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परमाणु विधेयक पेश करने से पीछे हटी सरकार

भारत-अमेरिकी परमाणु समझौते के कार्यान्वयन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माने जा रहे विवादास्पद परमाणु दायित्व विधेयक को विपक्ष के भारी विरोध की आशंका के मद्देनजर लोकसभा में पेश करने से सरकार अचानक पीछे हट गयी.

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भारत-अमेरिकी परमाणु समझौते के कार्यान्वयन की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माने जा रहे विवादास्पद परमाणु दायित्व विधेयक को विपक्ष के भारी विरोध की आशंका के मद्देनजर लोकसभा में पेश करने से सरकार अचानक पीछे हट गयी.

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सोमवार को सदन की कार्यसूची में यह विधेयक 19वें नंबर पर सूचीबद्ध था. इसका नंबर आने से पहले ही विपक्षी सदस्य इसके विरोध में खडे हो गये लेकिन तभी अध्यक्ष मीरा कुमार ने सदन को सूचित किया कि सरकार ने उनसे आग्रह किया है कि यह विधेयक सोमवार को पेश करने का उसका इरादा नहीं है.

विपक्ष ने हालांकि इस पर भी सरकार को घेरते हुए कहा कि ऐसा करने के लिए भी उसे सदन से अनुमति लेनी होगी. भाजपा के वरिष्ठ नेता और पूर्व विदेश मंत्री यशवंत सिन्हा ने कहा, ‘सरकार इसे आज की कार्यसूची से निकालने की भी सदन से अनुमति ले.’ इस पर अध्यक्ष ने कहा कि विधेयक पेश नहीं किया गया है. सरकार ने ऐसा करने की उनसे इच्छा जाहिर की है, ‘जिसे मैंने मान लिया.’

विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि सदन सरकार की इच्छा पर नहीं चलता है. वह नियमों पर चलता है. अगर कोई विषय सदन की कार्यवाही के लिए सूचीबद्ध हो जाए तो सरकार उसे वापस लेने की इच्छा के बारे में ‘आपको सूचित करेगी और आप इस बारे में सदन से अनुमति लेंगी.’ सुषमा ने अध्यक्ष से मांग की, ‘आप सरकार की इच्छा को सदन के समक्ष सदस्यों की हां या ना के मत विभाजन के लिए रखें.’ विपक्ष की नेता की इस मांग पर मीरा कुमार ने व्यवस्था दी, चूंकि विधेयक सदन में पेश ही नहीं हुआ है तो इस पर किसी तरह का प्रस्ताव लाने की जरूरत नहीं है.

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राजग के कार्यकारी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि यह सही है कि विधेयक सदन में पेश नहीं हुआ है लेकिन यह भी सही है कि यह विधेयक सदन की सोमवार की कार्यसूची में सूचीबद्ध था. उन्होंने कहा कि जनता की दृष्टि से यह एक महत्वपूर्ण विधेयक है और सरकार ने अचानक ही इसे पेश नहीं करने का निर्णय किया. आडवाणी ने कहा कि ऐसा करना सरकार का अधिकार है लेकिन इसके साथ ही यह बताना भी उसका कर्तव्य है कि वह इसे पेश करने से पीछे क्यों हट गयी.

उन्होंने कहा कि सदन को जानने का अधिकार है कि सदन की कार्यवाही के लिए सूचीबद्ध किसी मामले को वापस क्यों लिया गया. इस विधेयक के प्रावधानों के तहत परमाणु प्रतिष्ठानों में किसी तरह की दुर्घटना होने की स्थिति में उस संयंत्र के संचालक को पीड़ितों के लिए 300 करोड़ रूपये तक की राहत राशि देनी होगी. लेकिन इसमें प्राकृतिक आपदा, सशस्त्र विद्रोह, आतंकवाद या किसी व्यक्ति को उसी की असावधानी से क्षति होती है तो संयंत्र परिचालक की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी.

भाजपा और वामपंथी दलों सहित विपक्ष इस विधेयक का यह कहकर कडा विरोध कर रहे हैं कि मुआवजे के प्रावधान बहुत कम किये गये हैं और सरकार दुर्घटनाओं का भी वर्गीकरण करके अपनी जिम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रही है.

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विधेयक को केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने पिछले साल 20 नवंबर को मंजूरी दी थी. इस कानून को लागू करना भारत-अमेरिकी परमाणु समझौते के तहत तीन प्रमुख आवश्यकताओं में से एक है. यह समझौता सितंबर 2008 में हो गया था लेकिन अब तक इसका कार्यान्वयन नहीं हो सका है. दो अन्य आवश्यकताएं अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी (आईएईए) के सुरक्षा मानकों के तहत समर्पित ‘रीप्रोसेसिंग’ इकाई स्थापित करना और भारत द्वारा अप्रसार की घोषणा करना हैं.

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने पिछले सप्ताह भाजपा के वरिष्ठ नेता अरूण जेटली से मुलाकात कर उन्हें विधेयक के बारे में जानकारी दी थी लेकिन मुख्य विपक्षी दल की सभी चिन्ताओं का समाधान अभी तक नहीं हो सका है.

समझा जाता है कि जेटली ने विधेयक को लेकर कुछ सवालों की एक सूची मेनन को दी है लेकिन अभी तक उन्हें उन पर जवाब नहीं मिला है. विधेयक में परमाणु क्षति दावा आयोग के गठन का भी प्रावधान है, जिसके विशिष्ट क्षेत्र में एक या एक से अधिक दावा आयुक्त होंगे.

दावा आयुक्त को सिविल अदालत के सभी अधिकार प्राप्त होंगे. वे गवाहों की उपस्थिति, दस्तावेजों को पेश करने और अन्य सामग्री लाने का आदेश दे सकेंगे.

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