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एमपी नहीं चाहते सांसद निधि का हो हिसाबः जयराम रमेश

ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि संसद सदस्य सभी योजनाओं के ‘सामाजिक हिसाब किताब’ की मांग तो कर रहे हैं लेकिन ‘सांसद निधि’ के तहत किए जाने वाले कार्यों के लिए इस तरह की निगरानी के प्रति वे इच्छुक नहीं हैं.

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जयराम रमेश
जयराम रमेश

ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने कहा कि संसद सदस्य सभी योजनाओं के ‘सामाजिक हिसाब किताब’ की मांग तो कर रहे हैं लेकिन ‘सांसद निधि’ के तहत किए जाने वाले कार्यों के लिए इस तरह की निगरानी के प्रति वे इच्छुक नहीं हैं.

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रमेश ने मनरेगा पर सामजिक संगठनों के एक कार्यक्रम में कहा, ‘जब कभी संसद में मनरेगा की आलोचना की जाती है, तब मैं कहता हूं कि यदि ऐसा ही सामाजिक अंकेक्षण सांसद निधि के तहत होने वाले कार्यों के लिए भी हो, तो यह देश के लिए अच्छा होगा. लेकिन सांसद इसके सामाजिक हिसाब किताब के लिए तैयार नहीं हैं.’

उन्होंने ‘मनरेगा अवसर, चुनौतियां और आगे का मार्ग’ विषय पर एक रिपोर्ट जारी करने के बाद कहा, ‘सामाजिक हिसाब किताब को पारदर्शिता लाने के लिए अपनाया गया और यहां तक कि अन्ना हजारे भी इससे सहमत हैं.’

गौरतलब है कि सांसद निधि स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के तहत प्रत्येक सांसद अपने निर्वाचन क्षेत्र में जिलाधीश को सालाना पांच करोड़ रुपए तक विकास कायो’ पर खर्च करने के बारे में सुझाव दे सकता है.

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राज्यसभा सदस्य जिस राज्य से चुने गए हैं, उसके एक या एक से अधिक जिलों में विकास कायो’ पर खर्च की सिफारिश कर सकते हैं जबकि लोकसभा और राज्यसभा के नामित सदस्य देश के किसी भी राज्य में एक या एक से अधिक जिले का चयन इस योजना के तहत अपने पसंद की योजना पर काम कराने के लिए कर सकते हैं. रमेश ने संसद में हर तीसरा सवाल मनरेगा के बारे में पूछे जाने का हवाला देते हुए कहा, ‘सांसद चाहते हैं कि सभी काम उनकी ही मंजूरी से हो वहां इरादा अलग है.’

उन्होंने मनरेगा के ‘मस्टर रोल’ को फर्जी बताए जाने तथा धन को उचित तरीके से खर्च नहीं किए जाने के बारे में मीडिया में आई खबरों को तवज्जो नहीं देते हुए उन्होंने कहा कि संप्रग सरकार के कार्यक्रम ने ‘लोगों में एक नई उम्मीद जगाई है तथा गरीब तबके के लोगों को आत्मसम्मान दिया है.’

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