधा) से घबराती थीं.

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ड्रैगन से जुड़ी लोककथाओं के देश में हो रहे एशियाई खेलों की स्टीपल चेज स्पर्धा में स्वर्णिम सफलता हासिल करने वाली रायबरेली की सुधा सिंह कभी ट्रैक पर बने हर्डल (बाधा) से घबराती थीं.

चीन के ग्वांगझू में रविवार को स्वर्ण पदक जीतकर देश का सिर ऊंचा करने वाली सुधा की कोच विमला सिंह ने ‘भाषा’ से बातचीत में यह खुलासा करते हुए बताया कि सुधा शुरुआत में ट्रैक पर बनी हर्डल पार करने से डरती और घबराती थीं और उन्हें इसके लिये मनोवैज्ञानिक तौर पर तैयार करने के लिये खासी मशक्कत करनी पड़ी थी.

सुधा को स्टीपल चेज स्पर्धा के लिये तैयार करने वाली विमला ने बताया कि उनके बहुत समझाने और हिम्मत बंधाने के बाद सुधा हर्डल स्पर्धा में भाग लेने के लिये तैयार हुईं और उसका निरन्तर अभ्‍यास शुरू किया. बाद में भारत में जब स्टीपल चेज स्पर्धा शुरू हुई तब तक सुधा हर्डल पार करने में माहिर हो चुकी थीं और उन्हें इसका बहुत फायदा भी मिला.

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सुधा को ‘गाड गिफ्टेड’ खिलाड़ी करार देते हुए उन्होंने कहा ‘एशियाई खेलों में सुधा ने वह कर दिखाया है जो हममें से किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था. यह सब उसके जीवट और गजब की इच्छाशक्ति का परिणाम है.’

वर्ष 2012 में लंदन में होने वाले ओलम्पिक में भी स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीद जाहिर करते हुए विमला ने कहा ‘सुधा ने सिर्फ दो साल की मेहनत में एशियाड में सोने का तमगा जीता है. उसकी मेहनत और लगन को देखते हुए हमें उम्मीद है कि वह इस लय को बरकरार रखेगी और लंदन ओलम्पिक में भी स्वर्णिम सफलता हासिल करेगी.’{mospagebreak}

भारत की नई ‘उड़नपरी’ बन चुकी सुधा का सफर लखनउ से शुरु हुआ था. वर्ष 2002 में वह केडी सिंह बाबू स्टेडियन के बालिका छात्रावास में आई थीं. उन्होंने वर्ष 2005 तक अंडर 16 वर्ग की विभिन्न एथलेटिक्स स्पर्धाओं में अच्छा प्रदर्शन किया था. उन्होंने 2005 में क्रास कंट्री शुरू की और उसी साल चेन्नई में अंडर 20 में ओपन क्रास कंट्री स्पर्धा में द्वितीय स्थान पर रहीं. नौ मार्च 2005 को चीन में जूनियर एशियाड क्रास कंट्री में उन्हें नौवां स्थान मिला. वहीं से जो सफर शुरू हुआ तो उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. वर्ष 2005 में जब सुधा को रेलवे में नौकरी मिल गई तो वह हास्टल से चली गईं.

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विमला ने बताया कि हास्टल से जाने के बाद सुधा ने दिल्ली में साई की कोच रेनू कोहली की निगहबानी में प्रशिक्षण लिया लेकिन वहां उनका मन नहीं लगा और वह बेंगलूर चली गईं.

स्टीपल चेज के लिये जरूरी सुविधाओं की उपलब्धता के बारे में विमला ने कहा ‘अगर कोई खिलाड़ी अच्छा है तो भारतीय एथलेटिक्स फेडरेशन उसे सुविधाएं मुहैया कराता है.’ उत्तर प्रदेश में इस स्पर्धा के लिये बुनियादी सुविधाओं के सवाल पर उन्होंने कहा कि अगर यहां के स्टेडियमों में स्टीपल चेज के लिये जरूरी सहूलियात मुहैया हो जाएं तो यहां से और भी अच्छे खिलाड़ी निकल सकते हैं.

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