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लोकपाल बिल में किन मुद्दों पर है मतभेद

लोकपाल बिल का ड्राफ्ट अब ज़ाहिर हो चुका है और उसी के साथ सामने आ चुके हैं वो तमाम मुद्दे जिन पर टीम अन्ना और सरकार के बीच मतभेद हैं.

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अन्ना हजारे और मनमोहन सिंह
अन्ना हजारे और मनमोहन सिंह

लोकपाल बिल का ड्राफ्ट अब ज़ाहिर हो चुका है और उसी के साथ सामने आ चुके हैं वो तमाम मुद्दे जिन पर टीम अन्ना और सरकार के बीच मतभेद हैं.

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1. सबसे अहम मुद्दा है पीएम का. टीम अन्ना कहती है कि पीएम लोकपाल के दायरे में हों. सरकार को मंज़ूर है लेकिन कुछ शर्तों के साथ. शर्तों में राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेशी मामले शामिल हैं.

2. दूसरा अहम मुद्दा है कि पीएम की जांच कब की जा सकती है. अन्ना कहते हैं कि पीएम की जांच उसके कार्यकाल के दौरान और कार्यकाल के बाद कभी भी की जा सकती है. सरकार को मंज़ूर है लेकिन शर्त ये है कि मामला 7 साल के भीतर का होना चाहिए.

3. नौकरशाही के ग्रुप सी और डी पर मदभेद बरक़रार है. टीम अन्ना चाहती है कि पूरी नौकरशाही को लोकपाल देखे. सरकारी बिल कहता है कि सी और डी को सीवीसी देखेगा.

4.सबसे बड़ा मुद्दा है सीबीआई का. अन्ना और उनके समर्थक सीबीआई को पूरी तरह लोकपाल के दायरे में चाहते हैं लेकिन सरकार को ये मंज़ूर नहीं.

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5.टीम अन्ना चाहती है कि सीबीआई के डायरेक्टर की नियुक्ति में सरकार का दख़ल ना हो. जबकि सरकार कह रही है कि पीएम, नेता विपक्ष और मुख्य न्यायाधीश नियुक्ति करें.

6.अन्ना की मांग है कि भ्रष्टाचार के मामले की पूरी जांच का अधिकार लोकपाल के पास होना चाहिए. सरकारी बिल सिर्फ़ शुरुआती जांच की बात कहता है.

7.टीम अन्ना चाहती है कि लोकपाल के पास जांच और अभियोजन दोनों का हक़ हो. सरकारी बिल कहता है कि लोकपाल के पास सिर्फ़ अभियोजन का अधिकार होगा.

8. लोकपाल में आरक्षण के मुद्दे पर आज हल्ला मचा है. इस बारे में टीम अन्ना की ठोस राय नहीं है, लेकिन उन्हें आरक्षण से कोई हर्ज भी नहीं है. सरकार की मुश्किल ये है कि संविधान में संशोधन किए बगैर धार्मिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता.

9. अन्ना का कहना है कि राज्यों में लोकायुक्त की नियुक्ति केंद्रीय क़ानून के आधार पर हो. सरकारी बिल कहता है कि ये राज्यों के हवाले हो.

10. लोकपाल को हटाने के मामले पर भी भारी मतभेद है. टीम अन्ना की राय में कोई भी आम आदमी सुप्रीम कोर्ट से शिक़ायत कर सकता है, जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट करेगा. सरकार कहती है कि शिक़ायत राष्ट्रपति के पास जाएगी, फिर कम से कम 100 सांसदों की सहमति के बाद शिक़ायत सुप्रीम कोर्ट को सौंपी जाएगी.

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