बंबई उच्च न्यायालय ने सोमवार को कहा कि वह 26 नवंबर को मुंबई में हुए आतंकवादी हमले में भूमिका के लिए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल कसाब को सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि पर और दोषी ठहराए जाने के खिलाफ उसके द्वारा की गई अपील पर फैसला 21 फरवरी को सुनाएगा.
सोमवार को न्यायमूर्ति रंजना देसाई और न्यायमूर्ति आर वी मोरे ने कहा कि वह आज फैसला सुनाने के लिए तैयार थे लेकिन दस्तावेजी कार्य और उनके संकलन का कार्य अत्यधिक होने की वजह से वह एक पखवाड़े के बाद फैसला सुनाएंगे.
उच्च न्यायालय 21 फरवरी को ही महाराष्ट्र सरकार की उस अपील पर फैसला सुनाएगा जिसमें राज्य सरकार ने इसी मामले में सह आरोपियों फहीम अंसारी तथा सबाउद्दीन अहमद को बरी किए जाने को चुनौती दी थी.
निचली अदालत ने अंसारी और अहमद को, उनके खिलाफ संदेहजनक प्रमाण होने के आधार पर बरी कर दिया था.
दोनों न्यायाधीशों ने आज सरकारी वकील उज्ज्वल निकम से 21 फरवरी को कसाब के लिए अदालत में वीडियो कॉन्फ्रेंस लिंक की व्यवस्था करने को कहा. कसाब आर्थर रोड केंद्रीय जेल में बंद है और अपने मामले का फैसला सुनना चाहता है.{mospagebreak}
कसाब के वकील अमीन सोलकर ने अनुरोध किया कि वह विदेश जा रहे हैं और 21 फरवरी को अदालत में उपस्थित नहीं रहेंगे इसलिए फैसला 28 फरवरी को सुनाया जाए. दोनों न्यायाधीशों ने उनके अनुरोध पर विचार करने में अक्षमता जताई और फैसला 21 फरवरी को सुनाना तय किया.
निचली अदालत ने कसाब को मुंबई हमलों के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए पिछले साल छह मई को मौत की सजा सुनाई थी. मुंबई हमलों में 166 व्यक्ति मारे गए थे और कई घायल हो गए थे.
कसाब के साथ पाकिस्तान से आए नौ आतंकवादियों ने तीन दिन तक कहर ढाया था. सुरक्षा बलों की कार्रवाई में नौ आतंकवादी मारे गए थे.
निचली अदालत के जज एम एल ताहिलियानी ने अभियोजन पक्ष की यह दलील स्वीकार की थी कि कसाब और नौ अन्य आतंकवादी समुद्री मार्ग से कराची से मुंबई आए और सीएसटी, ताज होटल तथा ओबरॉय होटल सहित शहर में लोगों पर गोलीबारी कर आतंक फैलाया था.
कानून के अनुसार, किसी आरोपी को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई मौत की सजा की पुष्टि उच्च न्यायालय करता है.
इन मामलों पर जिरह पिछले साल 17 अक्तूबर को शुरू हुई थी. उच्च न्यायालय ने दीपावली और क्रिसमस की छुट्टियों को छोड़ कर दिन प्रतिदिन आधार पर सुनवाई की.{mospagebreak}
अपीलों की सुनवाई के लिए अदालत में पहली बार एक वीडियो कॉन्फ्रेंस लिंक लगाया गया. अदालत के कक्ष संख्या 49 में कैमरे लगाए गए ताकि आर्थर रोड जेल से कसाब सुनवाई को सुन सके.
कसाब को सुनाई गई मौत की सजा को जायज ठहराते हुए सरकारी वकील उज्ज्वल निकम ने वह तस्वीरें तथा सीडी पेश कीं जिनमें कसाब आतंकवादी कार्रवाई को अंजाम देते हुए नजर आ रहा था. निकम ने निचली अदालत की उस व्यवस्था पर भी सवाल उठाया जिसमें अदालत ने कसाब के इकबालिया बयान को आंशिक रूप से स्वीकार किया था. उन्होंने कहा कि इकबालिया बयान को हूबहू लिया जाना चाहिए न कि अंशों में.
सोलकर ने आरोप लगाया कि कसाब को फंसाने के लिए गिरगौम में पुलिस की मुठभेड़ का नाटक किया गया. उन्होंने इस आरोप को भी गलत बताया कि कसाब ने पुलिस अधिकारियों हेमंत करकरे, अशोक कामटे और विजय सालस्कर को मारा.
उन्होंने यह भी दलील दी कि पुलिस के दावे के मुताबिक कसाब को भाड़े पर लिया गया हत्यारा कहा जा सकता है और उस पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का आरोप नहीं लगाया जा सकता. देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने का आरोप भारतीय दंड संहिता के तहत एक गंभीर अपराध है.