जम्मू कश्मीर पर वार्ता प्रक्रिया को बढ़ाने के लिए ‘‘छोटे-छोटे कदमों’’ की वकालत करते हुए केंद्रीय वार्ताकारों ने बुधवार को कहा कि राजनीतिक कैदियों, पत्थर फेंकने वालों को रिहा करने के साथ कर्फ्यू हटाने से स्थिति को बेहतर बनाने में काफी मदद मिलेगी.
कश्मीर की चार दिवसीय यात्रा कि बाद जाने माने पत्रकार दिलीप पडगांवकर के नेतृत्व में तीन सदस्यीय वार्ताकार दल जम्मू पहुंचा. इस बीच, प्रदेश भाजपा ने कहा कि वह जम्मू कश्मीर में विभिन्न पक्षों से बात करने के लिए केंद्र द्वारा नियुक्त वार्ताकारों का बहिष्कार करेगी. भाजपा की राज्य इकाई के प्रमुख शमशेर सिंह मन्हास ने कहा कि पार्टी ने वार्ताकारों विशेष रूप से दिलीप पडगांवकर द्वारा की गयी ‘तकलीफदेह’ टिप्पणियों के मद्देनजर यह फैसला किया है.
उन्होंने कहा कि वार्ताकारों की टिप्पणियों से उनकी विश्वसनीयता के प्रति संदेह पैदा हो गया है. वार्ताकारों की टिप्पणी से राज्य में राष्ट्रवादी ताकतों की भावनाएं आहत हुई हैं . भाजपा ने वार्ताकारों के जेल में बंद लोगों और हुर्रियत नेताओं से मिलने पर भी आपत्ति व्यक्त की.
वहीं, कश्मीर के लिए केंद्र द्वारा नियुक्त वार्ताकार जम्मू कश्मीर विधानसभा में 2000 में पारित स्वायत्तता संकल्प के मुद्दे पर भाजपा नेतृत्व से बात करेंगे. पडगांवकर ने कहा, ‘‘हम दिल्ली लौटने के बाद स्वायत्तता संकल्प पर भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी से मिलेंगे और यह पता करेंगे कि संकल्प क्यों खारिज हुआ. ’’ बहरहाल, वार्ताकारों ने कहा कि राज्य में सभी विचारों के लोगों से बातचीत करने के अतिरिक्त उनके पास देश में सभी पक्षों को विश्वास में लेने की एक बड़ी जिम्मेदारी है.{mospagebreak}
तीन सदस्यीय समिति का नेतृत्व कर रहे दिलीप पडगांवकर ने यहां संवाददाताओं से खुली बातचीत में कहा, ‘‘ यदि देश के राजनीतिक मत का नेतृत्व करने वाली संसद को विश्वास में नहीं लिया जाता तो प्रयास व्यर्थ हो जाएगा . हम जानते हैं कि यह एक बड़ा दायित्व है, लेकिन इसे किया जाना है.’’
पडगांवकर ने कहा कि समग्र और स्थाई समाधान ढूंढ़ने के प्रयास के तहत कश्मीर में समाज के विभिन्न तबकों के साथ चार दिवसीय बातचीत के दौरान वार्ताकारों को काफी मूल्यवान जानकारी मिली. उन्होंने कहा, ‘‘हमने कश्मीर पर राजनीतिक मतों को सुना और लोगों के सामने रोजाना आने वाली स्वतंत्र होकर न घूम पाने या बच्चों के लिए दूध न मिल पाने जैसी समस्याओं के बारे में भी जाना.’’ उन्होंने कहा कि टीम के राज्य के पहले दौरे के बाद किसी को भी बड़े कदमों की उम्मीद नहीं करनी चाहिए और ‘‘हम वार्ता प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए छोटे छोटे कदम उठाएंगे.’’
पडगांवकर ने कहा कि आज और कल जम्मू में इसी तरह की बातचीत करने के बाद समूह राज्य में स्थिति में सुधार के लिए केंद्र को सिफारिश करेगा. उन्होंने कहा कि वार्ताकार राज्य में आने के पहले भाजपा नेता से मिलना चाहते थे लेकिन आडवाणी की व्यस्तता के कारण ऐसा संभव नहीं हो सका.
उस समय विधानसभा में नेशनल कांफ्रेंस को करीब दो-तिहाई बहुमत हासिल था और सदन ने जुलाई 2000 में वह संकल्प पारित किया था. लेकिन केंद्र सरकार ने उसे खारिज कर दिया था जबकि नेशनल कांफ्रेंस उस समय राजग सरकार में शामिल थी.{mospagebreak}
पडगांवकर ने कहा कि वह प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा 2006 में गठित पांच कार्यकारी समूह की सिफारिशों की कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) की मांग करेंगे ताकि कश्मीर मुद्दे के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया जा सके. उन्होंने कहा, ‘‘ तत्काल राजनीतिक बंदियों, पथराव करने वालों की रिहाई और कफ्र्यू हटाना शीर्ष प्राथमिकताओं में है .’’ उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि घाटी में शांतिपूर्ण सभाओं और प्रदर्शनों को अनुमति दी जानी चाहिए. ‘‘हम सुरक्षा एजेंसियों का मत भी सुनना चाहते हैं . यदि 12 युवक प्रदर्शन करना चाहते हैं तो धारा 144 (निषेधात्मक आदेश) नहीं लगाई जा सकती .’’
भाजपा सांसद राम जेठमलानी की टिप्पणी की ओर इशारा करते हुए पडगांवकर ने कहा कि उनकी आलोचना करने वाली एक राजनीतिक पार्टी के एक वरिष्ठ नेता उनका समर्थन करने के लिए पार्टी लाइन से हट गए. उन्होंने कहा, ‘‘तथ्य यह है कि संसद द्वारा पारित एक प्रस्ताव (जम्मू कश्मीर के पाकिस्तानी कब्जे वाले हिस्से को वापस लेने के लिए) पाकिस्तान को एक पार्टी बना देता है.’’