राज्यसभा में लोकपाल बिल को लेकर हुई नौटंकी के बाद आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है. बीजेपी नेता सुषमा स्वराज ने कहा है कि उन्हें पहले ही पता चल गया था कि राज्यसभा स्थगित होगी. उन्होंने कहा कि गुरुवार की रात राज्यसभा में लोकतंत्र का चीरहरण हुआ.
सुषमा ने कहा कि अगर सरकार की नीयत साफ होती तो इस बिल को पास कराने के लिए सरकार के पास तीन रास्ते थे- पहला रास्ता ये था कि सरकार इसे सलेक्ट कमेटी को भेज देती. सलेक्ट कमेटी अपना सुझाव देती. दूसरा रास्ता ये था कि सरकार चेयरमैन के कमरे में हमें (विपक्षी पार्टियों को) बुलाकर समय की मांग करती और अगले दिन के लिए वोटिंग करवाई जाती. तीसरा रास्ता ये था कि अगले सत्र में इस बिल को लाने का सरकार आश्वासन देती. सरकार का कहना है कि 187 संशोधनों पर चर्चा करने में समय लगता है.
ठीक है, सरकार अपना समय ले लेती लेकिन अगले सत्र में लाने का आश्वासन तो देती, लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया. इसलिए अरुण जेटली का ये कहना ठीक है कि अब समय आ गया है कि ये सरकार आत्ममंथन करे. अगर इस सरकार के पास बहुमत नहीं है तो इस सरकार को गद्दी छोड़ देनी चाहिए.'
इसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में अरुण जेटली ने कहा कि मध्य रात्रि के बाद भी सदन चल सकता है. सदन को ये अधिकार है कि वो अपना समय खुद तय करे. ऐसा नहीं है कि पहले ऐसा नहीं हुआ है, पहले भी कई बार सदन की कार्यवाही मध्यरात्रि के बाद भी चली है.
जेटली ने एक निजी चैनल के हवाले से कहा कि राष्ट्रपति कार्यालय इस बात का इंतजार कर रहा था कि उनके पास समय बढ़ाने का अनुरोध आए और वे इसे आगे बढ़ाने के लिए तैयार थे, लेकिन सरकार की ओर से ऐसा कोई भी प्रस्ताव पहुंचा ही नहीं.
जेटली ने कहा, 'महिला आरक्षण बिल पेश किए जाने के दौरान बीजेपी के विरोध करने के बावजूद सपा के विरोध के बाद मार्शल बुला लिये गए थे लेकिन जब गुरुवार को ऐसा ही विरोध का नजारा सरकार के सहयोगियों द्वारा हुआ तो मार्शलों को नहीं बुलाया गया.
बीजेपी ने कहा कि जहां तक बात ज्यूडीशियल बिल और जजों के रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाने वाले बिलों की है तो सरकार को इन बिलों को वोटिंग करने लाना चाहिए था लेकिन सरकार इन बिलों को वोटिंग कराने लाई ही नहीं. जहां तक बात एफडीआई बिल की है, सरकार अपने सहयोगियों को विश्वास में ही नहीं लेती. सरकार खुद ही निर्णय कर लेती है. सरकार के सहयोगियों के कारण ही यह बिल भी रुक गया.