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किन कसौटियों पर कसा जाए ओबामा दौरे को?

अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा को लेकर मीडिया में खासा हलचल देखी जा रही है. इस मौके पर सबसे अहम सवाल यह है कि ओबामा के भारत दौरे की सफलता या विफलता का निर्णय कैसे किया जाए?

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अमेरिकी राष्‍ट्रपति बराक ओबामा की भारत यात्रा को लेकर मीडिया में खासा हलचल देखी जा रही है. इस मौके पर सबसे अहम सवाल यह है कि ओबामा के भारत दौरे की सफलता या विफलता का निर्णय कैसे किया जाए? वैसे सरकारी-तंत्र से जुड़े बड़े रणनीतिकार भी इस दौरे को लेकर उत्‍साहित नहीं हैं. इनका दावा है कि ओबामा का दौरा कोई दूरगामी परिणाम देने वाला साबित नहीं होने जा रहा है. स्‍पष्‍ट है कि ये दौरे से कुछ खास उम्‍मीद नहीं रख रहे हैं. इसके बावजूद, ओबामा के भारत आने और लौटने तक अखबारों के पन्‍ने ओबामा के रंग में ही रंगे नजर आएंगे और 'छोटा पर्दा' भी ओबामामय नजर आएगा.

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बुनियादी सवाल यह है कि आखिर किन तथ्‍यों के आधार पर कोई यह कह पाने में सक्षम होगा कि अमेरिकी राष्‍ट्रपति के दौरे से कुछ हासिल हो सका? अगर भारत के नजरिए से देखा जाए, तो इन मुद्दों के आधार पर निर्णय किया जाना चाहिए:

1. दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय समझ विकसित हो और ऐसे संकेत मिलें कि दक्षिण एशिया में भारत और अमेरिका की नीतियां ज्‍यादा संगत होती जा रही हैं.

2. यह स्‍पष्‍ट हो कि आखिर किस वजह से अमेरिका पाकिस्‍तान को गले लगा रहा है. साथ ही यह भी स्‍पष्‍ट होना चाहिए कि भारत और अफगानिस्‍तान के खिलाफ आतंकवाद को प्रश्रय देने वाले पाकिस्‍तान पर अमेरिका दबाव क्‍यों नहीं बना पा रहा है.

3. अफगानिस्‍तान को लेकर अमेरिका की रणनीति क्‍या है, यह भी स्‍पष्‍ट होना चाहिए. फिलहाल ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि तालिबान के साथ सुलह की परिधि में समाधान की तलाश की जा रही है. अगर ऐसा होता है, तो तालिबान भविष्‍य में पाकिस्‍तान की भू-राजनैतिक आकांक्षाओं का पोषण ही करेगा, जिससे क्षेत्रीय विकास में भारत की भागीदारी को भारी नुकसान पहुंचेगा.

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4. कश्‍मीर की मौजूदा अशांति से इस मसले पर अमेरिकी दखलंदाजी का खतरा बढ़ गया है. खासकर तब, जब पाकिस्‍तान अमेरिका को दखल देने के लिए प्रेरित कर रहा है और भारत की कूटनीति इस वक्‍त कमजोर नजर आ रही है. क्‍या ओबामा इस अहम मुद्दे से दूरी कायम रख पाएंगे?{mospagebreak}

5. ओबामा चीन द्वारा पेश की जा रही चुनौती के बारे में कैसी राय रखते हैं, यह साफ हो. इससे यह पता चल सकेगा कि दक्षिणी चीन सागर में चीन के आक्रामक व्‍यवहार को अमेरिका किस रूप में देखता है. साथ ही पाकिस्‍तान अधिकृत कश्‍मीर में चीन की मौजूदगी पर अमेरिका की राय स्‍पष्‍ट होनी चाहिए.

6. निर्यात-नियंत्रण को और सरल बनाने की दिशा में ठोस प्रगति का मसला. इसरो, डीआरडीओ, भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर को सब्सिडी समाप्‍त किए जाने के मुद्दे पर भी स्‍पष्‍टता होनी चाहिए.

7. अंतरिक्ष के क्षेत्र में भारत के साथ सहयोग, जिससे इस क्षेत्र में भारत की क्षमताएं ज्‍यादा भरोसेमंद साबित हो सके. ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि कमर्शियल स्‍पेस लांच एग्रीमेंट (सीएसएलए) एक सकारात्‍मक कदम होगा. इससे अमेरिका संकेत दे सकेगा कि अब वह इस क्षेत्र में सहयोग को और बढ़ावा देने को प्रतिबद्ध है.

8. परमाणु अप्रसार का मुद्दा, परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी), एमटीसीआर, ऑस्‍ट्रेलियाई समूह और ऐसे क्षेत्रों में भारत की सदस्‍यता की दिशा में अमेरिकी प्रोत्‍साहन.

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9. ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ी भारत की समस्‍या को लेकर दोनों देशों के बीच विकसित होती समझ. ईरान के साथ भारत के ऊर्जा संबंध को लेकर दबाव कम करना.

10. संयुक्‍त राष्‍ट्र सुरक्षा परिषद में भारत की स्‍थाई सदस्‍यता का समर्थन. ओबामा का कहना है कि भारत “21वीं सदी में अमेरिका के लिए अपरिहार्य है.” इसलिए, सुरक्षा परिषद में भारत की स्‍थाई सदस्‍यता पर अमेरिका का समर्थन मिलना ही चाहिए. अगर ऐसा होता है, तभी कथनी और करनी के बीच की खाई पट सकेगी.

11. अब आखिरी बात. आतंकवाद के खिलाफ भारत को भरपूर सहयोग. डेविड हेडली केस का खुलासा हो जाने के बाद इस मसले पर भारत अब तक असंतुष्‍ट है. यह पता लगाए जाने की जरूरत है कि अमेरिका सीधे तौर पर प‍ाकिस्‍तान से जुड़ी कितनी जानकारियों को भारत से साझा करता है.

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