प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा है कि वे असैन्य परमाणु करार को लेकर जापान पर ‘‘दबाव’’ नहीं डालेंगे, क्योंकि वह परमाणु मुद्दे की संवेदनशीलता को समझते हैं.
दो दिन की यात्रा पर जापान आए मनमोहन सिंह ने हालांकि कहा कि वह चाहेंगे कि जापानी कंपनियां भारत के परमाणु उद्योग विस्तार में भागीदारी करें. उन्होंने यहां एक दोपहर भोज के दौरान कहा ‘‘हम उम्मीद करेंगे कि जापान शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए भारतीय परमाणु उद्योग विस्तार में भारत का भागीदार होगा. लेकिन मैं जापान में मुद्दे की संवेदनशीलता को महसूस करता हूं और इसलिए दबाव नहीं डालूंगा.’’
मनमोहन ने ये टिप्पणियां एक सवाल के जवाब में कीं. उनसे दोनों देशों के बीच समग्र आर्थिक भागीदारी समझौता (सीईपीए) पूरा होने के बाद अगले कदमों के बारे में पूछा गया. प्रधानमंत्री की टिप्पणियां ऐसे समय आई हैं जब जापान इस बात पर जोर दे रहा है कि असैन्य परमाणु करार को लेकर प्रस्तावित समझौते में प्रावधान किया जाना चाहिए कि भारत द्वारा परमाणु परीक्षण किए जाने पर सहयोग खत्म हो जाएगा.
दोनों देश प्रस्तावति समझौते पर दो दौर की बात कर चुके हैं और भारतीय पक्ष संकेत दे चुका है कि दस्तावेज में उसकी स्थिति उचित शब्दों के जरिए अनुकूल रूप से दर्शायी जा सकती है.
परमाणु हमले का सामना करने वाला जापान दुनिया का एकमात्र देश है और वह इस मुद्दे पर अत्यधिक संवेदनशील है खासकर वह यह चिंता व्यक्त करता रहा है कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर दस्तखत नहीं कर रखे हैं.{mospagebreak}यह उल्लेख करते हुए कि भारत की तेजी से बढ़ती आर्थिक वृद्धि के चलते उर्जा की मांग बढ़ रही है मनमोहन ने व्यावसायिक हस्तियों से कहा कि इस क्षेत्र में दोनों देशों के बीच सहयोग से ‘‘जापानी कंपनियां भारत के महत्वाकांक्षी परमाणु कार्यक्रम में भागीदारी करने में सक्षम होंगी.’’ प्रधानमंत्री ने कहा कि उर्जा सक्षम प्रौद्योगिकी में वैश्विक नेता होने के नाते जापान भारत की मदद में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है जिससे इसकी उर्जा जरूरतें पर्यावरण के अनुकूल तरीके से पूरी हो सकें.
यहां निप्पोन कीदनरेन द्वारा आयोजित व्यावसायिक दोपहर भोज में मनमोहन ने कहा ‘‘हम पारंपरिक और यहां तक कि नवीन एवं अक्षय उर्जा क्षेत्र में जापान की प्रौद्योगिकी तथा निवेश चाहते हैं.’’ परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) द्वारा 2008 में शांतिपूर्ण परमाणु व्यापार के लिए भारत को छूट दिए जाने के बाद भारत पहले ही आठ देशों..अमेरिका फ्रांस रूस कनाडा कजाकस्तान अर्जेंटिना नामीबिया और मंगोलिया के साथ परमाणु समझौतों पर हस्ताक्षर कर चुका है. जापान भी उन देशों में शामिल था जिन्होंने एनपीटी में शामिल नहीं होने के बावजूद भारत को छूट दिए जाने का समर्थन किया था.