अमेरिका और ईरान के बीच बढ़ते तनाव से पेट्रोलियम बाजार की चिंताएं बढती जा रही हैं और विशेषज्ञों को लगता है कि विश्व अर्थव्यवस्था की नरमी के बावजूद ईरान संकट के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस साल भी कच्चे तेल के दाम 100 डालर प्रति बैरल से नीचे आने के आसार नहीं दिखते.
ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर उसके खिलाफ अमेरिका और यूरोप की ओर से लगी अर्थिक पाबंदी और फारस की खाड़ी में तनाव, पश्चिमी एशियाई देशों में जन आंदोलनों, वेनेजुएला और अंगालो में चुनाव तथा नाइजीरिया और यमन में जारी हिंसा के बीच 2012 में कच्चे तेल का बाजार गर्म रहने की भविष्यवाणी की जा रही है.
ऐसे में भारत में पेट्रोलियम सब्सिडी बढ़ने और उसकी भरपाई को लेकर आर्थिक विशेषज्ञों और तेल कंपनियों की चिंता बढी है. भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की तेल गैस उत्खनन कंपनी तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओएनजीसी) के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक सुधीर वासुदेव ने कहा, ‘कच्चे तेल के दाम बढ़ने से ओएनजीसी की चिंता बढ़ जाती है, इससे कंपनी पर सब्सिडी बोझ बढ़ जाता है.’
उल्लेखनीय है कि पेट्रोलियम पदार्थों की बिक्री पर मार्केटिंग कंपनियों को होने वाले नुकसान की एक तिहाई भरपाई ओएनजीसी, आयल इंडिया और गेल को करनी पड़ती है. चालू वित्त वर्ष (अप्रैल-मार्च 2011-12) में कुल पेट्रोलियम सब्सिडी 1,40,000 करोड़ रुपये से अधिक रहने का अनुमान है.
कंसल्टेंसी फर्म एसएमसी कामट्रेड के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक डी.के. अग्रवाल के अनुसार, ‘पश्चिमी देशों और ईरान संकट के चलते निकट भविष्य में कच्चे तेल के दामों के 95 से 110 डालर प्रति बैरल के दायरे में मजबूत बने रहने के आसार हैं. पेट्रोलियम मंत्रालय में भी ईरान और पश्चिम एशियाई देशों में असहज स्थिति को देखते हुये कच्चे तेल की आपूर्ति को लेकर चिंता बढ़ी है.
कच्चे तेल का भारतीय खरीद मूल्य भी पिछले कुछ दिनों से लगातार बढ़ता जा रहा है. अक्तूबर 2011 में औसत खरीद मूल्य जहां 106 डालर प्रति बैरल था वहीं नवंबर में यह 109 डालर और जनवरी 2012 में औसत 112 डालर प्रति बैरल तक पहुंच गया. अमेरिकी प्रतिबंध के चलते ईरान के साथ व्यापार करने में भी कठिनाई पैदा हो रही है.
सुधीर वासुदेव कहते हैं, ‘मुझे नहीं लगता कि आने वाले दिनों में कच्चा तेल 100 डालर से नीचे आयेगा. पिछले नौ महीनों के दौरान इसका करीब 110 डालर का औसत रहा है. लीबिया और ईरान को लेकर समस्या खड़ी हो रही है, ईरानी तेल पर यूरोप यदि प्रतिबंध लगाता है तो कच्चा तेल महंगा होगा. हालांकि, कहा यह भी जा रहा है कि प्रतिबंध से ईरान का तेल एशिया को ज्यादा मिलेगा, लेकिन ईरान की एस्टेट आफ हार्मूज (जलडमरू मध्य) से आवाजाही बाधित करने की धमकी से आपूर्ति कैसे होगी यह देखना होगा.’
एसएमसी के अग्रवाल के अनुसार वर्ष 2012 कुल मिलाकर एक जटिल वर्ष होगा. एक तरफ अमेरिका और यूरोपीय देशों में आर्थिक कमजोरी चल रही है जिसमें निकट भविष्य में ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं करनी चाहिये. दूसरी तरफ चीन में रियल एस्टेट क्षेत्र में सुस्ती की आशंका है. इसके बावजूद यह माना जा रहा है कि 2012 में कच्चे तेल की मांग बढ़ेगी. वर्ष के दौरान कच्चे तेल की मांग में 15 लाख बैरल प्रतिदिन वृद्धि होने का अनुमान है.