कोयला ब्लॉक आवंटन पर संसद में कैग रिपोर्ट पेश कर दी गई है. आजतक के हाथों में इस रिपोर्ट की जो कॉपी आई है, उसके मुताबिक कोयला खदान के आवंटन में अब तक का सबसे बड़ा घोटाला सामने आया है. देखिए कोल ब्लॉक आवंटन पर CAG रिपोर्ट की खास बातें:
1. रिपोर्ट के मुताबिक, कोल ब्लॉक आवंटन में निजी कंपनियों को 1 लाख 86 हजार करोड़ का फायदा पहुंचाया गया था. मतलब साफ है कि इतनी ही रकम का चूना देश के सरकारी खजाने को लगा.
2. CAG ने अपनी रिपोर्ट में आवंटन को लेकर कड़ी प्रतियोगिता का भी जिक्र किया है. सीएजी की राय में यदि प्रतिस्पर्धात्मक बोली के जरिए आवंटन किए गए होते तो निजी फर्मों के इस संभावित लाभ का एक हिस्सा सरकारी खजाने को भी मिल सकता था. प्रतिस्पर्धी बोलियां नहीं मंगाकर निजी क्षेत्र की कंपनियों को सीधे नामांकन के आधार पर कोयला ब्लॉक आवंटित किये जाने से उन्हें फायदा हुआ.
3. कोयला ब्लॉक आवंटन पर कैग की संसद में पेश रिपोर्ट में निजी क्षेत्र की 25 कंपनियों के नाम गिनाये गये हैं, जिन्हें सीधे नामांकन के आधार पर कोयला ब्लॉक आवंटित किये गये. इनमें एस्सार पावर, हिन्डाल्को इंडस्ट्रीज, टाटा स्टील, टाटा पावर और जिंदल स्टील एण्ड पावर का नाम शामिल हैं.
4. कैग रिपोर्ट में कहा गया है, ‘प्रतिस्पर्धी बोलियों के आधार पर आवंटन की प्रक्रिया में देरी की वजह से कोयला ब्लॉक आवंटन की मौजूदा प्रक्रिया निजी क्षेत्र की कंपनियों के लिये फायदेमंद साबित हुई. कैग का अनुमान है कि निजी क्षेत्र की इन कंपनियों को जिस तरह कोयला ब्लॉक आवंटित किये गये उससे उन्हें 1.86 लाख करोड़ रुपये का वित्तीय लाभ हो सकता है.’ कैग ने कहा है कि उसने यह अनुमान कोल इंडिया की वर्ष 2010.11 के दौरान कोयला उत्पादन की औसत लागत और खुली खदान से कोयला बिक्री के औसत मूल्य के आधार पर लगाया है.
5. कैग रिपोर्ट में कहा गया है, ‘यदि कोयला ब्लॉक आवंटन के लिये प्रतिस्पर्धी बोलियां मंगाने के कई साल पहले लिये गये निर्णय पर अमल कर लिया जाता तो कंपनियों को होने वाले इस अनुमानित वित्तीय लाभ का कुछ हिस्सा सरकारी खजाने में पहुंच सकता था.’
6. सरकारी आय-व्यय की लेखा परीक्षा करने वाली इस संस्था ने कहा है कि ग्राहकों तक सस्ता कोयला पहुंचे यह सुनिश्चित करने के लिये क्षेत्र में मजबूत नियामक और निगरानी प्रणाली की आवश्यकता है.
गौरतलब है कि कोयला खानों का आवंटन प्रतिस्पर्धी बोलियों के जरिये किये जाने की घोषणा वर्ष 2004 में ही कर ली गई थी, लेकिन सरकार अभी तक इस प्रकार की बोलियां मंगाने के तौर-तरीके ही तय नहीं कर पाई.