एस बैंड स्पेक्ट्रम के आवंटन में कथित घोटाले को लेकर आरोपों के केन्द्र में आये इसरो ने मंगलवार को घोषणा की कि उसने देवास मल्टीमीडिया के साथ करार समाप्त करने की प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी थी.
उसने दावा किया कि इस कारण सरकार को कोई वित्तीय हानि नहीं हुई है. बहरहाल भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अध्यक्ष के राधाकृष्णन ने स्वीकार किया कि वर्ष 2005 में हुए समझौते के ब्यौरों से अंतरिक्ष आयोग या केन्द्रीय कैबिनेट को अवगत नहीं कराया गया.
देवास को इसरो के एक पूर्व अधिकारी ने शुरू किया था और कंपनी को दो उपग्रहों के ट्रांसपोंडर्स का 90 प्रतिशत यूसेज का अधिकार मिलना था. उन्होंने कहा कि एक बिन्दु को केन्द्रीय मंत्रिमंडल को स्पष्ट तौर पर नहीं बताया गया था कि जीसेट 6 और जीसेट 6-ए उपग्रहों का अधिकतर उपयोग इस अनूठे और वाणिज्यिक अनुप्रयोग के लिए किया जायेगा. इसके बारे में मैसर्स देवास और एंट्रिक्स के बीच समझौता हुआ था. {mospagebreak}
एंटिक्स इसरो की वाणिज्यिक शाखा है. देवास और एंट्रिक्स के बीच हुए दावे के कारण दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान होने संबंधी मीडिया खबरों के बीच इसरो प्रमुख ने संवाददाता सम्मेलन में स्पष्ट किया कि अभी तक देवास या एंट्रिक्स को न तो स्पेक्ट्रम, न ही ट्रांसपोडर्स और न ही उपग्रह दिये गये हैं. संवाददाता सम्मेलन में इसरो के पूर्व प्रमुख और योजना आयोग के सदस्य के कस्तूरीरंगन के साथ आये राधाकृष्णन ने कहा, ‘राजस्व हानि का सवाल ही नहीं उठता है.’
उन्होंने कहा कि करार की समीक्षा की प्रक्रिया आठ दिसंबर 2009 में शुरू हुई थी और जल्द ही हम इसके पूरा होने की उम्मीद कर रहे हैं. इसरो प्रमुख ने कहा कि दिसंबर 2009 में उन्होंने अंतरिक्ष आयोग के एक पूर्व सदस्य को शामिल करते हुए एक समिति बनायी थी ताकि सारे मामलों की व्यापक समीक्षा की जा सके. {mospagebreak}
यह पूछे जाने पर कि क्या प्रधानमंत्री सौदे से अवगत थे, उन्होंने कहा कि करार को एंट्रिक्स बोर्ड ने अंतिम रूप दिया था तथा उन्होंने अंतरिक्ष आयोग के समक्ष यह मामला उठाया था. उन्होंने कहा, ‘निर्णय के बाद मैंने प्रधानमंत्री के समक्ष यह मामला रखा जो हमारे प्रभारी मंत्री हैं. यही कारण है कि इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री कार्यालय ने प्रेस नोट जारी किया है.’ इसी मुद्दे पर कस्तूरीरंगन ने इस बात की ओर की ध्यान दिलाया की समीक्षा प्रक्रिया निर्णय लेने की प्रणाली के पुख्ता होने का सबूत है.
राधाकृष्णन ने कहा कि समय बिल्कुल भी नष्ट नहीं किया गया और कोई ढिलाई नहीं बरती गयी. ‘हमें निर्णय करना है लेकिन समीक्षा प्रक्रिया काफी जटिल है. हम उसी से गुजर रहे है. हमें यह सुनिश्चित करना है कि सरकार को कोई घाटा न हो या नुकसान न पहुंचे.’ समीक्षा प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए राधाकृष्णन ने कहा कि करार की हर कोण से समीक्षा की जा रही है. कानून मंत्रालय से भी समाप्त करने की प्रक्रिया के बारे में विचार विमर्श किया जा रहा है. {mospagebreak}
यह पूछे जाने पर कि क्या इसरो अधिकारी इस तथ्य से अवगत थे कि जीसैट 6 और जीसैट 6 ए के ट्रांसपोंडर्स में अधिकतम भागीदारी देवास को मिलने वाली थी, उन्होंने कहा कि यह आतंरिक मामला है और आवश्यक कार्रवाई की जायेगी. उन्होंने कहा कि एंट्रिक्स बोर्ड के सदस्य शायद देवास पहलू से अवगत हो सकते हों. यह पूछे जाने पर कि करार में कोई प्रतिस्पर्धी बोलियां क्यों नहीं लगायी गयीं, तो राधाकृष्णन ने कहा कि 2003 में यह नयी सेवा का मामला था और उस समय किसी के पास ऐसी प्रौद्योगिकी नहीं थी.
कस्तूरीरंगन ने कहा कि नयी प्रौद्योगिकी देवास ने विकसित की थी जो अंतरराष्ट्रीय कंसोर्शियम का हिस्सा थी. राधाकृष्णन ने कहा, ‘अभी तक हमारा करार कायम है. इसे समाप्त नहीं किया गया है. समाप्त करने की प्रक्रिया जारी है. समाप्त करने का निर्णय जुलाई 2010 में किया गया. हम इसे अंजाम देने की प्रक्रिया में हैं.’ उन्होंने कहा कि करार को समाप्त करने का निर्णय किया क्योंकि स्पेक्ट्रम की जरूरत राष्ट्रीय सामरिक मकसद के लिए थी. यह निर्णय सरकार और जनता के हित में किया गया.