एक महत्वपूर्ण फैसले के तहत यह समझा जाता है कि सरकार ने संसद पर हमले के दोषी मोहम्मद अफजल गुरु की दया याचिका को खारिज कर देने की राष्ट्रपति के पास सिफारिश भेजी है. अफजल को मौत की सजा सुनायी गयी है.
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माना जाता है कि गृह मंत्रालय ने वर्ष 2001 में संसद पर हुए आतंकवादी हमले के मामले में दोषी करार दिये गये अफजल की दया याचिका को खारिज करने संबंधी फाइल राष्ट्रपति के पास भेज दी है. अफजल को सुनायी गयी मौत की सज़ा को उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय ने बरकरार रखा है.
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यह भी माना जाता है कि गृह मंत्रालय ने दिल्ली सरकार की उस सिफारिश का हवाला दिया है जिसमें अफजल को फांसी दिये जाने का पक्ष लिया गया है. यह एक ऐसा मुद्दा है जो पिछले सात वर्ष से लंबित है और इस पर काफी राजनीतिक विवाद हुआ है.
इस तरह के संकेत सबसे पहले दिन में तब मिले जब गृह राज्य मंत्री मुल्लापल्ली रामचंद्रन ने राज्यसभा को एक सवाल के लिखित जवाब में बताया कि गृह मंत्रालय ने अफजल की दया याचिका को निर्णय के लिए राष्ट्रपति सचिवालय के पास भेज दिया है.
रामचंद्रन ने बताया, ‘‘मौत की सजा के लिए दोषसिद्ध हो चुके मोहम्मद अफजल गुरु की दया याचिका का मामला निर्णय के लिए 27 जुलाई 2011 को राष्ट्रपति सचिवालय को प्रस्तुत किया गया है.’’ मंत्री से भाजपा के प्रकाश जावडेकर ने अफजल को फांसी दिये जाने में हो रहे विलंब से संबंधित सवाल पूछा था.
जावडेकर ने पूछा था कि क्या मौत की सजा नहीं देने की मांग करने वाली किसी ‘दया याचिका’ पर फैसला करने के लिये क्रम के आधार पर चलने का कोई संवैधानिक प्रावधान है, इस पर रामचंद्रन ने कहा, ‘‘ऐसा कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है. सभी मामलों के साथ निष्पक्ष और त्वरित बर्ताव सुनिश्चित कराने का प्रशासनिक फैसला होता है.’’
अफजल गुरु को दिसम्बर 2001 में संसद पर हुए हमले की साजिश रचने के मामले में दोषी पाया गया था और उच्चतम न्यायालय ने उसे सुनायी गयी मौत की सजा को वर्ष 2004 में बरकरार रखा था. उसे 20 अक्तूबर 2006 को फांसी दी जानी थी. बहरहाल, अफजल की पत्नी की दया याचिका के बाद उसकी फांसी रोक दी गयी.
इस बीच, कांग्रेस अफजल गुरु को जल्द फांसी दिये जाने से जुड़े सवाल पर सीधा जवाब देने से बचती नजर आयी. पार्टी ने कहा कि राष्ट्रपति के पास सौंपी जा चुकी दया याचिका पर प्रतिक्रिया करना उचित नहीं होगा.
पार्टी प्रवक्ता राशिद अल्वी ने संवाददाताओं से कहा कि यह व्यवस्था का एक हिस्सा है. मामला राष्ट्रपति के पास है. न्यायालय के विचाराधीन मामलों की ही तरह राष्ट्रपति को सौंपे गये मुद्दों पर भी कुछ कहना उचित नहीं होता.