एक नए शोध के मुताबिक ए2 एलील जीन से युक्त भारतीय नस्लों की गाय, भैंसें विदेशी नस्लों की तुलना में बेहतर और स्वास्थ्यवर्धक दूध देती हैं.
नेशनल ब्यूरो ऑफ एनिमल जेनेटिक रिसोर्स (एनबीएजीआर) की रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘भारतीय नस्लों की गाय, भैसों में ए2 एलील जीन 100 प्रतिशत, जबकि विदेशी नस्लों में यह करीब 60 प्रतिशत होता है.’’
रिपोर्ट का कहना है कि भारतीय नस्लों के दूध में इस एलील की आवृत्ति 1.0 (100 प्रतिशत) होती है जबकि विदेशी में यह तकरीबन 0.6 प्रतिशत होती है.
वर्ष 1984 में स्थापित एनबीएजीआर भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद का प्रमुख सहयोगी है और यह हरियाणा के करनाल में स्थित है. एनबीएजीआर के निदेशक बीके जोशी ने कहा कि देसी गायों जैसे लाल सिंधी, साहीवाल, थारपारकर राठी और गिर आदि में बीटा केसिन के ए2 एलील के स्तर का पता लगाने के बाद यह निष्कर्ष निकला गया है.
उन्होंने कहा, ‘‘ए2 का काउंटर एलील ए1 है, जो मधुमेह, मोटापा, हृदय संबंधी बीमारियों आदि से संबंधित है. रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘विदेशी नस्ल की गायें भारतीय नस्लों से अधिक दूध देती हैं लेकिन ए1 की सांद्रता अधिक होने के कारण उनका (विदेशी नस्लों का) दूध कम गुणवत्ता वाला होता है.’’
रिपोर्ट का कहना है कि इस दूध का लंबे समय तक इस्तेमाल करने से स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियां खड़ी हो सकती हैं. जोशी ने कहा कि इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने भारतीय गायों की 22 नस्लों की जांच की. लाल सिंधी, साहीवाल, थारपारकर, राठी और गिर में ए2 का स्तर 100 प्रतिशत पाया गया जबकि अन्य भारतीय नस्लों में यह 94 प्रतिशत रहा.