भूमि अधिग्रहण को लेकर बढ़त़े विवाद के बीच सरकार ने एक नए भूमि अधिग्रहण विधेयक का मसौदा पेश किया जिसमें भूमि मालिकों को पर्याप्त मुआवजा देने और विस्थापितों का पुनर्वास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से पारदर्शी कानूनी रूपरेखा तैयार की गई है.
बहुप्रतीक्षित ‘राष्ट्रीय भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास व पुनर्स्थापना विधेयक, 2011’ के मसौदे में कहा गया है, ‘शहरी इलाकों के मामले में मुआवजा राशि बाजार मूल्य के दोगुने से कम नहीं होगी, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह बाजार मूल्य के छह गुना से कम नहीं होगी.’
विधेयक के मसौदे में प्रस्ताव किया गया है कि अगर सरकार राष्ट्रीय राजमार्ग के अलावा सार्वजनिक उद्देश्य या पीपीपी परियोजनाओं के लिए निजी कंपनियों के इस्तेमाल के वास्ते भूमि का अधिग्रहण करती है तो परियोजना से प्रभावित 80 प्रतिशत परिवारों की सहमति लेनी अनिवार्य होगी.
मसौदे में यह भी कहा गया है कि जिस सार्वजनिक कार्य का उल्लेख होगा उसमें बाद में बदलाव नहीं किया जा सकेगा. मसौदे में सुझाव दिया गया है कि किसी भी परिस्थिति में बहुफसलों, सिंचाई वाली भूमि का अधिग्रहण नहीं किया जाएगा. इस तरह की अधिकांश भूमि पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल और बिहार के गंगा के मैदान में स्थित हैं. साथ ही सरकार निजी उद्देश्य के लिए निजी कंपनियों की ओर से भूमि का अधिग्रहण नहीं करेगी.
ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि भारत में भूमि का बाजार काफी ‘त्रुटिपूर्ण’ है. मसौदे की प्रस्तावना में लिखा गया है कि जो भूमि का अधिग्रहण करना चाहते हैं और जिनकी भूमि का अधिग्रहण किया जा रहा है, उनके अधिकार एवं सूचनाओं के मामले में भारी असंतुलन है.
‘यही वजह है कि सरकार को पारदर्शी एवं लचीले नियम लागू करने में भूमिका अदा करनी पड़ रही है जिससे इसे लागू किया जाना सुनिश्चित हो सके.’ विधेयक के मसौदे में सरकार को देश की रक्षा एवं सुरक्षा के मामलों में भूमि का अधिग्रहण करने के लिए ‘आपात नियम’ लागू करने के लिए अधिकृत करने का प्रस्ताव है. सरकार आपातकाल या प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में पुनर्स्थापना एवं पुनर्वास की जरूरतों को पूरा करने एवं किसी ‘दुर्लभ मामलों’ में भूमि का अधिग्रहण कर सकेगी.
विधेयक के मसौदे की विशेषताओं में भूमि मालिकों एवं रोजी रोटी का साधन गंवाने वाले लोगों के लिए एक व्यापक पुनर्वास पैकेज शामिल है. इनमें वे लोग भी शामिल हैं जो रोजी रोटी के लिए अधिग्रहित की जा रही भूमि पर निर्भर हैं. मसौदे में 12 महीने के लिए प्रति माह प्रति परिवार 3,000 रुपये और 20 साल के लिए प्रति परिवार 2,000 रुपये पेंशन सुविधा का प्रस्ताव शामिल है. साथ ही इसमें परिवार के एक सदस्य को रोजगार उपलब्ध कराना और अगर रोजगार एवं अन्य प्रोत्साहनों की पेशकश नहीं की जाती तो दो लाख रुपये उपलब्ध कराने की अनिवार्यता है.
भूमि मालिकों के लिए मसौदे में यह प्रावधान भी किया गया है कि अगर भूमि मालिक की जमीन का अधिग्रहण सिंचाई परियोजना के लिए किया गया है तो प्रत्येक परिवार के लिए परियोजना क्षेत्र में एक एकड़ भूमि उपलब्ध कराई जाए. शहरीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण के मामले में विकसित भूमि का 20 प्रतिशत आरक्षित किया जाएगा और अधिग्रहित भूमि के अनुपात में मालिकों को उसकी पेशकश की जाएगी.
वहीं दूसरी ओर, अगर आदिवासी की भूमि का अधिग्रहण किया जाता है तो प्रत्येक परियोजना में प्रत्येक अनुसूचित जनजाति परिवार को एक एकड़ भूमि दी जानी चाहिए. इसमें यह भी कहा गया है कि जिन परिवारों की जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है उसे 50,000 रुपये बतौर एकमुश्त वित्तीय सहायता दी जानी चाहिए.
रमेश ने कहा कि भूमि अधिग्रहण एवं पुनर्वास व पुनर्स्थापना को एक विधेयक में शामिल किया गया है क्योंकि ये एक सिक्के के दो पहलू हैं. सोनिया गांधी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने इन्हें सम्मिलित करने की सिफारिश की थी.
मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो देखने के लिए जाएं m.aajtak.in पर.