वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी ने मुद्रास्फीति को चिंता का ‘सबसे महत्वपूर्ण और गंभीर मामला’ बताते हुए कहा कि खाने पीने की वस्तुओं के दाम में वृद्धि का सबसे बड़ा कारण इनकी मांग की तुलना में आपूर्ति कम रहना है.
मुखर्जी ने उम्मीद जाहिर की कि सामान्य मुद्रास्फीति मार्च के अंत तक 7 प्रतिशत पर आ जाएगी. सकल उपभोक्ता वस्तुओं पर आधारित मुद्रास्फीति फरवरी में 8.31 प्रतिशत रही जबकि खाद्य मुद्रास्फीति 26 फरवरी को समाप्त सप्ताह में 9.52 प्रतिशत पर थी.
वर्ष 2011-12 के आम बजट पर राज्य सभा में सामान्य चर्चा का जबाव देते हुए मुखर्जी ने कहा, ‘खाद्य मुद्रास्फीति का मुख्य कारण आपूर्ति क्षेत्र की कमजोरियां हैं.’ उन्होंने कहा कि पिछले साल शुरू में ही चीनी और दाल के कारण खाद्य मुद्रास्फीति ऊंची हो गयी थी पर उत्तरार्ध में फल सब्जियों, मीट और पोल्ट्री उत्पादों के दाम चढ़ गए. मुखर्जी ने प्याज का उदाहरण भी दिया. {mospagebreak}
उन्होंने कहा कि दिसंबर में इसके दाम में उछाल के चलते सरकार को इसके निर्यात पर पाबंदी लगानी पड़ गयी. कुछ ही सप्ताह बाद प्याज का बाजार टूटने पर किसानों ने बिक्री के अभाव में माल सड़ने की शिकायत करते हुए आंदोलन शुरू कर दिया और निर्यात पाबंदी हटानी पड़ी.
उन्होंने कृषि उत्पादों की आपूर्ति की कड़ियां ठीक किए जाने पर बल देते हुए कहा कि भंडारण और वितरण की उचित सुविधा न होने के कारण थोक और खुदरा भावों में भारी अंतर है ऐसे में ‘खेत खलिहान बाजार और रसोई के बीच के दामों में अंतर का जिक्र करना बेमानी है.’
उन्होंने कहा कि देश में अनाज उत्पादन बढ़ाने की जरूरत है. ‘केवल 23 करोड़ टन कृषि उत्पाद से काम नहीं चलेगा. हमें अपनी बढ़ती आबादी को खिलाने के लिए उत्पादन में बहुत अधिक वद्धि करनी पड़ेगी.’ उन्होंने भंडारण और प्रसंस्करण सुविधाओं के विस्तार पर बल देते हुए कहा कि 40 प्रतिशत फल और सब्जियां फसल को संभालने की सुविधाओं के अभाव में नष्ट हो जाती है. वित्त मंत्री ने 60,000 गांवों में दलहन उत्पादन बढ़ाने की योजना को कामयाब बताते हुए कहा कि इससे दलहनों का उत्पादन 20 लाख टन बढ़ा है. {mospagebreak}
उन्होंने कहा, ‘अब भी हमरा दालों का उत्पादन कम है. खाद्य तेल का 50 प्रतिशत आयात करना पड़ रहा है.’ उन्होंने कहा कि विश्व बाजार में जिंस की कीमतों में उछाल का घरेलू कीमतों पर असर पड़ता है. साथ ही कच्चे तेल के दाम में जिस तरह का उतार चढ़ाव 2008 से दिख रहा है उसमें बजट को संभालना मुश्किल हो जाता है.
वित्त मंत्री ने कहा कि कच्चे तेल की कीमतें पिछले दशक के शुरू में 35.40 डालर प्रति बैरल तक गिरने के बाद 70-75 डालर पर स्थिर होने लगी थीं. अगस्त 2008 में कच्चे तेल का भाव 147 डालर तक चला गया और जनवरी 2009 में बाजार गिर कर 50 डालर तक आ गया. उन्होंने कहा ‘ऐसी अनिश्चितता की स्थिति में कोई पहले से बजट कैसे बन सकता है.’