लोकपाल बिल के लिए गठित स्टैंडिंग कमेटी ने बिल का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है. प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखने पर फैसला नहीं हुआ है और इस पर 30 नवंबर को फैसला लिया जाएगा.
ड्राफ्ट के अनुसार लोकपाल संवैधानिक संस्था होगी और ग्रुप ए और ग्रुप बी इसके दायरे में होंगे जबकि ग्रुप सी और ग्रुप डी के कर्मचारी इसके दायरे से बाहर होंगे. संसद को भी लोकपाल के दायरे से बाहर रखा गया है. सीवीसी और सीबीआई को भी इसके दायरे से बाहर रखा गया है. झूठी शिकायत पर 6 महीने की सजा का भी प्रावधान किया गया है.
इस बिल को देखकर टीम अन्ना की प्रतिक्रिया क्या होगी ये तो बाद में पता चलेगा लेकिन ड्राफ्ट में टीम अन्ना की कई बातों को शामिल नहीं किया गया है. जैसे टीम अन्ना ने मांग की थी कि निचले स्तर के कर्मचारियों को इसमें जरूर शामिल किया जाए तथा सीबीआई को भी लोकपाल के दायरे में रखा जाए. लेकिन स्टैंडिंग कमेटी द्वारा तैयार ड्राफ्ट में इनमें से कोई भी मांग नहीं मानी गई है. इससे एक बार फिर लगता है कि टीम अन्ना आंदोलन जरूर करेगी.
लोकपाल विधेयक पर विचार कर रही संसद की स्थायी समिति ने न्यायपालिका और सदन के भीतर सांसदों के व्यवहार को इस प्रस्तावित कानून के दायरे से बाहर रखने की सिफारिश की है और सीबीआई की मुकदमा चलाने वाली शाखा को लोकपाल के तहत लाने की मांग को खारिज कर दिया है.
स्थायी समिति के सदस्यों ने सर्वसम्मति से लोकपाल को संवैधानिक दर्जा देने पर सहमति जताई है और राज्यों के लोकायुक्तों को भी एक कानून के दायरे में लाने की पैरवी की है. विधेयक का मसौदा सभी सदस्यों को वितरित किया गया है और 30 नवंबर को इसे अंतिम निर्णय के लिए लाया जाएगा. समिति ने एनजीओ और कारपोरेट को भी लोकपाल के दायरे में लाने की पैरवी की है.
उधर, विधेयक के मसौदे में प्रधानमंत्री को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है. प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने अथवा नहीं लाने के मुद्दे पर बुधवार सुबह चर्चा की जाएगी. प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में रखने को लेकर कई विचार सामने आए हैं. कुछ का कहना है कि प्रधानमंत्री को कुछ विशेष अधिकारों के साथ पद से हटने के बाद लोकपाल के दायरे में रखा जा सकता है.
हजारे पक्ष की संपूर्ण नौकरशाही को लोकपाल के दायरे में लाने की मांग को स्थायी समिति ने नहीं माना है. मसौदे में प्रथम और द्वितीय श्रेणी के अधिकारियों को इसमें लाने की बात की गई है. तीसरी और चतुर्थ श्रेणी के सरकारी कर्मचारियों को इससे बाहर रखने का फैसला किया गया है. मीडिया, एनजीओ और कारपोरेट का हवाला देते हुए मसौदे में कहा गया है कि अगर घरेलू और विदेशी अनुदान 10 लाख रुपये वाषिर्क से अधिक होता है तो ऐसे सरकारी अथवा गैर सरकारी संगठनों को लोकपाल के दायरे में होना चाहिए.