आज हम बच्चों से जुड़ी एक ऐसी कड़वी हकीकत पेश करने जा रहे हैं, जिसे जानने के बाद आप चौंक जाएंगे. बच्चे हमारी आबादी का करीब 48 फीसदी हिस्सा हैं. जिस उम्र में बच्चों के हाथों में क़लम होनी चाहिए, उन हाथों मे बंदूकें हैं. जिन हाथों में किताबें होनी चाहिए, वो हाथ ख़ून की स्याही से गुनाहों के पन्ने भर रहे हैं.
आपका बच्चा कहां जाता है. किससे मिलता हैं और कितनी देर घर से बाहर रहता है. उसकी हर ख़बर रखिए. ये हिदायत नहीं बल्कि एक चेतावनी है और ये चेतावनी हम नहीं बल्कि खुद पुलिस दे रही है. जानते हैं ये चेतावनी क्यों दी जा रही है?
क्राइम के आंकड़े गवाह हैं कि देश के बच्चों के क़दम बड़ी तेजी से जुर्म की काली दुनिया की ओर बढ़ रहे हैं. जिन हाथों में क़लम होनी चाहिए वो नन्हे हाथ कट्टे, बम और चाकू थामने को बेकरार हो रहे हैं.
7 से 16 साल तक के मासूम बच्चे लूट, क़त्ल, झपटमारी, चोरी, जेबतराशी और बलात्कार जैसी संगीन वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. आप ये जानकार और भी हैरान रह जाएंगे कि इन बच्चों में लड़कियों की भी एक बड़ी जमात शामिल है जो क्राइम की काली दुनिया में दस्तक दे चुकी हैं.
आखिर ये बच्चे तेजी से क्राइम की दुनिया का रुख क्यों कर रहे हैं? क्या इसके लिए मां-बाप जिम्मेदार हैं? स्कूल-कालेज जिम्मेदार हैं? या इस बदलते दौर में हम अपने बच्चों की जरुरतों को नज़रअंदाज़ कर रहे हैं?
उम्र- दस साल. पेशा- लूट. दिल्ली के बच्चों का ऐसा गैंग जिसने पुलिस की नींद हराम कर दी. इस गैंग का सरगना अपने छह साथियों के साथ जिस घर का रुख कर लेता वो घर तबाह और बर्बाद हो जाता. बच्चों का ये गैंग जिस घर को निशाना बनाता वो घर जलकर ख़ाक़ हो जाता.
मौज मस्ती से शुरू होता था उन बच्चों का मिशन. खेल-खेल में वो बनाते थे खतरनाक प्लान. फिर चुनते थे अपना शिकार. उनके पास बंद पड़े घरों का पूरा हिसाब-किताब होता था, और फिर वो निकल पड़ते थे अपने मिशन पर.
बच्चों के मिशन ख़त्म होने के बाद वहां कुछ नहीं बचता था. भीतर से घर-घर नहीं रहता था. सब कुछ ख़त्म हो जाता था. बस वहां राख़ ही राख़ नज़र आती थी. बच्चों का ये गैंग फ्ल्यूड लेकर चलता था. गैंग के लड़के इसी से नशा करते थे, और चोरी के बाद फ्लूड को बचे सामानों पर छिड़क पर आग लगा देते थे. चोरी के सबूत मिटाने का जो तरीका इस गिरोह ने ढूंढा वो ख़तरनाक भी था और डरावना भी.
ऐसा ही शातिर और खूंखार था बच्चों का फायर गैंग. गैंग के बदमाश बच्चों को पहले से ख़बर हो जाती थी कि कौन शादी में बाहर जाने वाला है. कौन घर में अकेला रहता है, और किस वक़्त कौन-सा फ्लैट खाली रहता है. इन खाली घरों में बच्चा गैंग के बदमाश बच्चे धावा बोलते और फिर राख छोड़ फ़रार हो जाते थे. ये बच्चा गैंग करीब 200 वारदातों को अंजाम दे चुका है.
ऐसा नहीं है कि बच्चा गैंग के बदमाश पुलिस के हत्थे नहीं चढ़े ये कई बार पकड़े गए. लेकिन हर बार ये नाबालिक होने का फायदा उठाया और बाल-सुधार गृह से फ़रार होते रहे.
इन्हीं बच्चों में एक शख्स है फ़ायर गैंग का सरगना संजू. वो ही संजू जो 10 साल की उम्र से चोरी और लूट की वारदातों को अंजाम देता आ रहा है. संजू ने दिल्ली में वारदातों को अंजाम देने के लिए 8-10 बच्चों का गिरोह बना रखा था.
