आज सुबह 11 बजे लोकसभा में लोकपाल बिल पेश होगा. कांग्रेस भले ही इस बिल को अपने भ्रष्टाचार विरोधी संकल्प की जीत मान रही हो. संसद के अंदर और बाहर बिल का विरोध जारी है. लेकिन कांग्रेस इस बिल को लेकर पूरी तरह से संतुष्ट है और पार्टी का कहना है कि वो संघर्ष को तैयार है.
सूत्रों से पता चला है कि सरकार चाहती है बहस के दौरान दूसरे दल भी बिल विरोधी साबित हों. बिल पास न हो तो दोष सरकार पर नहीं संसद पर आए. सरकार हंगामे और संसदीय नियमों की आड़ का फायदा उठाने की रणनीति पर भी विचार कर रही है.
अगर ये बात सच है तो सरकार सोच रही होगी कि ऐसा करके वो बिल को अगले साल तक के लिए टाल दे. ऐसे में पूरे विवाद में अन्ना के विरोध की तलवार केवल कांग्रेस पर नही गिरेगी.
कांग्रेस ने अपने सांसदों को बिल का सिनोप्सिस बंटवा दिया है. साफ है कि पार्टी चाहती है बिल को लेकर जब संसद में बहस हो तो उसके लोग अपना पक्ष रखने को पूरी तरह से तैयार रहें. लोकपाल पर चर्चा के लिए विंटर सेशन को तीन दिन के लिए बढ़ा दिया गया है. छुट्टी के बाद 27, 28 और 29 दिसंबर को भी संसद चलेगी.
सरकारी बिल से टीम अन्ना नाराज
लोकपाल पर सरकार ने जो बिल तैयार किया है, आज संसद में उसे पेश कर दिया जाएगा. हालांकि इस बिल से ना टीम अन्ना खुश है और ना विपक्ष. लेकिन सरकार का दावा है कि वो इसी सत्र में इसे पास करा लेगी. हालांकि संसद से सड़क तक संग्राम की तैयारी है.
जो काम पिछले 43 बरसों में नहीं हो सका, वो अब होने को है. भ्रष्टाचार के खिलाफ भारत में सबसे बड़े कानून के लिए संसद में आज पेश हो जाएगा बिल. एक ऐसा बिल, जिसे लेकर पिछले 9 महीने से लगातार चल रहा है आंदोलन. एक ऐसा बिल, जिसकी मांग ने देश भर में पैदा कर दिया जन-आक्रोश. एक ऐसा बिल, जिसे लेकर केंद्र सरकार की ना जाने कितनी बार फजीहत भी हो गई. एक ऐसा बिल, जिसके लिए अन्ना तीन बार अनशन कर चुके हैं और चौथे अनशन की तैयारी है.
स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट में भारी फेरबदल करते हुए अब सरकार ने एक बिल तो तैयार कर लिया है. लेकिन, जो बिल तैयार हुआ है, उसपर ना टीम अन्ना खुश है और ना ही विपक्ष. जिस टीम अन्ना ने लोकपाल के लिए आवाज बुलंद की है, वो टीम अन्ना सरकार के लोकपाल को सिरे से खारिज करती है. लेकिन सरकार का दावा है कि उसने जो-जो वादे किए था, वो सारे पूरे कर रही है. लेकिन, सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने वाली टीम अन्ना ने अब ये इल्जाम लगाना भी शुरू कर दिया है कि दरअसल सरकार को लोगों की परवाह नहीं, वो तो उतना ही करती है, जितना सोनिया और राहुल उनसे करने को कहते हैं.
सोनिया ने संभाला मोर्चा
लोकपाल के मौजूदा बिल के लिए सोनिया की सह वाली बात को मजबूत करता है संसदीय दल बैठक में उनका भाषण, जिसमें उन्होंने लोकपाल को दूसरी सरकारी योजनाओं के साथ ऱखा और चुनावी रंग दिया. सोनिया ने कहा कांग्रेस अब 2009 के चुनावी घोषणा पत्र से ज्यादा कर चुकी है.
कुल मिलाकर हालात यही हैं कि पिछले हर बार की तरह ही इस बार भी लोकपाल की राह में कई अड़ंगे हैं. बिल अभी लोकसभा में पेश भी नहीं हुआ है और बखेड़ा शुरू हो चुका है. कांग्रेस कहने में लगी है कि सरकार गंभीर है और बीजेपी को ये लगता है कि सरकार चलने वाली नहीं है. जाहिर है अब सवाल यही खड़ा होता है कि आखिर क्या होगा इस लोकपाल का. क्या 2011 में भी ये कानून बन पाएगा और अगर बनेगा, तो कैसा बनेगा.
सरकार की गुप्त रणनीति
सरकार की रणनीति साफ है कि सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे. जो बिल बना है, उसपर विपक्ष ने हंगामा शुरू कर दिया है. ऐसे में आशंका है कि बिल पर अगले तीन दिनों में शायद ही बिल पास हो पाए. जाहिर है, सरकार ये जताने की कोशिश में है कि वो तो गंभीर है. लेकिन बाकी लोगों की भी तो जिम्मेदारी है. सोनिया की शह पर सरकार ने अन्ना को मात तो दे दी. पर संसद के भीतर उसे सोनिया के बिल को बदलने से भी बचाना है.
ऐसे में सदन के भीतर सरकार की रणनीति बड़ी पेचीदा है जिससे वो एक तीर से कई निशाने साधना चाहती है. सरकार चाहती है कि अगले तीन दिन में उसके अलावा दूसरे दल भी बिल विरोधी साबित हों. बिल पास न हो तो दोष सरकार पर नहीं संसद पर आए.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक सरकार हंगामे और संसदीय नियमों की आड़ का फायदा उठाने की रणनीति पर भी विचार कर रही है. अगर ये बात सच है तो सरकार सोच रही होगी कि ऐसा करके वो बिल को अगले साल तक के लिए टाल दे. ऐसे में पूरे विवाद में अन्ना के विरोध की तलवार केवल कांग्रेस पर नही गिरेगी. इस रणनीति की कुछ आहट संसद में देखने सुनने को मिली हैं. जो महिला आरक्षण बिल के हश्र की याद दिलाती हैं.