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इसरो ने पीएसएलवी सी-16 का श्रीहरिकोटा से प्रक्षेपण किया

इसरो ने पीएसएलवी सी-16  रिसोर्ससैट-2 सैटेलाइट को भारतीय समयानुसार 10 बजकर 12 मिनट पर आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से सफल प्रक्षेपण किया.

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भारत के पीएसएलवी सी-16 रॉकेट ने प्राकृतिक संसाधनों के अध्ययन और प्रबंधन में मददगार आधुनिक रिमोट सेंसिंग उपग्रह रिसोर्ससैट-2 और दो अन्य नैनो उपग्रहों को कक्षा में सफलतापूर्वक पहुंचा दिया.

इसरो के स्वदेश निर्मित ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान ने चेन्नई से 90 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से सुबह 10 बजकर 12 मिनट पर प्रक्षेपण के 18 मिनट बाद रिसोर्ससैट-2, यूथसैट और एक्स-सैट को ‘धुव्रीय सौर समकालिक कक्ष’ में पहुंचा दिया.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन ने तीनों उपग्रहों के पृथ्वी से 822 किलोमीटर की उंचाई पर अंतरिक्ष में पहुंचने के तुरंत बाद घोषणा की, ‘पीएसएलवी-सी16 रिसोर्ससैट-2 मिशन सफल हो गया है.’ इसरो प्रमुख की घोषणा के बाद मिशन नियंत्रण केंद्र में मौजूद कई वैज्ञानिकों में खुशी की लहर दौड़ गयी. वैज्ञानिकों ने राहत की सांस ली क्योंकि पिछले वर्ष जीएसएलवी मिशन लगातार दो बार विफल हो गया था.

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करीब 1,200 किलोग्राम वजनी रिसोर्ससैट-2 पांच वर्ष अंतरिक्ष में रहेगा. वह वर्ष 2003 में प्रक्षेपित रिसोर्ससैट-1 का स्थान लेगा और प्राकृतिक संसाधनों के बारे में ‘मल्टीस्पेक्टरल’ और ‘स्पाशियल कवरेज’ मुहैया करायेगा.

पिछले वर्ष दिसम्बर में जीएसएलवी मिशन तब विफल हो गया था जब संचार उपग्रह जीसैट-5पी को ले जा रहे स्वदेश निर्मित जीएसएलवी-एफ06 में प्रक्षेपण के एक मिनट के भीतर ही बीच हवा में धमाका हो गया और वह बंगाल की खाड़ी में जा गिरा. जीसैट-5पी में 24 सी-बैंड और 12 विस्तारित सी-बैंड ट्रांसपोंडर्स थे. रॉकेट के प्रक्षेपण पथ से भटक जाने के बाद वह समुद्र में जा गिरा था.

इससे पहले अप्रैल 2010 में भी जीसैट-4 को ले जा रहा जीएसएलवी-डी3 मिशन विफल हो गया था, जिससे भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को गहरा झटका लगा था.

पीएसएलवी का आज कामयाब प्रक्षेपण इस मिशन का लगातार 17वां सफल मिशन है. पीएसएलवी मिशन सिर्फ एक बार विफल हुआ था, जब यान को सितंबर 1993 में पहली बार प्रक्षेपित किया जा रहा था.

पीएसएलवी-सी16 के तहत अंतरिक्ष यान अपने साथ 92 किलोग्राम वजनी यूथसैट भी ले गया है जो भारत और रूस द्वारा निर्मित सूक्ष्म :नैनो: उपग्रह है. यह उपग्रह तारामंडलीय और पर्यावरणीय अध्ययन के लिये है.

तीसरा उपग्रह एक्स-सैट 106 किलोग्राम वजनी है. मानचित्रीकरण उद्देश्यों के लिये इस उपग्रह को सिंगापुर की नानयांग टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी ने विकसित किया है.

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इसरो ने पहली बार सिंगापुर के किसी उपग्रह का प्रक्षेपण किया है.

राधाकृष्णन ने कहा कि दो विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण दर्शाता है कि पीएसएलवी की विश्वसनीयता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल गयी है.
मिशन निदेशक पी. कुन्हीकृष्णन ने कहा, ‘यह पूरे इसरो समुदाय के लिये खुशी का मौका है. इसरो ने अपने साहस को साबित किया और मिशन काफी अच्छी तरह से सफल हुआ. यह देश को दोबारा आश्वस्त कराने की तरह है कि इसरो में भरोसा जताना पूरी तरह जायज है.’ निदेशक की इस टिप्पणी ने अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को उत्साह से भर दिया, जिनका जीएसएलवी की दो लगातार विफलताओं के बाद मनोबल बढ़ाये जाने की जरूरत थी.

रॉकेट के प्रक्षेपण और उसके अंतरिक्ष में पहुंचने तक मिशन नियंत्रण केंद्र में मौजूद अंतरिक्ष वैज्ञानिकों में चिंता का भाव था. अंतरिक्ष यान से उपग्रहों के अलग होने के हर चरण के सफल होने पर वैज्ञानिकों ने तालियां बजाकर जश्न मनाया.

रिसोर्ससैट-2 में एक ही प्लेटफार्म पर तीन हाई रिजॉल्यूशन कैमरे लगे हैं. ये कैमरे ऐसी तस्वीरें लेंगे जो फसलों की स्थिति के आकलन का काम करेंगे. साथ ही, वन कटाई की स्थिति, झीलों और जलाशयों के जल स्तर तथा हिमालय में पिघलने वाली बर्फ पर नजर रखेंगे.

इसरो अधिकारियों ने कहा कि इससे संसाधनों से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देने के लिये जरूरी राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय जानकारी एकत्रित करने में मदद मिलेगी. साथ ही, कृषि, जल संसाधन, ग्रामीण विकास, जैविक संसाधन और भौगोलिक संभावनाओं से जुड़े विशिष्ट क्षेत्रों में निगरानी भी हो सकेगी.

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इस उपग्रह से मिलने वाली जानकारी आपदा प्रबंधन तथा अन्य संबंधित गतिविधियों में मददगार साबित होगी.

उच्च, मध्यम और तीक्ष्ण रिजॉल्यूशंस वाले तीन कैमरे के साथ ही रिसोर्ससैट-2 में दो ‘सॉलिट स्टेट रिकॉर्डर’ हैं. ऐसे प्रत्येक रिकॉर्डर की तस्वीरें कैद करने की क्षमता 200 जीबी की है. इन तस्वीरों को पृथ्वी पर मौजूद केंद्र हासिल कर सकेंगे. इस उपग्रह में कनाडा के ‘कॉमडेव’ द्वारा निर्मित स्वचलित पहचान प्रणाली भी मौजूद है. यह वीएचएफ बैंड की जहाज निगरानी प्रणाली है ताकि पोतों के स्थान, गति तथा अन्य तरह की जानकारी हासिल की जा सके.

संसदीय कार्य राज्य मंत्री वी. नारायणसामी ने इस सफल प्रक्षेपण को ऐतिहासिक करार दिया और कहा कि वैज्ञानिक इस तरह के अधिक प्रयास करें, इसके लिये प्रधानमंत्री तथा सरकार उनके साथ है.

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