भारतीय राजनीति में फोन टैपिंग का इतिहास काफी पुराना है. चाहे किसी की भी सरकार रही हो, वो अकसर अपने राजनीतिक विरोधियों पर नजर रखने के लिए फोन टैपिंग का इस्तेमाल करती रहती है. यह काम सुप्रीम कोर्ट की नजर में गैर कानूनी जैसा है. यह एक गंभीर मामला है.
(फोन टैपिंग मामले पर आजतक के एंकर अजय कुमार से 15 दिसंबर को शाम 4 बजे लाइव चैट कर सकते हैं.)
फोन टैपिंग पर बवाल मचा हुआ है. राजनीतिक दल से लेकर उद्योग जगत तक चिंतित है. वैसे पिछले साठ वर्षों के भारतीय इतिहास में यह कोई पहला मामला नहीं है. फोन टैपिंग की शुरूआत तो पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के जमाने में ही हो गई थी. उस समय यह आरोप लगाने वाले कोई और नहीं खुद संचार मंत्री रफी अहमद किदवई थें. उन्होंने यह आरोप तब के गृहमंत्री सरदार पटेल पर लगाया था जिसे उन्होंने तूल नहीं दिया.
फोन टैपिंग का इतिहास:-
1959: सेना प्रमुख जनरल केएस थिमाया ने अपने और आर्मी ऑफिस के फोन टेप होने का आरोप लगाया था.
1962: नेहरू सरकार के ही एक और मंत्री टीटी कृष्णामाचारी ने फोन टेप होने का आरोप लगाया था.
1988: अपने राजनीतिक विरोधियों के फोन टेप करवाने के आरोप में कर्नाटक के मुख्यमंत्री रामकृष्ण हेगड़े को कुर्सी छोड़ना पड़ी थी.
1991: तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर पर फोन टैप कराने का आरोप लगा था जिसके बाद उन्हें अपनी कुर्सी से हाथ धोना पड़ा.
1996: इंडियन टेलीग्राफ एक्ट 1885 में केंद्र और राज्य सरकारों को इस बात के अधिकार दिए गए हैं कि वो जनहित में या इमरजेंसी में मैसेज इंटरसेप्ट कर सकती है, लेकिन 1996 में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर दिशा-निर्देश देते हुए कहा था कि अवैध तरीके से फोन टैपिंग गंभीर मामला है और इसके आदेश गृह सचिव स्तर पर मिलने चाहिए और वो भी कुछ निर्धारित समय के लिए.
2004-2006: जून 2004 से मार्च 2006 के बीच सरकार की एजेंसियों ने 40 हजार से ज्यादा फोन टेप किए थे.
2006: अमर सिंह के फोन टैपिंग को लेकर भी बवाल हुआ था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे जारी करने पर रोक लगा दी.
{mospagebreak}(फोन टैपिंग मामले पर आजतक के एंकर अजय कुमार से 15 दिसंबर को शाम 4 बजे लाइव चैट कर सकते हैं.)
2007: अक्टूबर 2007 में सरकार ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के फोन भी टेप करवाए. नीतीश कुमार तब अपने एक सहयोगी से बात कर रहे थे कि कैसे बिहार के लिए केंद्र से ज्यादा पैसा मांगा जाए.
2008: जुलाई 2008 में यूपीए सरकार के दौरान जब मनमोहन सिंह को विश्वासमत हासिल करना था तो केंद्र सरकार की एक एजेंसी ने सीपीएम महासचिव प्रकाश करात समेत तीसरे मोर्चे के कई नेताओं के फोन टेप करवाए, ताकि पता चल सके कि सरकार के खिलाफ क्या रणनीति बन रही है. उससे पहले लेफ्ट पार्टियां न्यूक्लियर मुद्दे पर सरकार का साथ छोड़ चुकी थीं.
2009: देश के कई उद्योगपति एवं नेताओं का फोन टैप किया गया जिसका खुलासा अभी हो रहा है.
तमाम तरह की मोबाइल फोन सेवा कंपनियों के दस लाख से ज्यादा कनेक्शन पूरे साल केंद्रीय एजेंसियों की निगरानी में हैं. सरकार आधिकारिक रूप से, सिर्फ नई दिल्ली में 6,000 फोनों को ही गुप्त रूप से सुनने की बात स्वीकार करेगी. इस खुफिया सूची में 400 अफसरशाह और सैन्य अधिकारी शामिल हैं जिन पर भ्रष्टाचार के संदेह में नजर रखी जा रही है, इनके अलावा कॉर्पोरेट जगत की 200 बड़ी हस्तियां, 50 से ज्यादा शीर्ष पत्रकार, इतनी ही संख्या में बिचौलिये, हथियारों के दर्जन भर सौदागर, दो दर्जन एनजीओ और लगभग 100 से ज्यादा हाइ सोसायटी के दलाल, नशे के सौदागर और हवाला ऑपरेटर शामिल हैं. संदिग्ध आतंकवादी, उनके समर्थक और कुख्यात अपराधी भी.