उत्तर प्रदेश में मेरठ सदर विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के विधायक चुने गए लक्ष्मीकांत वाजपेयी देश के सबसे बड़े सूबे के अध्यक्ष तो बन गए हैं लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश में पार्टी के तंत्र को ठीक करने की होगी.
राजनीतिक विश्लेषकों और पार्टी नेताओं की माने तो पार्टी एक करिश्माई सेनापति चुनने में नाकाम हुई है जिससे भाजपा का मिशन 2014 शुरू होने से पहले ही फ्लॉप होता दिखाई दे रहा है.
भाजपा के नए प्रदेश अध्यक्ष वाजपेयी के सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के संगठन और भितरघात को समाप्त कर पार्टी को नया कलेवर देने की होगी ताकि मिशन 2014 में वह पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व का भरोसा जीत सकें. लेकिन यह इतना आसान भी नहीं दिखता. कुशवाहा प्रकरण के बाद पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने और गाहे-बगाहे मुश्किलें खड़ी करने वाले अपनी पार्टी के नेताओं से ही उन्हें सजग रहना होगा.
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता बातचीत में स्वीकार करते हैं, 'वाजपेयी की ताजपोशी तो हो गई है लेकिन उनकी राह आसान भी नहीं है. सामने लोकसभा का चुनाव पड़ा है और पश्चिम के साथ ही पूर्वांचल में उनको अपनी पैठ मजबूत करनी होगी.' उनका मानना है कि पार्टी के भीतर पूर्वाचल के नेताओं का बोलबाला है. सूर्य प्रताप शाही हों या फिर कलराज मिश्रा या फिर पार्टी के पिछड़े नेता ओमप्रकाश सिंह, सबको साथ लेकर चलना ही उनके लिए सबसे बड़ी परेशानी का सबब है क्योंकि यहां मठ तो एक ही है लेकिन जोगी कई हो गए हैं.
पार्टी के कुछ पदाधिकारी तो यहां तक कह रहे हैं कि पार्टी लोकसभा चुनाव से पहले ही फ्लॉप हो गयी है क्योंकि सूबे में करिश्माई नेताओं का अभाव दिखायी दे रहा है. सारी पार्टियां जहां युवाओं को आगे लाने की कवायद में जुटी हैं, वहीं भाजपा पुराने लोगों पर दांव लगा रही है.
भारतीय जनता युवा मोर्चा से जुड़े एक पदाधिकारी ने कहा, 'पार्टी को करिश्माई और आक्रामक सेनापति की आवश्यकता थी लेकिन पार्टी ने ऐसा न करके लोकसभा चुनाव के अपने अभियान को पहले ही धराशायी कर दिया है.' वह कहते हैं, 'सूबे की कमान वरूण गांधी या उमा भारती जैसे लोगों को सौंपी जानी चाहिए थी, ताकि पार्टी को एक नई सोच के साथ खड़ा किया जा सके. पार्टी वरूण गांधी को जिम्मेदारी देने से क्यों हिचक रही है, यह समझ में नहीं आ रहा है.'
भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद लक्ष्मीकांत वाजपेयी ने सधी हुई प्रतिक्रिया देते हुए कहा था, "पार्टी में ऐसे बहुत से कार्यकर्ता हैं जो मुझसे ज्यादा क्षमतावान हैं. मैं प्रदेश के शीर्ष नेताओं के मार्गदर्शन में अपना काम करूंगा और पार्टी ने जिस भरोसे के साथ मुझे जिम्मेदारी सौंपी है उस पर खरा उतरने की कोशिश करूंगा.'
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार अभयानंद शुक्ल कहते हैं, 'सूबे के ब्राह्मणों को खुश करने के लिए भाजपा ने लक्ष्मीकांत वाजपेयी पर दाव खेला है लेकिन इस बात पर संदेह ही है कि वह पार्टी की डूबती नैया को किनारा दे पाएंगे.' शुक्ल कहते हैं, "पार्टी को वरूण गांधी जैसे युवा चेहरे को जिम्मेदारी सौंपी जानी चाहिए थी क्योंकि पूर्वांचल में भी लोगों के बीच उनकी अच्छी छवि है और साथ ही पीलीभीत और आंवला से सटे चार-पांच जिलों में भी वह पार्टी को खड़ा करने में सहायक सिद्घ होते.'