अन्ना हजारे ने कहा है कि आज का लोकतंत्र जन के लिए, जन के द्वारा तथा जन का नहीं है बल्कि लाटसाहबी है. उन्होंने कहा कि कानून बनाने की प्रक्रिया से लोगों को अलग कर देने के कारण भ्रष्टाचार बढ़ा है.
लोकपाल विधेयक को पारित करने में राज्यसभा की विफलता की निंदा करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने एक ऐसा कानून लाने का साहसी सुझाव दिया जिससे ग्रामसभाएं संसद से भी ऊपर होंगी. अन्ना पक्ष की एक संगोष्ठी में वीडियो के माध्यम से संबोधन करते हुए हजारे ने कहा कि यदि सरकार ग्राम सभाओं को सशक्त बनाने के लिए कानून नहीं लाती है तो लोगों को जन लोकपाल विधेयक आंदोलन के जैसे आंदोलन के लिए कमर कसनी होगी.
उन्होंने कहा, ‘लोकसभा सोचती है कि वह हरेक से ऊपर है. यह गलत है. लोगों ने आपको चुना है. अतएव वे आपसे ऊपर हैं. यह लोकतंत्र का पावन मंदिर है. ऐसे पवित्र स्थान पर लोकपाल विधेयक को लेकर पिछले दिनों राज्यसभा में क्या हुआ.’
अपने आधे घंटे के भाषण के दौरान उन्होंने कहा, ‘550 लोग अपने अपने सुझाव दे रहे थे. किसी ने भी लोगों से उनकी राय नहीं पूछा. अतएव हमें एक अन्य कानून की जरूरत है. विधानसभाएं और लोकसभा सोचती हैं कि वे ग्रामसभाओं से ऊपर है. लेकिन ग्राम सभाएं आप से ऊपर हैं. हमें एक ऐसे कानून की जरूरत है जो ग्रामसभाओं को ऐसे अधिकार प्रदान करे.’
हजारे ने कहा कि संसद सत्र के अंतिम दिन राज्यसभा में जो कुछ हुआ वह गलत था. उन्होंने कहा, ‘निर्वाचित प्रतिनिधि अपने आप ही अपनी राय दे रहे हैं. यह सही लोकतंत्र नहीं है. ऐसा क्यों हुआ. क्योंकि मालिक सो रहे थे.’ उन्होंने कहा, ‘लोकसभा सोचती है कि वह ग्रामसभा से ऊपर है. 550 लोग सोचते हैं कि वे अन्य हर व्यक्ति से ऊपर हैं. यह सोच गलत है.’
उन्होंने कहा कि नये कानून में ऐसे प्रावधान होने चाहिए कि यदि पंचायत ग्रामसभा से संपर्क किए बगैर या उसकी सहमति लिए बगैर धन खर्च करती है तो उसे बर्खास्त किया जा सके. मजबूत ग्रामसभा की वकालत करते हुए हजारे ने विशेष आर्थिक क्षेत्र के लिए जमीन अधिग्रहण की प्रक्रिया का हवाला दिया और कहा कि गांवों में जमीनों के मालिक तथा ग्रामसभा को यह पता भी नहीं चल पाता है कि कब सरकार ने बिना उसकी इजाजत के जमीन अधिग्रहीत कर ली.
उन्होंने कहा, ‘जब हमारे सेवक हमारे खजाने लूट रहे थे तब हम मालिक सो रहे थे. अब हम जाग गए हैं. यदि सरकार कानून नहीं लाती है तो हम वैसा ही आंदोलन छेड़ना होगा जैसा कि हमने मजबूत लोकपाल विधेयक के लिए 16 अगस्त को (रामलीला मैदान में) छेड़ा था.’
हजारे ने दावा किया कि आज का लोकतंत्र जन के लिए, जन के द्वारा तथा जन का नहीं है बल्कि लाटसाहबी है. उन्होंने कहा कि कानून बनाने की प्रक्रिया से लोगों को अलग कर देने के कारण भ्रष्टाचार बढ़ा है. उन्होंने कहा, ‘जिन लोगों को खजानों की सुरक्षा करनी है वे ही वे लोग हैं जो इन्हें लूट रहे हैं. जिम्मेदारी लोगों की है क्योंकि वे संसद एवं विधानसभाओं में निर्वाचित प्रतिनिधि को भेजने के बाद सो जाते हैं.’
हजारे ने कहा, ‘हम उन्हें अपने सेवक के रूप में भेजते हैं लेकिन वे हमारे मालिक के रूप में व्यवहार कर रहे हैं. जो कानून बनाये जा रहे हैं वे कमजोर हैं क्योंकि आप मालिक से संपर्क नहीं कर रहे.’ उन्होंने कहा कि यदि सरकार कानून बनाने के दौरान लोगों से उनकी राय नहीं लेती तो ब्रिटिश शासन और मौजूदा शासनतंत्र में कोई अंतर नहीं है. उन्होंने वापस बुलाने के अधिकार और खारिज करने के अधिकार कानूनों की फिर से मांग की.