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नितेश निकला 73 घंटे बाद, मरने वालों की संख्या 14, चार की पुष्टि नहीं

बिहार के गोपालगंज जिले से परिवारिक परिस्थितियों के कारण स्कूली पढ़ाई छोड़ कर रोजी रोटी की तलाश में तीन साल से कंबल के कारखाने में काम करने वाले नीतेश को जमींदोज हुई इमारत के मलबे से सेना ने 73 घंटे के बाद जिंदा और सुरक्षित निकाल लिया.

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बिहार के गोपालगंज जिले से परिवारिक परिस्थितियों के कारण स्कूली पढ़ाई छोड़ कर रोजी रोटी की तलाश में तीन साल से कंबल के कारखाने में काम करने वाले नीतेश को जमींदोज हुई इमारत के मलबे से सेना ने 73 घंटे के बाद जिंदा और सुरक्षित निकाल लिया. इस हादसे में अबतक 14 लोगों की मौत हो चुकी है लेकिन चार की पुष्टि नहीं हो सकी है.

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धाराशायी हुई तीन मंजिली इमारत के मलबे में जहां राहत और बचावकर्मियों को किसी के जिंदा होने की उम्मीद धूमिल पड़ने लगी थी ऐसे में सेना ने एनडीआरएफ की मदद से नीतेश (18वर्ष) को बाहर निकाला जो चमत्कार से कम नहीं है. दूसरी ओर जिलाधिकारी प्रियांक भारती ने बताया कि अभी तक 10 शव को निकाल लिया गया है. मलबे में फंसे चार और शव दिखाई दे रहे हैं उसे अभी तक निकाला नहीं गया है. जब तक उन्हें निकाला नहीं जाता तबतक उनके मरने की पुष्टि नहीं हो सकती है. इसमें अब तक 62 को जिंदा बचा लिया गया है.

एनडीआरएफ के सहायक कमांडेंट मुसाफिर ने बताया, ‘नीतेश के जीवित निकलने के बाद हमने बुलडोजर का काम रुकवा दिया है. मलबे में दबे लोगों के जिंदा होने की संभावना है. उनका पता लगाया जा रहा है.’ नीतेश से पहले उसी के गांव के संजीव को 50 घंटे के बाद बुधवार तड़के मलबे से निकाला गया था.

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नीतेश तीन साल पहले अपना स्कूल छोड़ कर काम की तलाश में यहां आया था. उसके साथ उसका भाई भी था. हादसे के वक्त वह मशीन पर काम कर रहा था. उसके साथ सात और लोग थे. वह कहां है इसके बारे में उसे पता नहीं. सेना का कहना है कि जब उसे निकाला गया तो नीतेश ने कहा कि वहां चार और लोग हैं.

नीतेश ने बताया, ‘अचानक इमारत गिरी. हमें पता नहीं चला कि क्या हुआ. कच्चा कंबल तैयार होने के बाद हमने उसे एक पर एक सहेज कर रखा था. इसी बीच बीम गिरा और कंबलों के ढेर पर अटक कर रह गया. मैं उसी के नीचे था.’ उसने कहा, ‘मैं आवाज लगाता रहा. मेरी सुनने वाला कोई नहीं था. मेरे साथ फंसे लोगों ने एक बार ‘जय श्री राम’ का जयकारा लगाया. उसके बाद सब कुछ शांत और अंधेरा. धीरे-धीरे सबकी आवाज बंद हो गयी. हमने उम्मीद छोड दी थी. बुधवार देर शाम किसी शव को निकालने की कोशिश में लोग आये मैंने आवाज दी. फिर सात घंटे के बाद उन्होंने मुझे निकाल लिया.’

नीतेश के पास बैठ उसकी देख रेख कर रहे मनोज के अनुसार, ‘वह पूरी तरह सुरक्षित है. उसके शरीर पर चोट का कोई निशान नहीं है.’ हालांकि, उसके जेहन में वह खौफनाक मंजर अभी भी है. वह इस बारे में बात करने से इनकार कर रहा है.’ सदर अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती नीतेश के चिकित्सकों का कहना है, ‘उसे कोई बाहरी चोट नहीं है. फिर भी हम पूरी तसल्ली के बाद ही उसके बारे में कुछ कह सकते हैं. उसे बुधवार देर रात डेढ़ बजे यहां लाया गया है.’

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नीतेश ने कहा, ‘मुझे लगा कि मैं बच नहीं पाउंगा. मैने आवाज लगाना शुरू कर दिया. हालांकि, कोई हमारी सुधि लेने वाला नहीं था. अचानक कुछ लोगों ने मेरी आवाज सुनी. मुझे पानी भेजा और निकालने के लिए सुरंग बनाना शुरू किया. बीम को काट कर मुझे निकाला गया.’ आत्मविश्वास से लबरेज इस युवा ने राहत और बचाव कर्मियों को कहा कि वह उसे कोई हथियार दें ताकि वह भी सुरंग बनाने में उनकी मदद कर सके. लेकिन उसे नहीं दिया गया. फिर भी मशीन के लोहे से जितना बन पड़ा उतना अपनी ओर से भी उसने किया.’

उसके हिम्मत की तब दाद दी गयी जब सेना के लोगों ने उसके निकलने के लिए जगह बनायी तो वह खुद ही उठ कर बाहर आ गया. बाहर निकलने के लिए उसने स्ट्रेचर की कोई मदद नहीं ली. ट्रॉमा सेंटर के एक अन्य चिकित्सक का कहना है कि उसको चोट तो नहीं है लेकिन उसके उसके दिमाग में वह खौफनाक मंजर अभी भी है. नीतेश ने फिर कहा कि वह अपने भाई के साथ अब घर लौट जाएगा.

दरअसल, उसका भाई भी इस मलबे में फंस गया था. नीतेश ने निकलते ही अपने भाई के बारे में पूछा. उसे बताया गया कि उसे निकाल लिया गया है. हालांकि, उसकी मुलाकात अभी भाई से नहीं हो पायी है.

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