scorecardresearch
 

सरकार और न्यायपालिका को ‘लकवाग्रस्त’ कर देगा जनलोकपाल बिल: सिब्बल

मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा है कि गांधीवादी अन्ना हज़ारे पक्ष के जनलोकपाल विधेयक को अगर स्वीकार किया जाता है तो इससे न्यायपालिका और कार्यपालिका ‘लकवाग्रस्त’ हो जायेगी.

Advertisement
X

मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा है कि गांधीवादी अन्ना हज़ारे पक्ष के जनलोकपाल विधेयक को अगर स्वीकार किया जाता है तो इससे न्यायपालिका और कार्यपालिका ‘लकवाग्रस्त’ हो जायेगी.

Advertisement

लोकपाल विधेयक का मसौदा तैयार करने के लिये गठित हुई संयुक्त समिति के सदस्य सिब्बल ने इस मुद्दे पर अपने ताजा लेख ‘जन लोकपाल- बीमारी से घातक इलाज’(भाग-दो) में प्रधानमंत्री पद, न्यायपालिका और सांसदों के आचरणों को लोकपाल के दायरे में लाने के प्रस्तावों का कड़ा विरोध किया है.

सिब्बल ने कहा, ‘प्रधानमंत्री कार्यालय हमारे संसदीय लोकतंत्र का प्रमुख केंद्र है. एक स्वतंत्र लेकिन निरंकुश जनलोकपाल पूरी व्यवस्था को बुरी तरह अस्थिर कर सकता है. ऐसा लोकपाल प्रधानमंत्री के खिलाफ जांच सिर्फ यह पता लगाने के लिये कर सकता है कि क्या उन पर लगे आरोप निराधार हैं. इससे संसदीय लोकतंत्र को ठेस पहुंचेगी.’ उन्होंने कहा कि मौजूदा व्यवस्था के तहत प्रधानमंत्री को अभियोजन से छूट प्राप्त नहीं है. किसी मामले में अगर तथ्य सार्वजनिक दायरे में हों तो व्यवस्था किसी भ्रष्ट व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर नहीं बने रहने दे सकती.

Advertisement

पत्र सूचना कार्यालय के जरिये जारी अपने लेख की दूसरी कड़ी में सिब्बल ने कहा कि अस्थिर पड़ोस और आतंकवाद के वास्तविक खतरे के बीच प्रधानमंत्री की संस्था को कमज़ोर करना ऐतिहासिक भूल होगी. सिब्बल ने अपने लेख में कहा, ‘जनलोकपाल विधेयक के बारे में चिंता की एक और वजह सांसदों को अभियोजन के दायरे में लाने की कोशिश से जुड़ी है.

संविधान के अनुच्छेद 105 (2) के तहत सदन के अंदर अपनी बात रखने और वोट डालने के संसद सदस्यों के अधिकार को संरक्षण मिला हुआ है. ये दो अधिकार बहुमूल्य हैं.’ केंद्रीय मंत्री ने कहा कि संसद सदस्यों के इन अधिकारों के प्रयोग को अभियोजन के दायरे में लाने से सांसदों की कही हर बात और उनके डाले गये हर वोट पर सवाल उठने लगेंगे. इस तरह का अधिकार लोकपाल को देने के लिये संवैधानिक संशोधन की जरूरत होगी.

सिब्बल ने कहा कि इस मसले का हल संसद की आचार समिति के पास है जो किसी भी सदस्य के खिलाफ भ्रष्टाचार का प्रथम दृष्टया सबूत मिलने पर कार्यवाही कर सकती है और लोकसभा अध्यक्ष से अभियोजन की मंजूरी ले सकती है. सिब्बल ने अपने लेख में न्यायपालिका के मुद्दे पर कहा कि संविधान के जरिये न्यायपालिका की स्वायत्तता और स्वतंत्रता को सुरक्षित रखा गया है.

Advertisement

उच्च न्यायपालिका का कोई भी न्यायाधीश केवल महाभियोग की प्रक्रिया के जरिये ही हटाया जा सकता है. उन्होंने कहा कि जनलोकपाल विधेयक के तहत वैकल्पिक तंत्र बनाने की बात कही गयी है. अगर ऐसा हुआ तो परिणाम कहीं ज्यादा खतरनाक हो जायेंगे. न्यायाधीशों को उनके फैसले की गलत व्याख्या होने की स्थिति में अभियोजन का डर सताने लगेगा.

Advertisement
Advertisement