फरवरी 2011 में दिल्ली के फायर गैंग के इस सरगना का चूहे-बिल्ली का खेल ख़त्म हो गया. गैंग का ये सरगना अब बच्चा नहीं रहा. पहली बार वो बतौर बालिग पुलिस के हाथ लगा. इस बार उसे बाल-सुधार गृह नहीं ले जाया गया. बल्कि सीधे पहुंच जेल की सलाखों के पीछे पहुंचा दिया गया.
ये कैसा कत्ल?
अलाव जलाने के लिये लोग अक्सर लकड़ी और कोयले का इस्तेमाल करते हैं. पर क्या कभी आपने किसी ऐसे अलाव के बारे में सुना है. जिसमें ईंधन के तौर पर लकड़ी के बजाए इंसानी जिस्म जला हो. सुन कर ही रूह कांप जाती है. मगर ये हकीकत है जूनियर गैंग की उस शैतानी करतूत की जिसने बाकायदा एक कत्ल किया, और फिर अलाव के तौर पर लाश को आग लगा कर अपनी हथेलियां गर्म कीं.
जूनियर गैंग की करतूत
स्कूली बच्चों के हाथों हुई किडनैपिंग और कत्ल की ये वो खौफनाक कहानी है जिसपर किसी को यकीन नही हो रहा है. खासतौर पर किडनैंपिंग के बाद इन नाबालिगों ने अपने साथ पढ़ने वाले बच्चे को जिस तरह अगवा किया और कत्ल के लिये जो हथकंडे अपनाए उसे देखकर बड़े से बड़ा पेशेवर अपराधी भी दांतो तले उंगली दबा लेगा.
रोंगटे खड़े कर देने वाली इस कहानी की शुरूआत हुई पटना के गर्दनीबाग इलाके में बने स्कूल से. यहां पांचवी क्लास में पढ़ने वाला बारह साल का अमरजीत एक दोपहर अपने घर के पास पड़ोस के बच्चों के साथ खेल रहा था. जब उसी की क्लास में पढ़ने वाला विजय उसे बुलाकर पास के ही किराए के एक फ्लैट में ले गया.
फ्लैट के अंदर विजय के चार और दोस्त पहले से ही मौजूद थे. अमरजीत को इन लड़कों ने ऑईपॉड देने के बहाने यहां बुलवाया था. मगर उनका इरादा कुछ और ही था. फ्लैट पर पहुंचते ही वहां मौजूद लड़कों ने अमरजीत के साथ हाथापाई शुरू कर दी, और आखिर में लड़कों ने अमरजीत का गला घोंटकर कत्ल कर दिया.
मगर स्कूली लड़कों के इस गैंग का असल काम कत्ल के बाद ही शुरू हुआ. अमरजीत की लाश ठिकाने लगाने के लिये लड़कों ने उसकी लाश को एक बोरे में बंद कर दिया और शाम ढलने का इंतजार करने लगे.
अंधेरा होते ही चारों लड़के बोरे में रखी अमरजीत की लाश साइकिल पर लादकर शहर के एक सुनसान इलाके की ओर चल पड़े. यहां पहुंच कर इन्होंने लाश पर केरोसीन का तेल छिड़का और कत्ल के सुबूत मिटाने के इरादे से उसे आग के हवाले कर दिया. इस तरह से लगी आग कहीं वहां से गुजरने वाले लोगों के दिमाग में शक पैदा न करे इसलिये सभी लड़के उसके चारों ओर बैठ कर आग तापने का नाटक करने लगे. और इस तरह जब अमरजीत की लाश पूरी तरह जल गई तब ये लड़के उसे वहीं छोड़ कर, साइकिल रास्ते में ही छोड़ कर अपने अपने घरों को लौट गये. सबकुछ पहले से सोच कर बनाई गई प्लानिंग के मुताबिक हो रहा था.
नन्हे अमरजीत के कत्ल का ये सनसनीखेज वाकया जिसने भी सुना उसने यही समझा कि अमरजीत की जान बच्चों की आपसी गुटबाजी और दुश्मनी के चलते गई. मगर हकीकत ये है कि बारह साल के अमरजीत का कत्ल दरअसल एक बेहद सोची समझी साजिश का नतीजा था. जिसकी जड़ में था लाखों रुपया.
साजिश की शुरूआत तीन लड़कों ने की जिसमें से आदित्य और लव अमरजीत के ही स्कूल में आठवीं और बारहवीं क्लास में पढ़ते थे. जबकि सूरज आटीआई में पढ़ता था. प्लान था किसी रईस घर के बच्चे को किडनैप कर फिरौती वसूलना. इसके लिये पैसे वाले लड़के को ढूंढने और उसकी रेकी करने की जिम्मेदारी आदित्य की थी. जबकि लव और सूरज ने किडनैपिंग को अमली जामा पहनाने का प्लान तैयार किया था.
