लोकसभा में सोमवार को अपने खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव आने के पहले न्यायमूर्ति सौमित्र सेन ने कलकत्ता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के पद से इस्तीफा दे दिया.
न्यायमूर्ति सेन ने कहा, ‘मैंने लोकसभा में नहीं जाने का फैसला किया और बजाए इसके इस्तीफा दे दिया.’ न्यायमूर्ति सेन को पांच सितंबर को लोकसभा के सामने पेश होना था.
उन्होंने बताया, ‘मैंने राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल को अपना इस्तीफा दे दिया और इसकी एक प्रति लोकसभा अध्यक्ष को भी भेज दी.’ उनके वकील सुभाष भट्टाचार्य ने बताया कि राष्ट्रपति को लिखे अपने पत्र में न्यायमूर्ति सेन ने कहा है कि चूंकि राज्यसभा ने अपनी बुद्धिमत्ता से फैसला किया है कि उन्हें न्यायाधीश नहीं बने रहना चाहिए इसलिए वह इस्तीफा दे रहे हैं और एक आम नागरिक की तरह जीना चाहते हैं.
राज्यसभा ने 18 अगस्त को न्यायमूर्ति सेन के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को मंजूरी दी थी. बसपा के अलावा सभी पार्टियों का मानना था कि सेन दोषी हैं.
सेन को एक वकील के तौर पर अदालत ने रिसीवर नियुक्त किया था. उन्हें 1983 के एक मामले में 33.23 लाख रुपये की हेरा-फेरी और कलकत्ता की एक अदालत के सामने तथ्यों को गलत तरीके से पेश करने के आरोप में दोषी ठहराया गया था. उनका महाभियोग राज्यसभा में इस तरह का पहला मामला है.
राज्यसभा के सभापति की ओर से नियुक्त उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी की अध्यक्षता वाली एक जांच समिति के सेन को दुराचार का दोषी ठहराए जाने के बाद माकपा के सीताराम येचुरी और विपक्ष के नेता अरुण जेटली ने उनके खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव दिया था, जिसके आधार पर उनके खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू हुई थी.
लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी ने कहा कि वह न्यायमूर्ति सेन के इस्तीफे के बारे में सुन कर बहुत दु:खी हैं और उन्हें लगता है कि न्यायमूर्ति सेन के साथ ‘इंसाफ नहीं हुआ.’
इसके पहले सिक्किम उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी डी दिनाकरन के खिलाफ लगे भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच के लिए राज्यसभा के सभापति ने एक न्यायिक समिति गठित की थी. उनके खिलाफ महाभियोग की कार्रवाई शुरू हो पाती, इसके पहले ही उन्होंने इस साल 29 जुलाई को इस्तीफा दे दिया.
लोकसभा में महाभियोग प्रस्ताव का पहला मामला मई, 1993 में उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति वी रामास्वामी का है. कांग्रेस सदस्यों के मतदान में भाग नहीं लेने के चलते संख्या कम होने के कारण यह प्रस्ताव पारित नहीं हो सका.