कश्मीर के बारे में दिए बयान के लिए लेखिका एवं सामाजिक कार्यकर्ता अरूंधति राय को भाजपा ने जहां गिरफ्तार करने की मांग दोहराई और कुछ केन्द्रीय मंत्रियों ने कड़ी आलोचना की वहीं, बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखिका ने अपनी बात पर कायम रहते हुए कहा कि उन्होंने वही कहा है जो कई सालों से लाखों कश्मीरी कह रहे हैं.
अरूंधति को गिरफ्तार करने की भाजपा की मांग के बीच कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने कश्मीर के बारे में इस लेखिका की टिप्पणियों को ‘अत्यधिक दुर्भाग्यपूर्ण’ करार देते हुए कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लोगों की देशभक्ति की भावनाओं पर प्रहार करने का हथियार नहीं बनाया जा सकता है.
भाजपा के इस आरोप पर कि कश्मीर की कथित आजादी के विषय पर कुछ दिन पहले राष्ट्रीय राजधानी में हुई गोष्ठी के घटनाक्रम पर सरकार खामोश तमाशबीन बनी रही, मोइली ने कहा, ‘राजनीति को उन वक्तव्यों से नहीं जोड़ा जाना चाहिए जो देशद्रोह से जुड़े हों.’ {mospagebreak}
मोइली ने हालांकि अरूंधति के खिलाफ देशद्रोह का मामला दर्ज करने के सवाल को टालते हुए कहा, ‘मैं तीन दिन से बाहर था..मैंने अब तक फाइल नहीं देखी है.’ इस लेखिका ने गोष्ठी में कहा था, ‘कश्मीर कभी भी भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं रहा. यह एक ऐतिहासिक तथ्य है. यहां तक कि भारत सरकार भी यह स्वीकार कर चुकी है.’
उधर भाजपा ने अरूंधति को गिरफ्तार करने की मांग को दोहराते हुए कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में कुछ दिन पहले कश्मीर की ‘आज़ादी’ के समर्थन में नारे लगाने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने के गृह मंत्री पी चिदंबरम के वायदे के पूरा होने का वह अभी तक इंतजार ही कर रही है.
भाजपा प्रवक्ता निर्मला सीतारमन ने कहा, पिछले सप्ताह केन्द्र सरकार की नाक के नीचे कश्मीर मुद्दे पर ‘आज़ादी-एकमात्र रास्ता’ नामक गोष्ठी होना और उसमें कश्मीरी अलगाववादियों तथा नक्सल समर्थकों द्वारा कश्मीर की ‘आज़ादी’ के नारे लगाना तथा भारतीय राष्ट्रीय ध्वज का अनादर किया जाना अक्षम्य अपराध है. इसी पार्टी के एक अन्य वरिष्ठ नेता अनंत कुमार ने कहा, अरूंधति और गिलानी को गिरफ्तार करने के बारे में सरकार ढुलमुल नीति अपनाए हुए है. {mospagebreak}
उन्होंने इस मुद्दे पर खामोशी अख्तियार करने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और गृह मंत्री पी चिदंबरम की भी आलोचना की. केन्द्रीय मंत्री फारूक अब्दुल्ला ने उक्त गोष्ठी में कही गई बातों की आलोचना करते हुए कहा कि इस देश में ‘बोलने की कुछ ज्यादा ही आज़ादी है जिसका कुछ लोग देश को नष्ट करने के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं.’
उधर इन आलोचनाओं से विचलित हुए बिना अरूंधति ने श्रीनगर से जारी बयान में कहा, ‘यह अफसोस की बात है कि राष्ट्र को अपने लेखकों को उनकी मन की बात कहने से रोका जा रहा है. ये अफसोस की बात है कि देश को उन्हें जेल में डालने की जरूरत पड़ रही है जो इंसाफ की मांग कर रहे हैं, जबकि साम्प्रदायिक हत्यारे, जन संहारक, कारपोरेट घोटालेबाज, लुटेरे, बलात्कारी और गरीबों को शिकार बनाने वाले खुले घूम रहे हैं.’ विश्व हिन्दू परिषद ने भी अरूंधति और गिलानी पर रासुका लगाने और कश्मीर के मुख्य वार्ताकार दिलीप पडगांवकर को ‘पाकिस्तान भेजने’ की मांग की.