इस प्लान के तहत पहले अमरजीत को फुसला कर फ्लैट में बुलाया गया, गला घोंट कर कत्ल किया गया और इसके बाद सुबूत मिटाने के इरादे से लाश को आग के हवाले कर दिया गया. इसके फौरन बाद प्लानिंग के मुताबिक लड़कों ने अमरजीत की मां को फिरौती के लिये फोन किया. और अमरजीत की रिहाई के बदले पांच लाख की फिरौती मांग ली.
पटना के एसएसपी बच्चू सिंह मीणा ने बताया, ‘उसे पहले मार दिया गया फिर डिस्पोज करके फेंकने के बाद तब फिरौती का कॉल दिया. जो बच्चे के माता का मोबाइल नंबर उसने पहले ही ले रखा था. उसी नंबर पर चोरी के सिम और चोरी के सेट से फिरौती की कॉल की गई.’ बीस तारीख को इसी कॉल की सूचना पर पुलिस हरकत में आई.
दरअसल अमरजीत को मार कर फिरौती वसूलने की प्लानिंग बच्चों के इस गैंग ने पहले से ही कर रखी थी. चूंकि अगवा करने के बाद अमरजीत को कैद कर रखना उनके लिये मुश्किल होता लिहाजा सबकी राय थी कि उसे किडनैप करने के फौरन बाद कत्ल कर दिया जाए. और उस के बाद घरवालों को डराकर फिरौती वसूल ली जाए. अमरजीत के घरवालों को फिरौती का फोन करने के लिये लड़कों ने खासतौर पर चोरी के मोबाइल और चोरी के ही सिमकार्ड का इस्तेमाल किया.
एसएसपी बच्चू सिंह मीणा ने कहा, ‘अमरजीत के ही स्कूल में पढने वाले आदित्य आठवी का छात्र था. आदित्य को लगता था कि अमरजीत के पिता काफी संपन्न आदमी है किडनैपिंग करके कुछ पैसे मांगे जाऐ तो काफी पैसे मिल सकते हैं. सबसे दुखद बात ये थी कि इन लोगों ने पहले ही तय कर रखा था कि बच्चे को बुलाकर मार देना है,फिर बाद में फिरौती की बात करनी है..’
शिकंजे में जूनियर गैंग
मगर आखिरकार फिरौती वसूलने की यही नाकाम कोशिश बच्चों के इस गैंग पर भारी पड़ गई. जिस नंबर से बच्चों ने फिरौती वसूलने के लिये कॉल किये वो मोबाइल फोन पुलिस ने ट्रैक कर लिया और इस तरह बच्चों का ये खौफनाक सच सबके सामने आ गया. हालांकि सब कुछ जानने के बावजूद लोगों के लिये अब भी इस पर यकीन करना मुश्किल हो रहा है.
केपीएस स्कूल के प्रिंसिपल एस.एन.शर्मा कहते हैं, ‘ये कल्पना भी नहीं की जा सकती एक बच्चे की लाश जलाकर कोई ताप जाए, लेकिन हमें लगता मास्टर माइंड़ बड़े लड़के हैं जिन्होंने बच्चों को ऐसे काम के लिए उकसाया है.’
मगर बच्चों ने जब अपना जुर्म अपनी जुबान से कुबूला तो यकीन करने के सिवा लोगों के पास कोई चारा भी नहीं था.
आरोपी छात्र आदित्य ने बताया, ‘मारने के बाद उसे बोरे में बंद कर जला दिए. चोरी का मोबाइल लाया उससे उसकी मां को फोनकर बोला कि पांच लाख रुपया चाहिए. उसके बाद उसके बॉडी को सिपारा पुल के पास फेंक कर और साइकिल को जकक्नपुर थाने के पास फेंककर हम आ गये.’
एक ही क्लास और एक ही स्कूल में पढ़ने वाले बेरहम हाथों ने अमरजीत का कत्ल कर डाला, लेकिन चौंकिए मत खून से सने ये नाबालिग हाथ यहीं नहीं रूके उन्होंने उस बच्चे की लाश को बोरे मे बंद कर पहले जलाया और फिर तबतक उसपर अपनी हथेलियां सेंकते जबतक उसकी शिनाख्त का डर नहीं खत्म हो गया.
इस प्रकार का बच्चों में बढ़ता क्राइम ग्राफ सोचने पर मजबूर कर देता है. आखिर क्यों मासूमों की मासूमियत गुम होती जा रही है? आखिर क्यों उस मासूमियत की जगह ले रहा है जुनून? एक ऐसा जुनून. जो उन्हें गुनाहों के अंधेरे में ले जा रहा है.
बच्चा गैंग, फायर गैंग, झपटपार गैंग और बच्चों के गैंग के ना जाने क्या-क्या नाम हैं. ये बच्चे उम्र में तो छोटे हैं लेकिन इनके इरादे बेहद खतरनाक हैं.
