लोकपाल विधेयक की मसौदा समिति में तीखे मतभेद सामने आये. सरकार ने लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और संसद के भीतर सांसदों के कृत्यों को शामिल किये जाने का विरोध किया.
मजबूत एवं प्रभावी लोकपाल विधेयक के लिए आंदोलन का नेतृत्व कर रहे अन्ना हजारे ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि सरकार 30 जून तक की निर्धारित समयावधि पर अपना विधेयक तैयार कर पायेगी. हजारे मसौदा तैयार करने वाली समिति के भी सदस्य हैं.
वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में हुई समिति की बैठक में पहली बार विवादास्पद मुद्दा चर्चा के लिए उठा.
समिति में समाज के सदस्य अरविन्द केजरीवाल और प्रशांत भूषण ने कहा कि नागरिक घोषणापत्र और सार्वजनिक शिकायतों को लोकपाल के अधिकार क्षेत्र में रखने के अलावा सरकार ने प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका तथा संसद के भीतर सांसदों के भ्रष्ट कृत्यों को लोकपाल के दायरे में लाये जाने का विरोध किया.
उन्होंने कहा कि सरकार के आज के प्रस्ताव उसके पहले प्रस्तावों से भी खराब थे. उन प्रस्तावों की भर्त्सना की गयी और उन्हें खारिज कर दिया गया.
केजरीलवाल ने कहा कि सरकार के नवीनतम विधेयक में प्रधानमंत्री को इसके दायरे में रखा गया था लेकिन सरकार इससे पीछे हट गयी.
समिति के सदस्यों के बीच आज सहमति नहीं बन पाने के कारण सरकार ने तय किया है कि वह मतभेद के इन मुद्दों पर राज्यों और राजनीतिक दलों को लिखेगी और उनकी राय मांगेगी. इसके बाद वह छह जून को सभी पक्षों की राय जानने के बाद समिति में फिर विचार विमर्श करेगी. सिब्बल ने कहा कि राज्यों की राय जानने की जरूरत है क्योंकि लोकायुक्तों की नियुक्ति वहां की जानी है.
भूषण ने कहा कि सरकारी प्रतिनिधियों ने उन्हें बताया कि प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में लाने से वह निष्क्रिय हो जायेगा.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि सरकार के विधेयक में भी प्रधानमंत्री को लोकपाल के तहत लाने का प्रावधान है तथा अभी तक वह भ्रष्टाचार के मुद्दों पर जांच के दायरे से बाहर नहीं है.
भूषण ने कहा, ‘‘हम केवल यही चाहते हैं कि वह एक निष्पक्ष एजेंसी के दायरे के भीतर आये न कि ऐसी एजेंसी के, जो स्वयं सरकार के अधीन हो. इससे हितों का टकराव होता है.’
केजरीवाल ने अफसोस जताया, ‘प्रधानमंत्री चाहते हैं कि उनके कार्यकलाप की जांच किसी निष्पक्ष एजेंसी से नहीं बल्कि सीबीआई जैसी एजेंसी से करवायी जानी चाहिए जो उनके अधीन हो.’ समिति की बैठक में मुखर्जी के साथ साथ सरकार की ओर से गृह मंत्री पी चिदंबरम, कानून मंत्री कपिल सिब्बल, अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री सलमान खुर्शीद और कानून मंत्री एम वीरप्पा मोइली ने भी भाग लिया.
समाज की ओर से बैठक में हजारे, शांतिभूषण एवं प्रशांत भूषण, केजरीवाल और संतोष हेगड़े ने भाग लिया. समाज के सदस्य चाहते है कि लोकपाल के पास यह अधिकार होना चाहिए कि वह पूरी नौकरशाही में किसी भी व्यक्ति के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर सकें और इस मामले में वरिष्ठता की कोई सीमा नहीं तय की जानी चाहिए.
इस मामले में सरकार का मत है कि इस कानून के दायरे में केवल संयुक्त सचिव स्तर या उससे उपर के अधिकारी आने चाहिए. सांसदों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के बारे में सरकार ने कहा कि लोकपाल यादि संसद के बाहर के भ्रष्टाचार के मुद्दों की जांच करता है तो उसे कोई आपत्ति नहीं है. लेकिन उसने संसद के भीतर सांसदों के भ्रष्टाचार के कृत्यों की जांच करने की लोकपाल को इजाजत देने के प्रस्ताव का विरोध किया.
केजरीवाल ने कहा कि सरकार चाहती है कि विधेयक के दायरे से रक्षा अधिकारियों को अलग रखा जाना चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार का मत है कि मुख्य सतर्कता आयुक्त और सीबीआई के कार्यालयों का लोकपाल में विलय नहीं किया जाना चाहिए.
बहरहाल, समाज के सदस्यों ने सरकार के दावों को खारिज कर दिया और उसकी प्रतिक्रिया पर निराशा जतायी.
केजरीलवाल ने कहा कि विधेयक पर आज कई मूलभूत मतभेद थे. सरकार चाहती है कि उच्च न्यायपालिका और संसद के भीतर सांसदों के कृत्यों में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर ‘‘आत्म नियमन’’ होना चाहिए.