सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने कहा कि उच्च स्तरीय न्यायपालिका को समाज द्वारा प्रस्तावित लोकपाल विधेयक के दायरे से बाहर रखा जाएगा और विधेयक का मसौदा तैयार करने वाली समिति में उनके प्रतिनिधियों का रुख ‘लचीला’ होगा.
मसौदा तैयार करने वाली दस सदस्यीय समिति की पहली बैठक में भाग लेने के लिए दिल्ली जाने की तैयारी कर रहे हजारे ने कहा कि लोकपाल के दायरे से उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय के जजों को बाहर रखा जाना चाहिए.
समिति में अन्ना हजारे, उनके द्वारा मनोनीत चार सदस्य और पांच कैबिनेट मंत्री शामिल हैं. विधेयक पर शनिवार को वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी की अध्यक्षता में समिति चर्चा करेगी. हजारे ने कहा कि विधेयक के दायरे में केवल निचले स्तर की न्यायपालिका को ही रखा जाना चाहिए.
उन्होंने कहा, ‘समाज के प्रतिनिधि विधि विशेषज्ञ हैं और उन्हें लंबा अनुभव है. जहां तक लचीले रुख का सवाल है तो चर्चा के समय यह जाहिर हो जाएगा.’ उनसे पूछा गया था कि उनके द्वारा प्रस्तावित ‘जन लोक पाल’ के दायरे में क्या उच्चतम न्यायालय के जजों को भी रखा जाएगा.
गुजरात और बिहार के मुख्यमंत्री क्रमश: नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार की प्रशंसा के कारण आलोचना का सामना कर रहे हजारे ने कहा कि उन्होंने कभी भी सांप्रदायिक या विभाजन की राजनीति का समर्थन नहीं किया. सामाजिक कार्यकर्ता ने आरोप लगाया कि ‘राजनीतिक और आपराधिक ताकतें’ लोकपाल विधेयक के पक्ष में हो रहे देशव्यापी आंदोलन को बदनाम और आलोचना कर, इसे कमजोर करने की कोशिश कर रही है.
हजारे ने कहा कि उन्होंने गुजरात में नरेंद्र मोदी और बिहार में नीतीश कुमार की सरकारों द्वारा किए विकास कार्यों की केवल सराहना की है. उन्होंने कहा, ‘मेरी टिप्पणियों को कुछ लोगों ने गलत समझ लिया. मैंने कभी किसी सांप्रदायिक राजनीति का या विभाजन की राजनीति का समर्थन नहीं किया.’ उन्होंने राजनीतिक और आपराधिक ताकतों पर भ्रष्टाचार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन को कमजोर करने का आरोप लगाते हुए कहा कि ये ताकतें जन लोकपाल विधेयक को मिल रहे आम आदमी के भारी समर्थन से चिंतित हो गई हैं.
हजारे ने नाम लिए बिना कहा कि ये ताकतें भ्रम पैदा करने और आंदोलन को बदनाम करने की कोशिश कर रही हैं. उसने पूछा गया कि कुछ लोग उनमें गांधी की झलक देखते हैं, तो क्या वह स्वयं को दूसरा महात्मा मानते हैं. इस पर हजारे ने कहा, ‘मैं महात्मा के पैरों की धूल के बराबर भी नहीं हूं. हां, मेरे जीवन पर उनका बहुत गहरा प्रभाव है.’
समिति की कार्यवाही की वीडियोग्राफी की मांग पर हजारे ने कहा कि सरकार जनता की सेवक है और उसके कामकाज में पूरी तरह पारदर्शिता होनी चाहिए. उन्होंने कहा, ‘यदि कोई बैठक की वीडियोग्राफी का विरोध करता है तो इसका मतलब है कि उसकी अंतरात्मा साफ नहीं है. लोगों को विधेयक का मसौदा तैयार करने की प्रक्रिया के बारे में जानने का हक है. इसीलिए मैं कार्यवाही की वीडियोग्राफी का पक्षधर हूं.’
