गांधीवादी अन्ना हज़ारे ने समाज के सदस्यों द्वारा लोकपाल के रूप में समानांतर सरकार बनाने की कोशिश करने के सरकार के आरोपों को खारिज करते हुए सवाल किया कि उच्चतम न्यायालय, चुनाव आयोग और केंद्रीय सूचना आयोग के स्वतंत्र और स्वायत्त होने के मायने क्या देश में समानांतर सरकार चलना है.
हज़ारे ने मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल पर देश की जनता को ‘गुमराह’ करने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा कि हमारे लोकपाल मसौदा विधेयक में ऐसा कोई जिक्र नहीं है कि प्रस्तावित जांच निकाय को सकल घरेलू उत्पाद का एक फीसदी बजट आवंटित किया जाये.
उन्होंने कहा, ‘मंत्री कह रहे हैं कि हम समानांतर सरकार चाहते हैं. लेकिन हमारी ऐसी कोई मंशा नहीं है. चुनाव आयोग, उच्चतम न्यायालय और केंद्रीय सूचना आयोग सरकार से स्वतंत्र और स्वायत्त हैं. हम मंत्रियों से यह सवाल करते हैं कि क्या ये निकाय समानांतर सरकार के रूप में चल रहे हैं?’
गांधीवादी ने सरकार पर भ्रष्टाचार से निपटने के प्रति ‘उदासीन’ रुख अपनाने का आरोप लगाया. उन्होंने घोषणा की, ‘हम 16 अगस्त से फिर आंदोलन करेंगे और यह आंदोलन अप्रैल में हुए आंदोलन से कहीं बड़ा होगा. यह आजादी की दूसरी लड़ाई होगी. अगर सरकार ने हमें जंतर मंतर पर जाने की इजाजत नहीं दी तो हम लाठियां खायेंगे, गिरफ्तारियां देंगे और जेल जायेंगे, लेकिन आंदोलन जरूर होगा.’
इस सवाल पर कि उनके प्रस्तावित आंदोलन को भी बाबा रामदेव के आंदोलन की तरह ही सरकार द्वारा कुचल देने की स्थिति में क्या होगा, हज़ारे ने कहा, ‘हम ऐसी किसी भी स्थिति का सामना करने के लिये तैयार हैं. हम गोलियां खाने को भी तैयार हैं.’
हज़ारे ने कहा कि इस तरह के आरोप लगाकर सरकार जनता को गुमराह कर रही है. सरकार को लगता है कि अगर हमने 16 अगस्त से आंदोलन किया तो वह अप्रैल में हुए हमारे आंदोलन से भी बड़ा होगा. यही कारण है कि सरकार भम्र फैला रही है. भ्रष्टाचार के लिये जनप्रतिनिधियों और सरकारी अफसरों के बीच ‘सांठगांठ’ को जिम्मेदार ठहराते हुए हज़ारे ने कहा कि इसीके कारण जनता पर खर्च होने के लिये निर्धारित एक रुपये में से 10 पैसा भी गांवों तक नहीं पहुंच पाता.
उन्होंने कहा कि इस तरह से होने वाला भ्रष्टाचार ‘पाकिस्तान से उठते आतंकवाद से भी ज्यादा खतरनाक’ है. समाज के सदस्यों के मसौदा विधेयक में लोकपाल के लिये सकल घरेलू उत्पाद का एक फीसदी बजट रखने का प्रावधान होने के सिब्बल के दावे पर हज़ारे ने कहा कि हमने प्रस्ताव रखा है कि कुल राजस्व का अधिकतम सिर्फ 0.25 फीसदी बजट ही लोकपाल को आवंटित किया जाये और यह बजट समाज के सदस्यों को नहीं मिलने वाला है.
लोकपाल मसौदा समिति के सदस्य रहे अरविंद केजरीवाल ने कहा कि सरकार के मसौदे के अनुसार लोकपाल केंद्र सरकार के सिर्फ 65,000 कर्मियों और 15 से 20 लाख गैर-सरकारी संगठनों, समूहों और अभियानों के भ्रष्टाचार की जांच करेगा. सरकार निचले ओहदे वाले कर्मचारियों को लोकपाल के दायरे में नहीं रखना चाहती लेकिन सभी तरह के गैर-सरकारी संगठनों को जांच के दायरे में लाना चाहती है.
उन्होंने कहा कि इससे सवाल उठता है कि यह प्रस्तावित लोकपाल केंद्र के अफसरों के भ्रष्टाचार की जांच के लिये है या गैर-सरकारी संगठनों के लिये. आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि सरकार के मसौदे में कंपनियों को लोकपाल के दायरे में नहीं रखा गया है लेकिन दिल्ली के रेजीडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन उसकी जांच के दायरे में होंगे.
केजरीवाल ने कहा कि भ्रष्टाचार साबित होने पर दोषी अधिकारी को छह महीने की सजा होगी लेकिन सरकार ने मसौदे में ऐसे प्रावधान किये हैं कि शिकायत गलत पाये जाने पर अर्जी देने वाले व्यक्ति को दो वर्ष की सजा होगी. लोकपाल की चयन समिति के बारे में उन्होंने दावा कि सरकार सात जून को हुई मसौदा समिति की बैठक में लोकपाल के चयन संबंधी हमारे सुझाव पर सहमत हो गयी थी. लेकिन सरकार के मसौदे में जिस चयन प्रक्रिया का जिक्र है वह सहमति वाले बिंदुओं से बिल्कुल अलग है.
केजरीवाल ने राजनीतिक दलों से अपील की कि वे सर्वदलीय बैठक से पहले लोकपाल के बारे में बिंदुवार तरीके से अपना रुख स्पष्ट करें. उन्होंने कहा कि हम जल्द ही राजनीतिक दलों के नेताओं से बातचीत भी करेंगे.
पूर्व आईपीएस अधिकारी किरण बेदी ने कहा कि केंद्र के मंत्री हम पर समानांतर सरकार बनाने की कोशिश करने का आरोप लगा रहे हैं. लेकिन हमारे मसौदे में कहा गया है कि प्रस्तावित लोकपाल के वित्तीय खर्च की छानबीन नियंत्रक और महालेखा परीक्षक कर सकेगा और संसदीय समिति को लोकपाल के कामकाज की समीक्षा करने का अधिकार होगा. लोकपाल प्रधानमंत्री को भी वाषिर्क रिपोर्ट सौंपेगा.
उन्होंने कहा कि सरकार के मसौदे में आम जनता के लिये कुछ नहीं है. सरकार ने अपने मसौदे में विभागों में नागरिक घोषणा-पत्र रखने का जिक्र किया है, जिसमें काम करने की समय सीमा बतायी गयी हो. लेकिन सरकार ने ऐसा कोई प्रावधान नहीं बताया है कि समय सीमा के भीतर काम नहीं होने पर अफसरों पर क्या कार्रवाई होगी.
उन्होंने कहा कि सीवीसी और सीबीआई दो अलग-अलग तरह की जांच करते हैं. लेकिन सरकार के मसौदे के सातवें अध्याय में यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि लोकपाल के तहत किस तरह की जांच होगी. सरकार के मसौदे के अनुसार अगर लोकपाल का गठन हुआ तो क्या भ्रष्टाचार के मामलों की सीवीसी, सीबीआई और लोकपाल द्वारा तीन अलग-अलग जांच होगी.