पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में अपनी वापसी को लेकर निश्चिंत तो हैं लेकिन वह भाजपा में अपनी नई पारी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहते हैं, ताकि एक बार फिर अतीत की घटनाएं न दोहराई जा सकें."/> पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में अपनी वापसी को लेकर निश्चिंत तो हैं लेकिन वह भाजपा में अपनी नई पारी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहते हैं, ताकि एक बार फिर अतीत की घटनाएं न दोहराई जा सकें."/> पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में अपनी वापसी को लेकर निश्चिंत तो हैं लेकिन वह भाजपा में अपनी नई पारी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहते हैं, ताकि एक बार फिर अतीत की घटनाएं न दोहराई जा सकें."/>
उत्तर प्रदेश में कभी अपनी हनक के लिए चर्चित रहे पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में अपनी वापसी को लेकर निश्चिंत तो हैं लेकिन वह भाजपा में अपनी नई पारी को लेकर पूरी तरह आश्वस्त हो जाना चाहते हैं, ताकि एक बार फिर अतीत की घटनाएं न दोहराई जा सकें.
कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी दिवाली के आसपास हो सकती है. वजह है, भाजपा के नेताओं का हिमाचल और गुजरात विधानसभा चुनावों में व्यस्त होना. कल्याण की भाजपा में वापसी कितने मायने रखती है, इसका उदाहरण उस समय मिला जब लखनऊ से भाजपा सांसद लालजी टंडन ने उनके घर जाकर घंटे भर गुफ्तगू की. लालजी टंडन के अलावा भी प्रदेश के कई बड़े नेता या तो सीधे तौर पर कल्याण सिंह से मिल चुके हैं या फिर उनसे बातचीत कर चुके हैं.भाजपा में वापसी की अटकलों के बीच माना जा रहा है कि वापसी में हो रही देरी की वजह से कल्याण अभी पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं.
जानकारों की मानें तो अतीत की घटनाएं कल्याण सिंह को सोच-विचार करने के लिए मजबूर कर रही हैं. वह चाहते हैं कि अबकी बार अतीत की पुनरावृत्ति न हो. चर्चित राजनीतिक विश्लेषक रासिद खान कहते हैं कि कल्याण सिंह की भाजपा में वापसी तो होगी, लेकिन इसमें देरी की वजह यही है कि वह फिलहाल अपने राजनीतिक नफा-नुकसान का आकलन करने में जुटे हैं.
राजधानी लखनऊ से अलीगढ़ पहुंचे कल्याण ने कहा, "भाजपा में वापसी लगभग तय है. पार्टी के प्रदेशस्तरीय नेता लगातार सम्पर्क में हैं. हिमाचल और गुजरात चुनाव की वजह से वापसी का समय तय नहीं हो पा रहा है. इस मसले पर नितिन गडकरी के साथ बातचीत के बाद ही कोई अंतिम फैसला लिया जाएगा."
अतीत पर गौर करें तो वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव में भाजपा और कल्याण ने अलग-अलग चुनाव लड़े थे. यही वह चुनाव था जहां से उत्तर प्रदेश में भाजपा का ग्राफ गिरना शुरू हुआ था. भाजपा की सीटों की संख्या 177 से गिरकर 88 हो गई. प्रदेश की 403 सीटों में से 72 सीटों पर कल्याण सिंह की राष्ट्रीय क्रांति पार्टी ने दावेदारी ठोकी थी और इन्हीं सीटों पर भाजपा को सबसे अधिक नुकसान पहुंचा.
कल्याण की वापसी को लेकर भाजपा के बड़े नेता सिर्फ यही कह रहे हैं कि बस औपचारिक घोषणा होनी बाकी है. नवरात्र में भाजपा में शामिल होने की अटकलों के बीच अब ऐसा लगता है कि कल्याण भाजपा के साथ दिवाली मनाने के मूड में हैं.