प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भारत-पाकिस्तान रिश्तों में एक ‘नया अध्याय’ शुरू करने का आह्वान किया और इसके साथ साथ उन्होंने दक्षेस मुक्त व्यापार समझौते (साफ्टा) के तहत दोनों देशों के बीच वरीयता के साथ व्यापार की व्यवस्था के लिए समझौते (पीटीए) का प्रस्ताव किया है.
इस समझौते से 2016 तक दोनों के बीच व्यापार में सीमा शुल्क शून्य हो जाएगा. दोनों देशों ने वीजा नियमों को उदार बनाने पर भी सहमति जताई.
यहां 17वें दक्षेस शिखर सम्मेलन के मौके पर मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी की अलग से एक घंटे की बैठक हुई.
बैठक में सिंह और गिलानी के बीच द्विपक्षीय व्यापार एमएफएन के आधार पर करने की सहमति बनी. बैठक में दोनों नेताओं ने एक दूसरे के नागरिकों को अपने यहां आने जाने का वीजा जारी करने की उदार व्यवस्था जल्द लागू करने का फैसला किया.
दोनों ने भारत-पाक संयुक्त आयोग को फिर से शुरू करने की सहमति जताई. यह आयोग 2005 से ठप है.
साफ्टा करार 2004 में इस्लामाबाद में हुए दक्षेस शिखर सम्मेलन के दौरान हुआ था. इसने बांग्लादेश, भारत, भूटान, मालदीव, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका के 1.8 अरब लोगों के लिए मुक्त व्यापार क्षेत्र बना दिया है.
पिछले तीन बरस में दोनों नेताओं की कई मुलाकात हो चुकी है और पिछले 18 माह में यह दोनों तीसरी बार एक दूसरे से मिले.
मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि पूर्व में दक्षिण एशिया मुक्त व्यापार समझौता (साफ्टा) को पूरी तरह लागू करने के बारे में जो निर्णय किया गया था, उसे आगे बढ़ाने की दिशा में बैठक में ठोस पहल होनी चाहिए. साफ्टा के पूरी तरह क्रियान्वित करने को लेकर उन्होंने कहा कि शिखर सम्मेलन में वित्त मंत्रियों को पूंजी प्रवाह तथा निवेश को बढ़ावा देने एवं साफ्टा संवेदनशील सूची को समाप्त करने के बाद के नतीजों की समीक्षा की जिम्मेदारी दी जानी चाहिए.
मनमोहन सिंह ने कहा कि अगर दक्षिण एशियाई देश वैश्विकृत विश्व में अपनी अर्थव्यवस्थाओं का भविष्य देखते हैं तो उनके उद्योगों को दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा करना सीखना होगा.
उन्होंने कहा, ‘हम सभी अपनी अपनी तुलनात्मक लाभ की शक्ति का फायदा उठा सकते हैं. इसमें पनबिजली तथा प्राकृतिक संसाधन, पारगमन से आय की संभावना, समुद्री संसाधन, हमारे वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकी आधार एवं आने वाले साल में खपत एवं निवेश को आगे ले जाने वाली युवा आबादी शामिल हैं. हमें निवेश पर दक्षेस समझौते को अंतिम रूप देने के मामले को गति देनी चाहिए.’
पिछले सप्ताह जी-20 शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले सिंह ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के संकट का जिक्र किया. उन्होंने कहा कि इस संकट ने विकासशील देशों पर बेवजह बोझ डाल दिया है.
उन्होंने कहा, ‘हम उम्मीद करते हैं कि बड़ी अर्थव्यवस्थाओं वाले देश खासकर यूरो क्षेत्र के नेता बुद्धिमानी और इच्छाशक्ति दिखाएंगे जो वैश्विक अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिये जरूरी है.’ बहरहाल, प्रधानमंत्री ने यह भी कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के पुनरूद्धार में वक्त लगेगा.
मनमोहन सिंह ने कहा कि हमारे जैसे विकासशील देशों पर पूंजी, निवेश तथा निर्यात के लिये बाजार का दबाव रहेगा. हमें दक्षिण एशिया में वृद्धि और निवेश के लिये नये रास्ते और संसाधनों का उपयुक्त रास्ता तलाशना होगा.
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा, ‘यदि हम अपने देश में विकास के लिए अनुकूल वातावरण बना पाते हैं, तो इसकी कोई वजह नहीं है कि हमारे निवेशक एक दसरे के यहां जाएंगे. व्यापारिक रिश्तों के सामान्यीकरण से दक्षिण एशिया में आपसी लाभकारी व्यापार के लिए भारी संभावनाएं पैदा होंगी.’ सिंह ने कहा कि उन्हें बातचीत में लगा कि दक्षिण एशिया के नेता बातचीत में दक्षेस को ज्यादा सार्थक और समृद्ध बनाने की इच्छा और प्रतिबद्धता दिख रही है.
इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने कहा, ‘यह बात भी सही है कि काफी कुछ किए जाने की जरूरत है, पर राजनीतिक इच्छा यहां है. हम सभी यह मानते हैं कि हमारे प्रत्येक देश के लिए क्षेत्रीय सहयोग काफी जरूरी है.’ उन्होंने एक बार फिर से भरोसा दिलाया कि भारत अपनी क्षमता के अनुसार दक्षेस को एक आम शांति, समृद्धि और सहयोग में भागीदारी के विचार को आगे बढ़ाने में भूमिका निभाएगा.
