‘बदले तुमने रंग बहुत, बदले बहुत नकाब, फांसी तक हमने तुम्हे ला ही दिया कसाब’, पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमिर कसाब को दी गई मौत की सजा की बंबई उच्च न्यायालय द्वारा पुष्टि किए जाने के बाद सरकारी वकील उज्ज्वल निकम की कुछ ऐसी ‘शायराना’ प्रतिक्रिया थी.
कसाब को ‘नौटंकी का खलनायक’ और ‘आतंक की आंधी’ बताते हुए निकम ने कहा कि कसाब ने पकड़े जाने के बाद कभी किसी तरह का पछतावा नहीं दिखाया. यहां तक कि उसने अपने इकबालिया बयान में मजिस्ट्रेट से इस बात को लेकर पछतावा भी व्यक्त किया कि वह सीएसटी पर देरी से पहुंचा और इसके चलते वहां कम लोगों की हत्या कर सका.
मुकदमे के दौरान अभियोजन पक्ष का नेतृत्व करने वाले निकम ने कहा, ‘कसाब ने मजिस्ट्रेट से कहा कि वह चाहता है कि भारत पर हमला करने के लिए और भी आतंकवादी तैयार रहें. उसने जो कुछ भी किया, उसका उसे जरा भी अफसोस नहीं था.’ निकम ने कहा, ‘कसाब को उसके आकाओं ने सिखाया था कि अगर वह जीवित पकड़ा जाए, तो अपने रुख में बदलाव कर ले, ताकि अधिकारी भ्रम में पड़ जाएं. उसने अपने आप को अवयस्क बता कर अदालत को गुमराह करने की भी कोशिश की, लेकिन हमने उसकी सारी कोशिशें बेकार कर दीं.’ {mospagebreak}
निकम ने कहा, ‘कसाब एक प्रशिक्षित कमांडो है और अल-कायदा के तरीकों पर चलता है. अल-कायदा अपने आतंकवादियों को सिखाता है कि अगर वे पकड़े जाएं, तो अधिकारियों को गुमराह करना शुरू कर दें .
कसाब ने भी कई बार यही तरीका अपनाया, जब-जब वह मुकदमे के दौरान कठिन परिस्थितियों में फंसा, तब-तब उसने यही करने की कोशिश की.’
निकम के मुताबिक, कसाब कई बार अपने बयान से पलटा और उच्च न्यायालय में अपने लिए अमेरिका में मुकदमा चलाए जाने की मांग करते हुए उसने सबको आश्चर्य में डाल दिया.
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि कसाब ने कभी भी पाकिस्तान जाने की इच्छा नहीं जताई, हालांकि वह भारत के बाहर कहीं मुकदमा चलाए जाने की मांग करता था. उन्होंने कहा कि लश्कर ने उसे ऐसी मांग करते हुए अधिकारियों को भ्रम में डालने का प्रशिक्षण दिया था.
पाकिस्तान की एक अदालत में एक याचिका दायर हुई है, जिसमें कहा गया है कि कसाब को मुकदमे के लिए वहां भेजा जाए. इस याचिका को ‘बेतुकी’ बताते हुए निकम ने कहा, ‘जब कसाब पर भारत में मुकदमा चल रहा है, तो ऐसा कैसे हो सकता है. जब तक उसकी सजा यहां पूरी नहीं हो जाती, तब तक उसे पाकिस्तान भेजने का सवाल ही नहीं उठता.’
उन्होंने कहा, ‘26/11 का मुकदमा मेरे लिए चुनौती था. न केवल कसाब को दोषी ठहराने के मामले में, बल्कि लश्कर के चेहरे से नकाब उतारने के मामले में भी, जिसने मुंबई में आतंक फैलाने के लिए पाकिस्तान के सुरक्षा प्रतिष्ठान का इस्तेमाल किया.’