अमेरिका की पूर्व विदेशमंत्री कोंडालीजा राइस ने अपनी एक पुस्तक में दावा किया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भारत-अमेरिका असैन्य परमाणु करार पर आगे बढ़ने को लेकर शुरू में अनिच्छुक थे और वह उनसे मिलना तक नहीं चाहते थे, क्योंकि वह (सिंह) उन्हें ना नहीं कहना चाहते थे.
दरअसल, इस करार के पूरा होने के पीछे कोंडालीजा राइस का दबाव बनाने कौशल था, क्योंकि बुश प्रशासन में शामिल किसी को भी इस करार के पूरा होने की उम्मीद नहीं थी.
कोंडालीजा ने अपनी हालिया पुस्तक ‘नो हायर ऑनर’ में इस परमाणु करार के घटनाक्रम का जिक्र किया है. यह पुस्तक एक नवंबर को दुकानों पर उपलब्ध होगी.
सिंह जब अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज डब्ल्यू बुश से व्हाइट हाउस स्थित उनके ओवल कार्यालय में मुलाकात करने वाले थे, उस दिन सुबह के वक्त को याद करते हुए कोंडालीजा ने अपनी पुस्तक में लिखा है, ‘‘मैं सुबह साढ़े चार बजे जग गई और बिस्तर पर बैठ गई.’’
एक दिन पहले तक समूचे बुश प्रशासन ने परमाणु करार पर उम्मीद छोड़ दी थी, जबकि इस करार को व्हाइट हाउस पुरे जोर शोर से आगे बढ़ा रहा था.
वहीं, भारत के तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह इस करार के पक्ष में थे लेकिन प्रधानमंत्री (सिंह) इसके पक्ष में नहीं थे क्योंकि वह इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं थे कि इससे नयी दिल्ली को सहमत कर लेंगे.
कोंडालीजा ने 784 पृष्ठों की पुस्तक में कहा है, ‘‘नटवर इस करार के पक्ष में थे लेकिन प्रधानमंत्री इस बात को लेकर आश्वस्त नहीं थे कि वह इससे नयी दिल्ली को सहमत कर लेंगे. आखिरकार, नटवर ने कहा कि वह इस दस्तावेज को प्रधानमंत्री के पास ले जाएंगे.’’
अमेरिका के तत्कालीन अवर विदेश मंत्री निकोलस बर्न्स के हवाले से बताया गया है, ‘‘विदेश मंत्री ने कोशिश की लेकिन प्रधानमंत्री इस करार पर तुरंत हस्ताक्षर नहीं कर सकते थे.’’ इससे पहले नटवर सिंह समझौते के लिए अंतिम कोशिश कर चुके थे.
कोंडालीजा ने लिखा, ‘‘मैंने राष्ट्रपति (बुश) से बात की. मैंने कहा कि ऐसा नहीं होने जा रहा. सिंह इसे होने नहीं देंगे. उन्होंने कहा कि बहुत बुरा हुआ तथा उन्होंने और मुझ पर अधिक दबाव नहीं डाला. उस रात बाद में निक ने मुझे फोन कर पूछा कि क्या मुझे पता है कि कोई करार नहीं होगा.’’ बुश-सिंह की बैठक के दिन कोंडालीजा सुबह जल्दी जग गई थी, इसलिए वह थोड़े तनाव में थीं लेकिन उन्होंने यह मौका नहीं गंवाने का संकल्प लिया. उन्होंने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से खुद मिलने और इस करार का मार्ग प्रशस्त करने की अंतिम कोशिश की.