हजारे से पूछा गया कि वह और उनके समर्थक जो कर रहे हैं उससे एक तरह से सांसदों और संसद के दायित्वों का अतिक्रमण होगा. इस पर हजारे ने कहा कि उनकी भूमिका को लेकर यह एक गलतफहमी है. उन्होंने कहा, ‘सांसद जनता के सेवक होते हैं. उन्हें अर्थ प्रबंधन और समाज के कल्याण के लिए कानून बनाने के लिए संसद भेजा जाता है. पिछले 42 वर्षों में लोकपाल विधेयक पारित नहीं किया जा सका. आठ बार नाकामी हाथ लगी. अब इसे पारित कराने के लिए आंदोलन छेड़ना जनता का अधिकार है.’
हजारे ने इस आशंका को भी खारिज कर दिया कि समाज द्वारा प्रस्तावित लोक पाल संस्थान ‘अनियंत्रित ताकत’ बन जाएगा. गांधीवादी सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा, ‘लोक पाल और अन्य सदस्यों का चयन एक उच्च स्तरीय समिति पूरी पारदर्शिता से करेगी.’ उन्होंने कहा कि यदि लोकपाल का कोई सदस्य किसी मामले में दोषी पाया जाता है तो उसे एक माह में हटा दिया जाएगा.
हजारे ने कहा था कि यदि संसद में 15 अगस्त तक लोकपाल विधेयक पारित नहीं किया जाता है तो वह फिर से आंदोलन करेंगे. इस बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि इसमें विलंब नहीं होगा क्योंकि मसौदा तैयार करने के लिए 30 जून की समय सीमा तय की गई है. उनके द्वारा राजनीतिक नेताओं को लेकर दिये गये बयान पर हो रही आलोचनाओं पर सामाजिक कार्यकर्ता ने कहा कि उन्होंने कभी भी भारत के सभी राजनेताओं को भ्रष्ट नहीं कहा.
हजारे ने कहा, ‘सभी स्तरों पर बहुत कम अपवाद हैं. लेकिन उन अपवादों का तभी सम्मान किया जा सकता है जब वह अपने नजदीक हो रहे भ्रष्टाचार की जानकारी होने पर उसके खिलाफ आवाज उठाएं. भ्रष्टाचार पर चुप रहना भी भ्रष्टाचार का समर्थन करना है और जो राजनेता इस श्रेणी में आते हैं, देश के लिए वास्तव में उनका कोई उपयोग नहीं है.’
राजनीतिज्ञों और कुछ मतदाताओं को कथित तौर पर भ्रष्ट और बेइमान कहने के कारण भी हजारे को कांग्रेस और राकांपा की कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. इस मामले में 73 वर्षीय गांधीवादी समाजसेवी ने कहा कि इस देश के मतदाताओं के चरित्र को बदनाम करने के लिए राजनीतिक पार्टी और राजनेता जिम्मेदार हैं. राजनेता सामान्य तौर पर काले धन का इस्तेमाल सत्ता और चुनाव के दौरान मतदाताओं को पैसा बांटने के लिए करते हैं.
उन्होंने सवाल किया, ‘क्या आज गुण संपन्न और अच्छे नैतिक गुणों वाले प्रत्याशी बगैर काले धन के उपयोग के बिना चुनाव में जीत हासिल कर सकते हैं.’ केंद्रीय मंत्री शरद पवार के बारे में पूछे गए एक सवाल पर उन्होंने कहा, ‘मैं एक व्यक्ति के तौर पर पवार के खिलाफ नहीं हूं लेकिन वह जो प्रवृत्ति दर्शाते हैं, मैं उसके खिलाफ हूं.’ भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन में मिले समर्थन के लिए हजारे ने आम आदमी और गैर सरकारी संगठनों के प्रति आभार जताया.