भाजपा के 11 बागी विधायकों को अयोग्य करार देने के आदेश को चुनौती देती याचिकाओं पर कर्नाटक उच्च न्यायालय ने गुरुवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. इस तरह बी. एस येदियुरप्पा की सरकार पर इस कानूनी लड़ाई से पड़ने वाले असर को लेकर सस्पेंस अब भी कायम है.
न्यायमूर्ति वी. जी. सभाहित ने दो दिन की सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं और मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के वकीलों की दलीलें सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा है. बीते सोमवार मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे. एस खेहर और न्यायमूर्ति एन कुमार की खंडपीठ की इस मुद्दे पर अलग-अलग राय होने के बाद मामला न्यायमूर्ति सभाहित के पास भेज दिया गया था.
मुख्य न्यायाधीश ने जहां भाजपा के 11 बागी विधायकों को अयोग्य करार देने के विधानसभा अध्यक्ष के. जी. बोपैया के आदेश को बरकरार रखा, वहीं न्यायमूर्ति कुमार ने आदेश को निरस्त कर दिया.
येदियुरप्पा के वकील पूर्व एटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी और सत्यपाल जैन ने आज दलील दी कि बोपैया का फैसला न सिर्फ सरकार से समर्थन वापस लेने के 11 विधायकों के छह अक्तूबर के लिखे पत्र पर, बल्कि बागी विधायकों के बर्ताव पर भी आधारित था. वकीलों ने दलील दी कि विधानसभा अध्यक्ष का 10 अक्तूबर का आदेश बिल्कुल भी तर्कविरूद्ध नहीं है.