भारत सरकार के खनन मंत्रालय के सचिव का तबादला इन दिनों चर्चा में है. इसकी वजह है गोवा में लोहे के अवैध खनन घोटाले पर जस्टिस एम बी शाह कमीशन की रिपोर्ट. खनन राज्य मंत्री ने इस रिपोर्ट को तय समय सीमा के अंदर संसद में पेश कर दिया और इसका खामियाज़ा भुगतना पड़ा खनन सचिव को. सवाल ये उठ रहे हैं कि खनन सचिव को सज़ा क्यों मिली. क्या इसलिए, क्योंकि ये रिपोर्ट कांग्रेस शासन के दौरान हुए 35 हज़ार करोड़ रुपये के घोटाले का पर्दाफाश करती है?
सरकार के गुस्से का शिकार हुए त्रिवेदी
1977 बैच के आईएएस अधिकारी और खनन सचिव रहे विश्वपति त्रिवेदी सरकार के गुस्से का शिकार हो गए. गुस्सा इस बात को लेकर कि खनन राज्य मंत्री ने गोवा में हुए खनन घोटाले पर जस्टिस एम बी शाह कमीशन की रिपोर्ट 7 सितंबर को सीधे संसद में पेश कर दी.
रिपोर्ट पेश होते ही कैबिनेट सचिवालय में संयुक्त सचिव आलोक चतुर्वेदी ने 14 सितंबर को विश्वपति त्रिवेदी को एक कारण बताओ नोटिस भेजा. नोटिस में विश्वपति त्रिवेदी से पूछा गया कि ये रिपोर्ट सीधे संसद तक कैसे पहुंची. नोटिस के मुताबिक रिपोर्ट कैबिनेट के ज़रिए संसद में पेश होनी चाहिए. ऐसा क्यों नहीं किया गया? खनन सचिव इस नोटिस का जवाब देते इससे पहले उनको बाहर रास्ता दिखा दिया गया.
दरअसल नियमों के मुताबिक किसी भी जांच कमीशन की रिपोर्ट 6 महीने के भीतर कैबिनेट के ज़रिए संसद में पेश होनी चाहिए. आखिर क्या वजह हुई कि ये रिपोर्ट सरकार के पास ना जाकर सीधे संसद तक पहुंच गई.
35000 करोड़ के गबन का हुआ खुलासा
गौरतलब है कि जस्टिस शाह कमीशन रिपोर्ट में कांग्रेस शासन के दौरान गोवा में अवैध खनन के 35000 करोड़ के गबन का खुलासा हुआ है. रिपोर्ट सीधे तौर कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत पर सवाल खड़े करती है. जिस दौरान ये घोटाला हुआ, उस वक्त दिगंबर कामत ही गोवा के मुख्यमंत्री थे और 12 साल तक खनन मंत्रालय भी उन्हीं के पास रहा.
क्या ये वजह तो नहीं कि ये रिपोर्ट 6 महीने तक खनन मंत्रालय में धूल चाटती रही. और नियमों के तहत जब खनन राज्य मंत्री ने इस रिपोर्ट को सीधे संसद में पेश कर दिया तो खनन सचिव से सवाल जवाब क्यों. उधर विपक्ष ने भी इस मामले पर निशाना साधा.
पर्यावरण मंत्रालय भी सवालों के घेरे में
कोलगेट का आरोप झेल रही यूपीए सरकार इस जाल से निकल पाती इससे पहले ही खनन सचिव के तबादले ने सरकार की मंशा पर फिर सवाल खड़े कर दिए हैं. शाह कमीशन की रिपोर्ट में पर्यावरण मंत्रालय पर भी सवाल खड़े किए गए हैं. रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि पर्यावरण मंत्रालय ने गोवा में खनन की अनुमति कानून को परे रख कर दी है.
रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि चाहे वो मंत्री हो या फिर अधिकारी, जिसने भी गैरकानूनी काम किया है उसके खिलाफ कानून के हिसाब से कार्रवाई होनी चाहिए. गौर करने वाली बात ये है कि उस दौरान पर्यावरण मंत्रालय का कार्यभार प्रधानमंत्री खुद देख रहे थे. ज़ाहिर है सरकार को अब एक और मोर्चे पर विपक्ष के सामने खुद की सफाई पेश करनी होगी.
सीएजी की रिपोर्ट हो या फिर कमीशन की जांच रिपोर्ट एक के बाद एक पिछले दिनों में सामने आई इन रिपोर्टों ने सरकार के काम करने के तरीके और इनके मंत्रियों की मंशा पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं. सरकार भले ही ये दलील दे कि कमीशन की रिपोर्ट मानना उसके लिए बाध्य नहीं है, लेकिन इस रिपोर्ट में उठाए गए सवालों का जवाब तो सरकार को देना ही होगा.