प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मौजूदा परिस्थितियों को बेहतर ढंग से परिलक्षित करने के वास्ते संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में जल्द सुधार और विस्तार किये जाने की जोरदार वकालत की है.
उन्होंने विभिन्न राष्ट्रों से आह्वान है कि वह वैश्विक आर्थिक मंदी को देखते हुये विभिन्न प्रकार के अवरोधों के जरिये संरक्षणवादी गतिविधियों को बढावा नहीं देने दें.
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संयुक्त राष्ट्र महासभा को तीन साल के अंतराल के बाद संबोधित करते हुये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि आतंकवादी के खिलाफ लड़ाई चुनींदा मोचों पर नहीं लड़ी जा सकती है और इसका मुकाबला सभी मोर्चों पर किये जाने की आवश्यकता है.
भारत, ब्राजील, जर्मनी और जापान :समूह.चार: देशों की बैठक में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार पर जोर दिया गया. प्रधानमंत्री ने कहा कि दुनिया एक मजबूत और प्रभावी संयुक्त राष्ट्र चाहती है. भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का सदस्य बनना चाहता है.
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उन्होंने कहा कि हमें एक ऐसे संयुक्त राष्ट्र की जरूरत है जो अमरी, गरीब, बड़े, छोटे सभी की आकांक्षाओं के प्रति संवेदनशील हो. इसके लिए संयुक्त राष्ट्र और उसके प्रमुख अंगों, महासभा एवं सुरक्षा परिषद में सुधार एवं फिर से जान फूंकने की जरूरत है.
मनमोहन ने अपने 15 मिनट के सम्बोधन में कहा कि सुरक्षा परिषद को यदि मौजूदा वास्तविकताओं को परिलक्षित करना है तो उसमें सुधार और उसका विस्तार आवश्यक है. इस इस प्रकार के नतीजे से वैश्विक मुद्दों से निपटने में परिषद की विश्वसीनयता और दक्षता बढ़ जायेगी. सुरक्षा परिषद के शीघ्र विस्तार के लिए नये जोश से काम किये जाने की जरूरत है. उन्होंने कहा कि आतंकवाद का कहर अभी तक जारी है और वह बड़ी संख्या में निर्दोष लोगों की जान ले रहा है.
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प्रधानमंत्री ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए नये खतरे उत्पन्न हुए हैं. उन्होंने कहा कि यदि हम टकराववादी रवैये की जगह सहयोगात्मक रूख अपनाये तो हमें सफलता मिलेगी.
उन्होंने कहा कि यदि हम एकबार फिर संरा के मूलभूत सिद्धांतों..अंतरराष्ट्रीयवाद और बहुपक्षीयवाद को अपनाते हैं तो हमें सफलता मिल सकती है. पश्चिम एशिया के अशांत क्षेत्रों में हस्तक्षेप के मुद्दे को लेकर जारी विवाद के बीच सिंह ने कहा कि कानून का पालन करना अंतरराष्ट्रीय मामलों में भी उतना ही महत्वपूर्ण है जितना कि देशों के भीतर.
प्रधानमंत्री ने कहा कि समाजों को बाहर से सैन्य बलों के जरिये व्यवस्थित नहीं किया जा सकता. सभी देशों के लोगों को अपना भाग्य चुनने और अपना भविष्य तय करने का अधिकार है.