प्रधानमंत्री ने कहा कि दक्षेस के नेताओं को एक ऐसा वातावरण बनाने के लिए काम करना चाहिए जिससे यहां सृजित हुई धन संपदा को निवेश दोबारा क्षेत्र में ही किया जाए.
उन्होंने कहा, ‘यह हमारी बिना सीमाओं की क्षेत्रीय अर्थव्यवस्था के विचार का सबसे बड़ी उपलब्धि होगा.’ उन्होंने कहा कि कठिनाइयों के बावजूद दक्षेस देश पिछले कुछ बरस के दौरान सम्मानजनक वृद्धि दर हासिल करने में सफल रहे हैं.
प्रधानमंत्री ने कहा कि दक्षेस को क्षेत्रीय वायु सेवा करार को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए. इसके लिए भारत अगले साल अधिकारियों की बैठक आयोजित कर रहा है. उन्होंने अपने भाषण में क्षेत्रीय रेलवे करार और मोटर वाहन करार का भी उल्लेख किया, जिन पर लंबे समय से विचार-विमर्श चल रहा है.
प्रधानमंत्री सिंह ने कहा, ‘आइये हम इन समझौतों को प्राथमिक आधार पर तार्किक परिणति तक पहुंचाने के लिये सहमत हों. भारत, मालदीव और श्रीलंका क्षेत्रीय नौक सेवाओं के विकास की प्रक्रिया में हैं. हमें उप महाद्वीप के अन्य हिस्सों में इस प्रकार की कई और संपर्क सुविधाएं स्थापित करनी चाहिए.’ उन्होंने काल दरों, दूरसंचार शुल्क तथा इंटरकनेक्शन टर्मिनेशन शुल्क को कम करने के लिये दूरसंचार संपर्क में सुधार पर जोर दिया.
प्रधानमंत्री ने दक्षिण एशियाई पोस्टल यूनियन की स्थापना पर सहमत होने को लेकर दक्षेस के ‘पोस्टल एडमिनिस्ट्रेशन’ की सराहना की. उन्होंने कहा कि भारत में यूनियन के अस्थायी सचिवालय तथा अपने पोस्टल स्टाफ कालेज में हर साल 10 दक्षेस अधिकारियों के लिये प्रशिक्षण पाठ्यक्रम प्रोयोजित करने को लेकर हमें खुशी है.
उन्होंने सदस्य देशों के बीच टेलीविजन प्रसारण तथा फिल्मों के आदान-प्रदान के मामले में सहयोग पर जोर दिया.
सिंह ने कहा, ‘समय आ गया है कि हम दक्षेस देशों के बीच जो सूचना की कमी है उससे बाहर निकले. हमें अपने लोगों को एक-दूसरे के बारे में सीखने के लिये प्रोत्साहित करना चाहिए.’ उन्होंने दक्षिण एशियाई क्षेत्र में लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने के लिये भारत द्वारा उठाये जाने वाले कदमों के बारे में भी घोषणा की.
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत क्षेत्र में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये दक्षेस क्षेत्र के शीर्ष यात्रा परिचालकों का सम्मेलन आयोजित करेगा.
उन्होंने कहा, ‘हम दक्षिण एशिया के प्राचीन इतिहास पर यात्रा प्रदर्शनी स्थापित करने की दिशा में पहल करेंगे. इसमें सदस्य देशों द्वारा चुने गये पुरातत्व नजरिये से महत्वपूर्ण चीजों को रखा जाएगा. प्रदर्शनी तीन-मीन महीने के लिये हमारे राष्ट्रीय संग्राहलयों में आयोजित की जा सकती है.’
प्रधानमंत्री सिंह ने इस बात का जिक्र किया कि दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय में स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम जुलाई, 2010 में शुरू हुआ. उन्होंने कहा कि भारत दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय के लिए दक्षेस रजत जयंती छात्रवृत्तियों को 50 से बढ़ाकर 100 करेगा. इनमें से 75 स्नातकोत्तर और 25 पीएचडी के लिए होंगी.
सिंह ने कहा, ‘तेज वृद्धि के बीच अपने पर्यावरण का संरक्षण जरूरी है. पिछले साल जलवायु परिवर्तन पर भारत की जिस प्रतिबद्धता की हमने घोषणा की थी, वह स्थापित हो गई है. अब हम अपने दक्षेस भागीदारों से परियोजना प्रस्तावों का इंतजार कर रहे हैं.’ प्रधानमंत्री ने भारतीय वन अनुसंधान संस्थान, देहरादून में दक्षेस के सदस्य देशों के लिए दस स्नातकोत्तर और पीएचडी की छात्रवृत्तियों की घोषणा की. उन्होंने कहा कि दक्षिण एशिया का भविष्य हमारे हाथों में है. उन्होंने कहा कि दक्षेस ऐसा मंच उपलब्ध कराता है, जो आपसी मतभेदों को दूर करने में सहायक है.
सिंह ने कहा, ‘हमें लंबी दूरी तय करनी है, पर मुझे भरोसा है कि हम निरंतर प्रयासों से अपनी पूरी क्षमता का इस्तेमाल कर सकेंगे.’ अपना भाषण समाप्त करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा, ‘हमें एक दूसरे पर भरोसा करना सीखना होगा. एक दूसरे से सीखना होगा. हमारे देशों की सुरक्षा और स्थायित्व एक-दूसरे से जुड़ा है.’ उन्होंने कहा, ‘हम एक-दूसरे से अलग थलग रहकर समृद्ध नहीं हो सकते. हम अपने समक्ष आ रही कई तरह की समस्याओं को अपनी महत्वाकांक्षा और सपने में आड़े आने नहीं दे सकते.’