बिहार के मानव संसाधन विकास मंत्री प्रशांत कुमार शाही ने कहा कि विश्वविद्यालयों के कामकाज में सरकार का कितना हस्तक्षेप हो इस मुद्दे को ध्यान में रखकर उनकी स्वायत्तता पर बहस होनी चाहिए.
शाही ने उच्च शिक्षा पर आयोजित एक सम्मेलन में कहा, ‘मानव संसाधन विकास विभाग का बिहार में योजना और गैर योजना मद में 12 हजार करोड रुपये का बजट है. इसमें से तीन हजार करोड़ रुपये विश्वविद्यालयों के शिक्षक तथा शिक्षकेतर कर्मचारियों के वेतन और पेंशन आदि पर खर्च होते हैं. देश की प्रतिष्ठित सर्वे एजेंसियों की रेटिंग में राज्य का एक भी विश्वविद्यालय और कालेज शुमार नहीं. पिछले अनुभवों के आधार पर इस बात पर चर्चा जरूरी है कि विश्वविद्यालयों के कामकाज में किस हद तक सरकार और अन्य संस्थानों का हस्तक्षेप हो.’
उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों के वर्तमान कामकाज को देखते हुए उनकी स्वायत्तता पर बहस जरूरी है. शिक्षा मंत्री ने कहा कि प्रोफेसर और कुलपतियों को बुनियादी ढांचा विकास के काम लगाने से अकादमिक कार्य प्रभावित होगा. ऐसे में देखना होगा कि अकादमिक कार्य के अलावा अन्य कार्य में राज्य सरकार की क्या भूमिका हो सकती है.
शाही ने राज्यपालों को विश्वविद्यालय के कुलाधिपति बनाने पर भी राष्ट्रस्तर पर बहस पर जोर देते हुए कहा, ‘आजादी के बाद यह व्यवस्था शुरू हुई थी आज परिस्थितियां बिल्कुल अलग हैं. 65 वर्ष के अनुभव को देखते हुए कुलाधिपति व्यवस्था में परिवर्तन की दरकार को लेकर लोग उत्सुक हैं ताकि उच्च शिक्षा सुचारु हो सके.’ उन्होंने खेद व्यक्त किया कि राज्य का शिक्षा के मामले में गौरवशाली इतिहास अब नहीं रह गया है.
दो दिवसीय सम्मेलन का आयोजन बिहार सरकार और इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एंटरप्राइज की ओर से संयुक्त रूप से किया गया है.