दक्षिण अफ्रीका में ट्रेड यूनियन परिसंघ के प्रमुख ने देश में बेरोजगारी की समस्या के समाधान के लिए सरकार से भारत में चल रही ‘महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गांरटी योजना’ (मनरेगा) का मॉडल अपनाने पर विचार करने को कहा है.
प्रभावशाली ‘कांग्रेस ऑफ दक्षिण अफ्रीकन ट्रेड यूनियन्स’ (कोसातू) की प्रमुख ज्वेलिनजिमा वावी का मानना है कि भारत में अपनाया जा रहा मॉडल दक्षिण अफ्रीका के लिए भी उपयोगी साबित हो सकता है.
जोहान्सबर्ग यूनिवर्सिटी में संवैधानिक रोजगार गारंटी विषय पर आयोजित सम्मेलन में वावी ने देश में बेरोजगारी के आंकड़ों का ब्यौरा दिया. वावी ने कहा कि दक्षिण अफ्रीकी संविधान में कहा गया है कि ‘हर किसी को उचित रूप से काम करने का अधिकार है’ लेकिन यह भारत की तरह खास तौर पर काम के अधिकार की गारंटी नहीं देता है.
भारत में यह योजना 2005 में कानून के रूप में अस्तित्व में आई थी. यह प्रत्येक वित्त वर्ष में ग्रामीण क्षेत्र के किसी भी वयस्क सदस्य को वैधानिक न्यूनतम मजदूरी पर 100 दिन के रोजगार की कानूनी गारंटी प्रदान करती है. महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) ग्रामीण भारत में रहने वाले उन अर्ध एवं अकुशल लोगों की मदद के लिए लागू किया गया था जिनमें से अधिकतर गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर करते हैं.
उन्होंने कहा कि फर्जीवाड़े जैसी समस्याओं के बावजूद मनरेगा ने भूख को कम किया है लोगों का आत्मसम्मान बढ़ाया है तथा महिलाओं और समाज को सशक्त किया है. वावी ने कहा, ‘इस कार्यक्रम ने भारत सरकार की लोकप्रियता बढ़ाई है और एएनसी में मेरे साथियों को यह बात ध्यान में रखना चाहिए.’ उन्होंने कहा कि भारत और ब्राजील में एक जैसी योजना है और दोनों ही देशों ने रोजगार के लिए वह तरीका अपनाया जो बाजार कभी नहीं करेगा.
वावी के अनुसार, ‘हमारे यहां 60 लाख लोग ऐसे हैं जो काम तो करना चाहते हैं लेकिन रोजगार से वंचित हैं. इनमें से ज्यादातर लोग अशिक्षित और बिना कौशल वाले अश्वेत, महिलाएं और युवा हैं.’ गौरतलब है कि वावी की इन टिप्पणियों से एक दिन पहले ही देश के वित्त मंत्री प्रवीण गोरधन ने सरकार के नए रोजगार कोष का विस्तृत ब्यौरा दिया.