लेखिका अरूंधति रॉय ने अन्ना हज़ारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन पर आज संशय जाहिर करते हुए कहा कि समाज के सदस्यों का जन लोकपाल विधेयक कानून का खतरनाक रूप है.
अरूंधति ने सीएनएन-आईबीएन को दिये साक्षात्कार में कहा, ‘मैं विधेयक (जन लोकपाल विधेयक) को लेकर कई कारणों के चलते संशय रखती हूं. मेरे विचार से यह विधेयक खतरनाक कृति है.’ उन्होंने आरोप लगाया कि समाज के सदस्यों ने जनता के गुस्से को अपने पक्ष में कर लिया. बुकर पुरस्कार से सम्मानित उपन्यासकार ने कहा, ‘आपने (सिविल सोसायटी ने) भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता के वास्तविक और जायज गुस्से का इस्तेमाल किया ताकि अपने उस विशिष्ट विधेयक पर आगे जोर दे सकें जो काफी प्रतिगामी है. यह समावेशी के बजाय विनाशकारी और खतरनाक रूप ले सकता था.’ हज़ारे के नेतृत्व वाले आंदोलन के बारे में उन्होंने कहा कि यह किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया का गैर-सरकारी संगठन द्वारा चलाया गया आंदोलन था.
उन्होंने कहा कि तीनों के गैर-सरकारी संगठन हैं और कोर समिति के सदस्य मैगसेसे पुरस्कार से सम्मानित हैं. ..विश्व बैंक और फोर्ड फाउंडेशन भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों को आर्थिक मदद देता है.
अरूंधति ने कहा, ‘‘अन्ना हज़ारे को जनता के संत के रूप चुना गया और उसी तरह तैयार किया गया. आंदोलन के पीछे उनका दिमाग नहीं था. हमें असल में इसी के बारे में फिक्रमंद होने की जरूरत है.’’ उन्होंने यह भी कहा कि हज़ारे का आंदोलन जनांदोलन जैसा नहीं था. उन्होंने मीडिया पर इसे हवा देने का आरोप लगाया.
अरूंधति ने कहा कि निश्चित तौर पर लोग इसमें शामिल हुए लेकिन इनमें से सभी मध्यम वर्ग से नहीं थे और कई लोग एक तरह के रियलिटी शो के लिये आये जिसे मीडिया अभियानों द्वारा अच्छी तरह से योजनाबद्ध किया गया था.
उन्होंने कहा कि एक अरब की आबादी वाले देश में मीडिया को रिपोर्ट करने के लिये कुछ और नहीं मिला. कुछ प्रमुख टीवी चैनलों ने रिपोर्ट करने के नाम पर अभियान चलाया. अरूंधति ने कहा कि उनके विचार से यह भी भ्रष्टाचार की तरह है.
अरूंधति ने कहा कि अगर यह सिर्फ टीआरपी के लिये था तो अश्लील सामग्री या ऐसी किसी चीज का सहारा क्यों नहीं लिया गया, जिससे ज्यादा टीआरपी मिलती.