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महोबा का 'विजय उत्सव' है कजली मेला

आल्हा-ऊदल की वीरगाथा में कहा गया है 'बड़े लड़इया महुबे वाले, इनकी मार सही न जाए..!' आज से 831 साल पहले दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने राजकुमारी चंद्रावल को पाने और पारस पथरी व नौलखा हार लूटने के इरादे से चंदेल शासक राजा परमाल देव के राज्य महोबा पर चढ़ाई की थी. युद्ध महोबा के कीरत सागर मैदान में हुआ था, जिसमें आल्हा-ऊदल की तलवार की धार के आगे वह टिक न सके.

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आल्हा-ऊदल की वीरगाथा में कहा गया है 'बड़े लड़इया महुबे वाले, इनकी मार सही न जाए..!' आज से 831 साल पहले दिल्ली नरेश पृथ्वीराज चौहान ने राजकुमारी चंद्रावल को पाने और पारस पथरी व नौलखा हार लूटने के इरादे से चंदेल शासक राजा परमाल देव के राज्य महोबा पर चढ़ाई की थी. युद्ध महोबा के कीरत सागर मैदान में हुआ था, जिसमें आल्हा-ऊदल की तलवार की धार के आगे वह टिक न सके.

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युद्ध के कारण बुंदेलखंड की बेटियां रक्षाबंधन के दूसरे दिन 'कजली' दफन कर सकी थीं. आल्हा-ऊदल की वीरगाथा के प्रतीक ऐतिहासिक कजली मेले को यहां 'विजय उत्सव' के रूप में मनाने की परम्परा आज भी जीवित है.

महोबा रियासत के चंदेल शासकों के सेनापति रहे आल्हा और ऊदल को देश में कौन नहीं जानता. सन् 1181 में उरई के राजा मामा माहिल के कहने पर राजा परमाल देव ने अपने दोनों सेनापतियों (आल्हा-ऊदल) को राज्य से निष्कासित कर दिया था, जिसके बाद दोनों ने कन्नौज के राजा लाखन राणा के यहां शरण ले ली थी. इसकी भनक लगते ही दिल्ली नरेश पृथ्वीराज ने उस समय महोबा पर चढ़ाई की, जब रक्षाबंधन के दिन डोला में सवार होकर राजकुमारी चंद्रावल (राजा परमाल की बेटी) अपनी सखियों के साथ कीरत सागर में कजली दफन करने पहुंचीं.

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युद्ध रोकने के लिए पृथ्वीराज ने राजा परमाल से बेटी चंद्रावल, पारस पथरी और नौलखा हार सौंपने की शर्त रखी. यह शर्त दासता स्वीकार करने जैसी थी, इसलिए युद्ध के सिवा कोई चारा नहीं था और कीरत सागर के इसी मैदान में दोनों सेनाओं के बीच जबर्दस्त युद्ध छिड़ जाने पर बुंदेलखंड की बेटियां उस दिन कजली नहीं दफन कर सकीं.

राजकुमारी चंद्रावल ने भी अपनी सहेलियों के साथ विरोधी सेना का मुकाबला किया था. इस युद्ध में परमाल का बेटा राजकुमार अभई शहीद हो गया. जब यह खबर कन्नौज पहुंची तो आल्हा, ऊदल और कन्नौज नरेश लाखन ने साधुवेश में कीरत सागर के मैदान में पहुंचकर पृथ्वीराज की सेना को पराजित कर दिया. इस युद्ध में बुंदेली राजा परमाल की जीत और आल्हा व उनके छोटे भाई ऊदल की वीरगाथा के प्रतीक स्वरूप हर साल कीरत सागर मैदान में सरकारी खर्च पर ऐतिहासिक कजली मेला 'विजय उत्सव' के रूप में मनाने की परम्परा बन गई है.

खास बात यह है कि उस युद्ध के कारण पूरे इलाके में रक्षाबंधन दूसरे दिन मनाया जाता है. इतिहासकार राधाकृष्ण बुंदेली बताते हैं, 'आल्हा और ऊदल की वीरगाथा से जुड़ा यह महोबा का कजली मेला हर साल 'विजय उत्सव' के रूप में मनाने की परम्परा है.' वह बताते हैं कि समूचे बुंदेलखंड में महोबा युद्ध के कारण दूसरे दिन कजली दफना कर रक्षाबंधन मनाने का रिवाज है.

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महोबा की जिलाधिकारी डॉ़ काजल बताती हैं, 'यह महोबा का ऐतिहासिक मेला है, जो हर साल नगर पालिका परिषद के बजट पर आयोजित किया जाता है. तीन अगस्त से शुरू होने वाला कजली मेला एक सप्ताह तक चलेगा.'

जिलाधिकारी ने बताया कि इस मेले में दूर-दराज से लगभग डेढ़ लाख लोगों के पहुंचने का अनुमान है. लोगों की सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएंगे और लोगों को किसी प्रकार की दिक्कत न हो, इसके लिए विभिन्न विभागों के आला अधिकारियों की टीमें गठित की गई हैं.

नगर पालिका परिषद की अध्यक्ष पुष्पा अनुरागी बताती हैं कि इस मेले में गजल गायक अनूप जलोटा और बुंदेली लोकगीतों के सम्राट देशराज पटेरिया के कार्यक्रम के अलावा राष्ट्रीय कवि सम्मेलन व मुशायरे का आयोजन भी किया जाएगा. वह कहती हैं कि यह महोबा ही नहीं, समूचे बुंदेलखंड के गौरवशाली इतिहास का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण उत्सव है.

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