हम सब जानते हैं हमारी राजनैतिक व्यवस्था में भ्रष्ट कौन है और यह क्यों इतनी तेजी से फैल रहा है. फिर भी हम उन्हें दोबारा चुनते हैं. ऐसा करके, हम उन्हें और अधिक जोड़ने का अधिकार देते हैं.
आज भारत में भ्रष्टाचार से निबटना आजादी की दूसरी लड़ाई लड़ने की तरह है. इसके लिए निस्वार्थ भावना से ओत-ह्ढोत और जुनूनी समर्थकों की सेना से लैस महात्मा गांधी की जरूरत है. यह लेखकों, वक्ताओं, सुधारकों और समाज के नायकों के नेतृत्व वाली क्रांति होनी चाहिए. सबसे जरूरी यह कि इसको मीडिया की सर्वाधिक जरूरत है जो अभी तक जिस तरह सचाइयां सामने लाता रहा है आगे भी ऐसा करना जारी रखे.
भ्रष्टाचार का कैंसर हमारी सरकार की जड़ों में गहरे तक फैल गया है. पहले भ्रष्टाचार से अछूते रहे हमारे ह्नेत्र-सशस्त्र बल और न्यायपालिका के कुछ सदस्य-दागियों की फेहरिस्त में शामिल हुए नए नाम हैं. हमारी नौकरशाही शीर्ष पर एकदम कमजोर है और निचले स्तर पर असंवेदनशील.
पैसे से गले तक डूबा हुआ हमारा निजी क्षेत्र कमजोरों को फुसलाने का काम कर रहा है. हमारे चुनाव भ्रष्टाचार को पोषित कर रहे हैं क्योंकि उनकी फंडिंग की शैली व्यवस्था को बीमार करने वाले उत्प्रेरक की भूमिका निभा रही है. इसकी शुरुआत बतौर मेहरबानी के होती है. संपत्ति की खरीद-फरोख्त, भूमि सौदों और अधिग्रहण की हमारी अस्पष्ट प्रणाली भी एक समांतर अर्थव्यवस्था को पोषित करती है.
हमारी निगरानी (विजिलेंस) व्यवस्था अंतर्निहित रूप से और जान-बूझकर खामियों से भरपूर है. किसी भी निगरानी या भ्रष्टाचार निरोधी शाखा को स्वतंत्र दर्जे से नहीं नवाजा गया है. यह या तो सिफारिशी है या फिर राजनैतिक प्रभाव के लिए सुभेद्य.{mospagebreak}
यहां वर्ग विभाजन भी एकदम स्पष्ट है. हमारे यहां गरीबों के लिए पुलिस थाने हैं जबकि अमीरों के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो, केंद्रीय सतर्कता आयोग. और नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक हैं. अमीरों के लिए मोटी रकम खर्च करके जमानत, पैरोल और अग्रिम जमानत पाने की कानूनी राहें हैं. अमीरों के लिए वातानुकूलित अस्पताल हैं और गरीबों के लिए गंदगी और घुटन भरे बैरक हैं. कुल मिलाकर कहें तो सब कुछ आपकी वित्तीय क्षमता पर निर्भर करता है.
साफ तौर पर, हमारे देश में न्याय के दो रूप हैं. भ्रष्टाचार कायदा है; ईमानदारी भोलापन. यह राष्ट्रीय स्तर पर मौजूदा मानसिकता है. देश के सर्वाधिक भ्रष्ट अपनी अकूत संपत्ति के दम पर निकल सकते हैं. लेकिन थोड़े कम वालों को पकड़े जाने, निलंबन या गिरफ्तार होने का खतरा है. बड़ा भ्रष्टाचार काले धन में बढ़ोतरी और शासन में रुतबा बढ़ाने का जरिया है.
हम सब जानते हैं हमारी राजनैतिक व्यवस्था में भ्रष्ट कौन हैं और यह इतनी तेजी से क्यों बढ़ रहा है. फिर भी हम उन्हें दोबारा चुनते हैं. ऐसा करके, हम उन्हें और अधिक जोड़ने का अधिकार देते हैं. कुछ को छोड़ दिया जाए तो देश और इसकी 'सेवाएं' तथा 'अधिकारी' बिकने के लिए तैयार हैं. ऐसा लगता है कि जिम्मेदारी के पद पर बैठे हर शख्स की कुछ न कुछ कीमत है-निचले तबके से लेकर शीर्ष तक, यह दुस्साहस और बेढंगेपन पर निर्भर करता है.
देश को अपनी निगरानी व्यवस्था की संपूर्ण मरम्मत की जरूरत है. इसे जरूरत है एक वैधानिक स्वतंत्र जांच और मुकदमा चलाने वाली एजेंसी की, जिसे भारत के अपने बजट से भुगतान किया जाए, इसके अधिकारियों का चयन प्रतिभा खोज के माध्यम से योग्यता के आधार पर हो, राजनैतिक अनिश्चितताओं को दूर रखने के लिए एक तय कार्यकाल हो. इस एजेंसी को निर्णायक पद दिए जाने की जरूरत है क्योंकि मौजूदा एजेंसी मात्र सिफारिशी है. {mospagebreak}
एक समय था कि हांगकांग भी इसी तरह तेजी से बढ़ते भ्रष्टाचार की गिरफ्त में था. इसने एक स्वतंत्र एजेंसी का गठन किया, इसे मौजूदा कानूनों के साथ स्वायत्तता प्रदान की गई, योग्य लोगों को इसका प्रमुख बनाया गया, जिन्हें विभिन्न ह्नेत्रों से लिया गया था और इसने भ्रष्टों को जेल भेजा.
सवाल हैः इस तरह के संस्थान को अंजाम देने के लिए कौन मदद करेगा? वही भ्रष्टाचार के कारण बने लोग जो सत्ता में कायम हैं? नहीं. ऐसा भारत की जनता को करना होगा, जिसे बड़े स्तर पर संगठित, शिक्षित और सूचित करने की जरूरत है. ताकि भारत की निगरानी व्यवस्था और वह कितनी प्रभावी है इसे लेकर उनकी अत्यधिक अज्ञानता को दूर किया जा सके.
हम वे लोग हैं जिन्होंने पहला कदम आगे बढ़ाया है, हम 11 लोग एक साथ आगे आए और राष्ट्रमंडल खेलों में हुए भ्रष्टाचार को लेकर एक संयुक्त पुलिस शिकायत दर्ज कराई. अगर तय समय के भीतर जांच शुरू नहीं हो पाती है तो हमारा अगला कदम न्यायिक हस्तह्नेप का होगा. फिर मामले को एक तर्कसंगत अंजाम तक पहुंचाया जाएगा.
बेदी, मेगसॉयसॉय पुरस्कार से सम्मानित, भारत की पहली और श्रेष्ठ आइपीएस अफसर हैं