अन्ना हज़ारे ने उनके आंदोलन के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े होने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि उनके विरोधी कल को उनके रिश्ते पाकिस्तान से बताने से भी गुरेज नहीं करेंगे.
हज़ारे पक्ष ने लोकपाल विधेयक पर गौर कर रही अभिषेक सिंघवी की अध्यक्षता वाली संसद की स्थायी समिति और उसके सदस्यों पर भी सवाल उठाये.
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अपने अनशन के पांचवें दिन रामलीला मैदान पर शाम को संवाददाताओं से बातचीत में जब हज़ारे से उनके आंदोलन को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से समर्थन प्राप्त होने के आरोपों के बारे में पूछा गया तो गांधीवादी कार्यकर्ता ने कहा कि जो लोग हमारे आंदोलन को भाजपा या राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आंदोलन कह रहे हैं, उन्हें पागलखाने में भेज देना चाहिये. उन्होंने हमारा नाम अमेरिका से भी जोड़ा. कल को वे यह तक कह देंगे कि हमारे आंदोलन में पाकिस्तान का हाथ है.
अन्ना के आंदोलन पर आपकी भेजी तस्वीरें
उधर, हज़ारे के करीबी साथी अरविंद केजरीवाल और किरण बेदी ने संसद की स्थायी समिति और उसके सदस्यों को जाहिरा तौर पर आड़े हाथ लिया.
केजरीवाल ने कहा कि स्थायी समिति के समक्ष अपने विचार रखने के दौरान हमने अनुरोध किया था कि वह विधेयक को खारिज कर वापस भेज दे. इस स्थायी समिति में लालू यादव और अमर सिंह जैसे लोग हैं. क्या वे हमारे देश को सशक्त कानून दे पायेंगे?
अन्ना के समर्थन में उतरा जनसैलाब
आरटीआई कार्यकर्ता ने कहा कि स्थायी समिति ने विज्ञापन प्रकाशित कर जनता और संगठनों से सुझाव मांगे हैं लेकिन विज्ञापन में उसने हमारे जनलोकपाल विधेयक का जिक्र नहीं किया है. क्या (स्थायी समिति की) विचार-विमर्श की यह कवायद दिखावा भर नहीं रह जायेगी.
स्थायी समिति के बारे में अपने बयानों को लेकर केंद्रीय मंत्रियों द्वारा की जा रही आलोचना के बारे में केजरीवाल ने कहा कि हमने हदें पार नहीं की हैं. हम किसी का अपमान नहीं कर रहे. हम सिर्फ यही कह रहे हैं कि यह सरकार संसद और स्थायी समिति को ढाल बना रही है.
उन्होंने कहा कि सरकार जि़द छोड़े और हज़ारे की सेहत को देखते हुए बातचीत के लिये आगे आये, हम बातचीत के लिये तैयार हैं लेकिन हम किससे बात करें, कहां बात करें और कब बात करें, यह हमें पता नहीं है.
केजरीवाल ने स्पष्ट किया कि सरकार की तरफ से अब तक बातचीत के लिये कोई प्रस्ताव नहीं आया है. किरण बेदी ने भी स्थायी समिति के विज्ञापन पर सवाल उठाते हुए कहा कि समिति को विज्ञापन में सरकार के लोकपाल विधेयक के साथ ही हमारे जनलोकपाल विधेयक के बारे में भी जानकारी देनी चाहिये थी. सरकार की नीयत ठीक होती तो हमारे जनलोकपाल विधेयक को भी विचारार्थ रखा जाता.
राजनीतिक दलों से समर्थन के बारे में केजरीवाल ने कहा कि वाम दलों ने विधेयक पर अपना रुख स्पष्ट कर दिया है लेकिन हमें भाजपा से निराशा मिली है. बहरहाल, किरण ने कहा कि नौ गैर-संप्रग और गैर-राजग दलों ने हज़ारे के आंदोलन को समर्थन किया है और यह हमारे लिये एक बड़ी जीत है.
हज़ारे पक्ष द्वारा लोकतंत्र और संविधान के खिलाफ बातें करने के कांग्रेस नेताओं के आरोपों पर वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि हम लोकतंत्र का मतलब समझते हैं. हम जनता की इच्छा के अनुरूप कानून बनाने की मांग कर रहे हैं और इस तरह की मांग करना अलोकतांत्रिक नहीं है.
‘नेशनल कैम्पेन फॉर पीपुल्स राइट टू इन्फॉर्मेशन’ (एनसीपीआरआई) की प्रमुख और राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की सदस्य अरुणा रॉय ने कहा है कि हज़ारे पक्ष की सरकार के लोकपाल विधेयक को बदलने की मांग गलत है. इस पर भूषण ने कहा कि हम स्वीकार करते हैं कि अरुणा रॉय के साथ हमारे कुछ मतभेद हैं लेकिन ये मतभेद व्यापक नहीं हैं. रॉय चाहती हैं कि लोकपाल के दायरे में केंद्र सरकार के प्रथम श्रेणी के ही अधिकारी हों और शेष अधिकारियों के भ्रष्टाचार से निपटने के लिये अलग निकाय बनाया जाये.
नक्सलवाद से जुड़े एक सवाल पर भूषण ने कहा कि सरकार की कुछ नीतियां जल, जंगल और जमीन पर गरीब आदिवासियों के अधिकारों को छीनने वाली हैं. ऐसे में गरीब आदिवासी कई बार हथियार उठाने पर मजबूर हो जाते हैं.