बहुचर्चित भूमि घोटालों की न्यायिक जांच के आदेश की वैधता को ले कर कर्नाटक की येदियुरप्पा सरकार और लोकायुक्त न्यायमूर्ति एन. संतोष हेगड़े के बीच टकराव जारी है और न्यायमूर्ति ने आज येदियुरप्पा सरकार के फैसले पर सवाल किया.
न्यायमूर्ति हेगड़े ने कहा है कि इन भूमि घोटालों की न्यायिक जांच नहीं कराई जा सकती क्योंकि लोकायुक्त पहले से ही कुछ घोटालों की जांच कर रहा है जो न्यायिक आयोग के समक्ष जांच के लिए लाया गया है और सरकार ने इसके लिए लोकायुक्त की इजाजत नहीं जी है . लोकायुक्त अधिनियम की विविध प्रावधानों के तहत अधिसूचना जारी करने से पहले लोकायुक्त से इसकी इजाजत लेना जरूरी है.
कर्नाटक के ऐडवोकेट जनरल ने कल कहा था कि न्यायिक जांच का आदेश देना सरकार के अधिकारों के दायरे में है क्योंकि उसने जद:एस: नेताओं की ओर से मुख्यमंत्री के खिलाफ लोकायुक्त के समक्ष आरोप दायर करने से पहले यह कदम उठाया था.
ऐडवोकेट जनरल ने दलील दी कि सरकार ने 18 नवंबर को न्यायिक जांच का आदेश दिया जबकि जद एस ने उसी दिन लोकायुक्त के समक्ष शिकायत दर्ज की. लेकिन लोकायुक्त ने जांच 23 नवंबर को स्वीकार की और अगले दिन येदियुरप्पा को नोटिस भेजा. ऐडवोकेट जनरल का कहना था कि तब तक सरकार न्यायिक आयोग के गठन का आदेश जारी कर चुकी थी.{mospagebreak}
न्यायमूर्ति हेगड़े ने कहा कि सरकार ने न्यायिक जांच की अधिसूचना 23 नवंबर को जारी की. उन्होंने कहा कि येदियुरपा की ‘निजी चर्चा’ और उससे पहले ‘मीडिया के समक्ष विचार रखना’ सरकारी आदेश नहीं हो जाता.
न्यायमूर्ति हेगड़े ने कहा कि शिकायत 18 नवंबर को पंजीकृत की गई, उसे संख्याबद्ध किया गया और एक न्यायिक अधिकारी को आबंटित किया गया. उन्होंने कहा, ‘‘(शिकायत के) पंजीकरण के समय से ही जांच शुरू हो जाती है.’ न्यायमूर्ति हेगड़े ने कहा, ‘‘जांच की प्रक्रिया के ये विभिन्न चरण हैं. जांच 18 नवंबर को शुरू हुआ.
उन्होंने कहा कि प्राथमिक जांच 20 नवंबर को शुरू हुई और उन्होंने 23 नवंबर को जांच स्वीकार की.