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...ऐसा गांव जहां इंसानों से ज्यादा हैं मोर

मध्य प्रदेश के नीमच जिले के बासनियां गांव की पहचान मोरों के गांव के तौर पर बन गई है. इस गांव में मोरों की संख्या यहां की आबादी से दो गुना है.

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मोर
मोर

मध्य प्रदेश के नीमच जिले के बासनियां गांव की पहचान मोरों के गांव के तौर पर बन गई है. इस गांव में मोरों की संख्या यहां की आबादी से दो गुना है.

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अरावली पहाड़ी के नीचे बसे बासनियां गांव के लोगों को पशु-पक्षियों से बेहद लगाव है. यही कारण है कि यहां मोर जैसा पक्षी भी आसानी से विचरण करता नजर आ जाता है. गांव का हाल यह है कि हर तरफ मोर नजर आते हैं. खेत हो, खलिहान हो या फिर घरों की छत जहां भी नजर दौड़ाई जाए, वहां सिर्फ राष्ट्रीय पक्ष ही नजर आते हैं.

इस गांव में मोर और इंसानो के बीच दोस्ताना रिश्ते हो गए हैं. आलम यह है कि इंसान को देखकर मोर भागते नहीं बल्कि उसकी ओर दौड़े चले आते हैं. मोर को इस बात का जरा भी डर नहीं होता है कि आदमी के पास जाने में उसे किसी तरह का खतरा हो सकता है.

गांव के मदनलाल बताते हैं कि यहां के लोग पशु-पक्षियों से बहुत लगाव रखते है. बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक इस बात का ख्याल रखते हैं कि किसी पशु-पक्षी को किसी तरह की परेशानी न हो. मोरों की बढ़ती तादात के लिए वे यहां की हरियाली और वातावरण को श्रेय देते हैं.

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बासनियां गांव की आबादी लगभग 400 है, लेकिन गांव के लोग मोरों की संख्या दो गुना यानी 800 से ज्यादा होने का दावा करते हैं. गांव में पक्षियों के प्रति बढ़े प्रेम से हर कोई प्रभावित है.

गांव के लोग मानते हैं कि प्राकृतिक संतुलन के लिए इंसान वनस्पति के साथ पशु-पक्षियों की संख्या में इजाफा जरूरी है. मोरों के गांव के तौर पर पहचान बना चुके बासनियां गांव के लोग सभी पशु-पक्षियों की हिफाजत के प्रति सजग है.

वे चाहते हैं कि उनका गांव पशु-पक्षियों के संरक्षण के मामले में आदर्श गांव बन जाए.

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