यकीन मानिए नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों का सच बेहद चौंकाने वाला है. इस कड़वे सच के मुताबिक हिंदुस्तान में हर साल करीब 34 हज़ार बच्चे क्राइम के मामले में गिरफ्तार हो रहे हैं. इन 34 हजार बच्चों में करीब दो हजार नाबालिग लड़कियां भी जुर्म में शामिल हैं. इनमे 29 हजार बच्चों पर आईपीसी की धाराओं के तहत कार्रवाई की गई है जबकि 5 हजार स्पेशल एंड लोकल लॉ में शामिल पाए गए हैं.
दिल्ली कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राईट्स के चेयरमैन अमोद कंठ कहते हैं, ‘क्राइम बढ़ा है, लेकिन दुनिया में किशोरों द्वारा किए क्राइम प्रतिशत से इंडिया में ये रेट अब भी कम है.’
हैरानी की बात ये है कि क्राइम के दौरान पकडे गए बच्चो में ज्यादा तादाद 16 से 18 साल के बच्चों की है जिनका औसत 63.5 फीसदी है 12 से 16 साल तक के बच्चों की तादात 33.2 फीसदी होती है. जबकि, क्राइम करने वाले 7 से 12 साल के बच्चे 3.3 फीसदी हैं.
इस साल यानी 2011 में अपराधिक मामलों में पकड़े गए 48 बच्चों में से 17 क़त्ल और लूट जैसे संगीन मामलों में शामिल पाए गए हैं.
जरायम के इस नए ट्रेंड में फिक्र की बात ये भी है कि बच्चों से क्राइम करवाने वाले कई गिरोह बाल कानून का फायदा उठा रहे हैं वो बाकायदा संगठित तौर पर ड्रग्स तस्करी चोरी, जेबतराशी का काम बच्चो से करवाते हैं. ऐसे में अगर कोई बच्चा कहीं पकड़ा भी जाए तो असली मुल्जिम पुलिस की पकड़ में नही आता और बाल कानून के तहत बच्चा थोड़े वक्त बाद रिहा हो जाता है.
आज के दौर में मंहगे कपड़े, कीमती गाड़ियों, छोटी उम्र में गर्लफ्रैंड के शौक बच्चों को जरायम की दुनिया में ढकेल रहे हैं. ऐसे में बच्चों के मां-बाप ये जिम्मेदारी है कि वो अपने बच्चों का खास ख्याल रखें और ताकि उनका शौक एक अंधा जुनून में ना बन जाए.
बच्चों का क्राइम रेट दिल्ली में ही नहीं पूरे देश में बढ़ रहा है. लेकिन राजधानी में होने वाले अपराधों का आंकड़ा. सबसे ज्यादा चौंकाने वाला है. कच्ची उम्र में ही छोटे-छोटे बच्चे. क़त्ल, लूट और रेप जैसे संगीन अपराधो को अंजाम दे रहे हैं और फ़िक्र की बात ये है कि ऐसे बच्चों की तादाद दिन ब दिन बढ़ती जा रही है.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े बेहद डराने वाले है. देश की राजधानी में भी बच्चे तेजी से क्राइम की दुनिया में कदम रख रहे हैं. हैरानी की बात यह है कि इन अपराधियो की उम्र महज़ 10 से 16 साल के बीच है.
बच्चों के क्राइम और क्राइम को अंजाम देने के आंकड़ों पर नज़र डालेंगे तो आप हैरान रह जाएंगे.
राजधानी दिल्ली में साल 2009 में ही हत्या के 72, हत्या के प्रयास के 36, गैर इरादतन हत्या के 31, रेप के 14, अगवा करने के 14, डकैती और लूटपाट के 54, सेंधमारी और चोरी के 207 मामले यानी कुल 586 आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं. इनमें से पहली बार पकड़े गए 518 जबकि लगातार क्राइम करने वाले 68 बच्चे हैं.
भारत में बच्चों में तेजी से बढ़ रहे क्राइम रेट का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कुल 586 बच्चों में से 518 बच्चें वो हैं जिन्होंने पहली बार जुर्म की दुनिया में दस्तक दी है.
इस क्राइम ग्राफ ने दिल्ली पुलिस की नींद उड़ा दी है. ये ही वजह है कि कई एनजीओ, दिल्ली पुलिस और सरकारी संस्थानो ने मिल कर ऐसे बच्चो को सुधारने के लिए खास प्रोग्राम चलाना शुरू किया है.
इस तेज़ भागती जिंदगी में जरूरत इस बात कि है कि मां बाप अपने बच्चों का हाथ थामें रहें और उनकी जरुरतों को ख्याल रखें. ताकि इन मासूमों को काली दुनिया के इस दलदल से महफूज़ रखा जा सके.