प्रख्यात चित्रकार एम एफ हुसैन ने बेशक ही कतर के नागरिक के तौर पर अंतिम सांस ली लेकिन दुनिया से जाने से पहले अपने आखिरी साक्षात्कार में हुसैन ने कहा था कि न तो वह स्व निर्वासन में जी रहे हैं और न ही भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में उनका विश्वास खत्म हुआ है.
हुसैन ने वर्ष 2010 में कतर की नागरिकता ली थी और वह विदेश में बसे भारतीय नागरिक (ओवरसीज इंडियन) थे. भारत सरकार ने वर्ष 2005 में भारतीय मूल के नागरिकों को कई सुविधाएं मुहैया कराने के लिये ओवरसीज सिटीजनशिप को लागू किया था.
बीबीसी के साथ अक्तूबर 2010 में अपने आखिरी साक्षात्कार के दौरान 95 वर्षीय चित्रकार ने कहा था उन्होंने वर्ष 2005 में मुख्य तौर पर तीन परियोजनाओं पर काम करने के लिये भारत छोड़ा था (न कि 2006 में जैसा सभी बताते है) न कि हिंदू समाज के उनके पेंटिंग पर उठाये गये विवाद के कारण. भारत में आधुनिक कला के अग्रणी माने जाने वाले कलाकार ने कहा, ‘मैं आत्म निर्वासन में नहीं हूं.’
उन्होंने कहा था कि वह भारत के लोकतंत्र और कानूनी व्यवस्था में विश्वास रखते है और उन्हें भारत के विदेशी नागरिक (ओवरसीज सिटीजन) का दर्जा दिये जाने को लेकर कोई परेशानी नहीं है. हुसैन ने कहा था, ‘मैं भारत का विदेशी नागरिक (ओवरसीज सिटीजन) हूं. मैं कभी भी भारत जा सकता हूं और केवल एक चीज है कि मैं मतदान में भाग नहीं ले सकता. कोई बात नहीं मैंने अपनी जिंदगी में कभी वोट नहीं डाला. भारत जाने को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं है.’
हुसैन ने कहा था, ‘मेरे ऊपर 900 से उपर मामले है और पिछले 12 वर्षों से मैं अपने प्रति माह अपने वकीलों को साठ से सत्तर हजार रुपये देता रहा हूं क्योंकि मैं भारतीय कानूनी व्यवस्था से नहीं भागा हूं. मुझे मिले प्रत्येक सम्मन का मेरे वकील जवाब देते है.’
उन्होंने कहा, ‘यह कहना गलत है कि मैं भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास नहीं करता. अगर मुझे भारतीय लोकतंत्र में विश्वास नहीं होता तो मैं भारत के विदेशी नागरिकता क्यों लेता? मैंने कतर की नागरिकता पाने के पांच दिन बाद भारत की विदेशी नागरिकता का दर्जा पाया है.’