दिल्ली उच्च न्यायालय ने मुंबई के एक दैनिक में ‘भड़काउ’ लेख लिखने के आरोपी जनता पार्टी अध्यक्ष सुब्रह्मण्यम स्वामी को अग्रिम जमानत दे दी.
न्यायमूर्ति एम एल मेहता ने भविष्य में ऐसे लेख नहीं लिखने संबंधी सुब्रह्मण्यम का हलफनामा रिकार्ड करते हुए कहा, ‘गिरफ्तारी की सूरत में 25000 रूपये के निजी मुचलके और उतनी ही राशि की जमानत पर उन्हें छोड़ा जा सकता है.’
अदालत ने कहा, 'किसी पुस्तक के आधार पर कोई लेख लिखना हालांकि किसी नागरिक का मौलिक अधिकार है लेकिन इस अधिकार का इस्तेमाल चुनिंदा तर्कसंगत प्रतिबंधों को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिये.’
उसने अपने उपर लगाये गये प्रतिबंधों का पालन करने के बारे में स्वामी द्वारा दिये गये हलफनामे की भी प्रशंसा की.
न्यायमूर्ति मेहता ने स्वामी की जमानत याचिका का निपटारा करते हुए कहा, ‘आप काफी बुद्विमान व्यक्ति हैं. आप जो चाहे लिख सकते हैं लेकिन जिम्मेदाराना प्रतिबंधों का पालन करें. मैं हलफनामा भरने के आप के कदम की प्रशंसा करता हूं.’
अदालत ने कहा कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है और समाज के सभी वर्गों की भावना का सम्मान करना चाहिये. इस पर स्वामी ने कहा, ‘मेरे मुस्लिम रिश्तेदार हैं मेरे ईसाई रिश्तेदार हैं मेरी पत्नी पारसी है.’
अदालत ने यह भी कहा कि पिछले साल 16 जुलाई को एक अखबार में कथित भडकाउ लेख लिखने के बाद से देश में साम्प्रदायिक वैमनस्य का कोई मामला सामने नहीं आया.
दिल्ली पुलिस ने इससे पहले स्वामी की जमानत याचिका का यह कहते हुए विरोध किया कि मामला गंभीर है लिहाजा उन्हें जमानत नहीं दी जानी चाहिये.
स्वामी की तरफ से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील के टी एस तुलसी ने पुलिस की दलील का विरोध करते हुए कहा कि राजधानी के दो थानों ने निजी शिकायतों पर मामला दर्ज करने से इंकार कर दिया क्योंकि कथित ‘भड़काउ’ लेख प्रकाशित होने के बाद से साप्रदायिक वैमनस्य की कोई घटना नहीं घटी है.
उन्होंने उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि चरम परिस्थितियों में ही किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत आजादी पर अंकुश लगाया जा सकता है लेकिन यहां ऐसा मामला नहीं है.
दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के निर्देश पर पिछले साल अक्तूबर में स्वामी के खिलाफ मामला दर्ज किया था. आयोग ने कहा था कि लेख साम्प्रदायिक वैमनस्य फैला सकता है.
स्वामी ने 12 जनवरी को अदालत में अग्रिम जमानत की याचिका दी और अगले दिन 30 जनवरी तक के लिये उन्हें गिरफ्तारी से अंतरिम राहत दे दी गयी. स्वामी के वकील ने दलील दी कि उनके मुवक्किल ने सरकार के खिलाफ 2जी घोटाला उजागर किया इसलिये उन्हें परेशान करने के लिये मामला दर्ज किया गया है.
उन्होंने कहा कि स्वामी ने उस पुस्तक के आधार पर लेख लिखा जो उन्होंने छह साल पहले लिखी थी और उसके बाद से कोई अप्रिय घटना नहीं घटी लेकिन पुलिस ने 2जी घोटाला सामने आने के बाद अचानक मामला दर्ज कर लिया.