बहुप्रतिक्षित विवादास्पद न्यायाधीश जवाबदेही विधेयक पर केंद्रीय मंत्रिमंडल की अगली बैठक में चर्चा की जायेगी हालांकि सरकार का यह मानना है कि प्रस्तावित कानून का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि न्यायपालिका की ओर कोई उंगली न उठे.
केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली ने कहा कि पूरी दुनिया में इस तरह के मौजूदा कानूनों के व्यापक अध्ययन और परीक्षण के बाद न्यायपालिका मानक एवं जवाबदेही विधेयक, 2010 को अंतिम रूप दे दिया गया है. इसे मंत्रियों के समूह की मंजूरी मिल गई है. इसे मंत्रिमंडल में अलग-अलग राय के के मद्देनजर मंत्रियों के समूह के समक्ष रखा गया था.
मोइली ने कहा कि अब इस विधेयक को मंजूरी के लिए मंत्रिमंडल के समक्ष रखा जायेगा. यह पूछे जाने पर कि क्या मंत्रीमंडल इस सप्ताह इस विधेयक पर विचार करेगी, उन्होंने इसका सकारात्मक उत्तर दिया. मोइली ने कहा ‘मंत्रिमंडल से मंजूरी मिलने के बाद, हमें उम्मीद है कि आने वाले मानसून सत्र में इसे पेश किया जा सकता है.’ {mospagebreak}
मोइली ने कहा कि इस विधेयक से न्यायपालिका को सुविधा मिल सकेगी जिससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि कोई उस पर उंगली न उठाये. उन्होंने कहा ‘यह आठ महीने के गहन अध्ययन का परिणाम है और हमने इस विषय में दुनिया के कई कानून का अध्ययन और परीक्षण किया है.’
इस विधेयक को अत्याधुनिक करार देते हुए विधि मंत्री ने कहा कि इससे किसी भी भूल चूक की स्थिति में न्यायपालिका को उसके कार्यो के लिए जवाबदेह बनाया जा सकता है और ‘भ्रष्टाचार’ दूर करने में मदद मिलेगी.
गौरतलब है कि जब मार्च महीने में यह विधेयक केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किया गया था, उस समय कई मंत्रियों ने इस विधेयक में खामी बतायी थी. इनमें मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल और गृह मंत्री पी चिदंबरम शामिल थे.
जब इस विधेयक को 15 मार्च को मंत्रिमंडल के समक्ष पेश किया गया तब समझा जाता है कि चिदंबरम और सिब्बल ने इसके कुछ उपबंधों पर आपत्ति व्यक्त की थी. समझा जाता है कि उन्होंने कहा कि न्यायाधीश या तो दोषी हो सकते हैं अथवा दोषी नहीं हो सकते. और मामूली फटकार के उपबंध को न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता है. विधेयक में प्रस्तावित किया गया है कि न्यायाधीशों के दुराचरण के आधार पर उन्हें चेतावनी दी जा सकती है. लेकिन अगर उल्लंघन की प्रकृति गंभीर है तब न्यायाधीश पर महाभियोग चलाया जा सकता है.
प्रस्तावित विधेयक में न्यायाधीशों के खिलाफ संसद के किसी भी सदन में महाभियोग प्रस्ताव पेश करने से पहले आरोपों की जांच कई समितियों से कराने की बात कही गई है. उच्चतम न्यायालय के लिए एक जांच समिति होगी जबकि 21 उच्च न्यायालयों के लिए दूसरी जांच समिति होगी. विधेयक में राष्ट्रीय न्यायिक निरीक्षण समिति गठित करने का प्रस्ताव किया गया है जिसका नेतृत्व राज्यसभा से सभापति की हैसियत से उपराष्ट्रपति करेंगे.